प्रधान लेखाकार रिपोर्ट में 2004 से 2010 में हुई वित्तीय अनियमितताओं का किया जिक्र

सपा व बसपा शासन काल में हुए कार्यो की आडिट रिपोर्ट में मिली बजट की कई खामियां

ALLAHABAD: सूबे में सरकार की तरफ से विभिन्न विभागों की ओर से किए गए कार्यो को लेकर हुई आडिट में मंगलवार को प्रधान महालेखाकार उप्र की पंचायती राज व्यवस्था के तहत आई ऑडिट रिपोर्ट पेश की। इसमें कई प्रकार की वित्तीय अनियमितताओं का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में 2004-05 से 2015-16 तक ग्राम पंचायतों और शहरी स्थानीय निकाय में विकास कार्यो पर बजट में मनमाने ढंग से किए गए अनाप-शनाप खर्च को तथ्यों और डेटा के साथ दर्शाया गया है। पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित 29 कार्यो में से मात्र 16 कार्य ही उन्हें अक्टूबर 2016 में हस्तांतरित किए गए। जबकि अवशेष कार्यो को भी पंचायत राज संस्थाओं को हस्तांतरित करना था।

अग्रिम भुगतान की नहीं हुई वसूली

प्रधान लेखाकार की रिपोर्ट के अनुसार 2004-05 से 2010 तक की ऑडिट रिपोर्ट भी विधान मंडल के पटल पर रखी गई है। इसमें बताया गया है कि 2004-05 में आगरा, गोरखपुर और बरेली नगर निगम के कर्मचारियों/अधिकारियों को दिए गए अग्रिम 14.56 करोड़ रुपये की वसूली नहीं की गई। बीएसएनएल के विरुद्ध 3.81 करोड़ रुपये के रोड कटिंग प्रभार की वसूली नहीं की गई। इससे नगर निगम गाजियाबाद और बरेली को राजस्व की हानि हुई। 2005-06 में सफाईकर्मियों को अनुबंध पर रखने के लिए 16.73 करोड़ का अनियमित व्यय किया गया। 2006-07 में नगर पालिका संभल, मुरादाबाद की ओर से सीसी रोड पर लोनिवि से दरों का सत्यापन कराए बिना ठेकेदारों को 34.72 लाख का अधिक भुगतान कर दिया गया। नगर निगम लखनऊ की ओर से 2007-08 में शासनादेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने में निष्क्रियता बरती गई। इससे पांच करोड़ से अधिक का व्यय निष्फल रहा। 2008-09 में नगर निगम बरेली में लेखा संहिता और वित्तीय नियमों का अनुपालन नहीं किया गया, जिससे 93.93 लाख रुपये अग्रिम भुगतान का समायोजन नहीं किया गया। 2009-10 में लेखा संहिता और वित्तीय नियमों के प्राविधानों का अनुपालन नहीं किया गया, जिससे साढ़े नौ करोड़ रुपये के अग्रिम भुगतान का समायोजन नहीं किया गया।

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पब्लिक का पैसा, आंख मूंद किया खर्च

मनमाने ढंग से टेंडर्स का किया गया वितरण, विकास कार्यो के बेसिक रिकार्ड तक व्यवस्थित नहीं

ALLAHABAD: पिछली सरकारों ने अपने कार्यो का हर तरफ ढिंढोरा पीटा और पब्लिक का पैसा आंख मूंद कर खर्च किया। यह हकीकत प्रधान लेखाकार की आडिट रिपोर्ट में सामने आयी है।

पहली बार हुआ इनका ऑडिट

प्रधान महालेखाकार पीके कटारिया ने मंगलवार को 2004-05 से 2015-16 की वार्षिक तकनीकी रिपोर्ट राज्य विधान मंडल के पटल पर रखी और उसे मीडिया के सामने भी पेश किया। इसमें शहरी स्थानीय निकायों का ऑडिट पहली बार किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया कि 2011-16 की अवधि में पंचायती राज संस्थाओं के कुल संसाधनों 30696.07 करोड़ रुपये की तुलना में निजी राजस्व स्त्रोतों से कुल 898.74 करोड़ रुपये ही वसूल किए गए। यह कुल राजस्व का तीन प्रतिशत है जिसे नगण्य माना गया। यानी पंचायती राज संस्थाएं वित्त पोषण के लिए शासकीय अनुदान पर ही अधिक निर्भर रही हैं। इससे उनके क्रियाकलाप की कलई खुल गई है। पंचायती राज संस्थाओं को 2011-12 में ही 332.68 करोड़ रुपये के संसाधनों की हानि हुई, क्योंकि 31 मार्च 2012 तक कोषागारों से बजट ही नहीं निकाला गया। भारत सरकार की ओर से 2015-16 में दिए गए 1931.30 करोड़ रुपये अनुदान को ग्राम पंचायतों को चार दिन विलंब से दिया गया। इसके चलते प्रदेश शासन को 1.64 करोड़ रुपये का अनावश्यक रूप से ब्याज देना पड़ा। इसके अलावा केंद्र सरकार से 2015-16 में मिले एक और अनुदान 1909.18 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने ग्राम पंचायतों को 19 दिन विलंब से दिया। इस पर ग्राम पंचायतों को 6.08 करोड़ रुपये ब्याज का भुगतान भी नहीं किया गया।

निधियों का उपभोग नहीं कर सके

पंचायती राज संस्थाओं को भारत सरकार से 2011-16 के बीच 12765.39 करोड़ रुपये और राज्य सरकार की ओर से 17031.94 करोड़ रुपये का कुल अनुदान मिला था। जिसे विभिन्न कार्यो पर उपभोग किया जाना था लेकिन, लेखा परीक्षकों की ओर से किए गए 202 पंचायती राज संस्थाओं (10 जिला पंचायत, 26 क्षेत्र पंचायत, 166 ग्राम पंचायत) की ऑडिट में पता चला है कि मार्च 2016 के अंत तक इस अनुदान में 172.82 करोड़ रुपये का उपभोग नहीं किया गया।

Posted By: Inextlive