एक हलिया रिपोर्ट की माने तो महत्‍वपूर्ण योग्‍यता में निपुर्ण ने होने के कारण भारत के 80 प्रतशित इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बेरोजगार हैं। जिसके चलते भारत के शिक्षा तत्रं एवं ट्रेनिंग सिस्‍टम को अपडेट करने की जरूरत है। शैक्षिक संस्‍थानों से लाखों की संख्‍या में युवा शिक्षा प्राप्‍त कर के निकल रहे है। कार्पोरेट जगत की माने तो उन सभी युवाओं में उस योग्‍यता की कमी है जिसकी जॉव में सर्वाधिक आवश्‍यकता है।


युवाओं में है नौकरी के लिए योग्यता की कमीनेशनल इंप्लायबिलिटी रिपोर्ट में जो कि एक रिसर्च पर आधारित है कहा गया है 2015 में 650 कॉलेजों से निकले 1.50 लाख इंजीनियरिंग छात्रों में से 80 प्रतशित छात्र बेरोजगार हैं। इंजीनिरिंग वास्तव में एक ऐसी ग्रेजुएट डिग्री है जो आज के समय में टुकड़ो में छात्रों के पास है। सीटीओ वरून अग्रवाल की माने तो हमे अपने शिक्षा के स्तर को सुधारने की जरूरत है। जिसके चलते हमे  अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम को इतना शानदार बनाना जिसका ध्यान नौकरी पर केंद्रित हो। बेंगलुरु एवं देश के पश्चिमी शहरों के आधार पर दिल्ली सबसे ज्यादा इंजीनियर तैयार करता है जो काम करने लायक होते हैं। रिपोर्ट की माने तो उड़ीसा और केरल में 25 प्रतशित लोगों के पास रोजगार है वहीं उत्तराखंड और पंजाब में यह स्तार 2 या 3 पर ही रूक जाता है।स्त्री पुरूष की है समान भागेदारी
लिंग के आधार अध्यन किया जाए तो रोजगार में महिलाओं और पुरूषों की भागीदारी एक सी है। यह किसी भी पूर्वाग्रह से रहित प्रत्येक भूमिका में आता है। सेल्स इंजीनियर, नॉन आईटी , आईटीईएस सहयोगी या बीपीओ और सामग्री डेवलपर रिपोर्ट में रोजगार के प्रति महिलाओं की भूमिका थोड़ा अधिक है। दिलचस्प बात यह है रिपोर्ट में रोजगार पाने की लोकप्रिय धारणा के विपरीत थ्री टियर शहरों को भी रोजगार में इंजीनियरों के एक हिस्से का उत्पादन और एक भर्ती के नजरिए से उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिये। इन उम्मीदवारों को भी संभवत आईटी कंपनियों सेवाओं के कई के प्रवेश स्तर के काम पर रखने की जरूरत भर सकता है।

Posted By: Prabha Punj Mishra