आगरा। कहते हैं कि महंगाई का समय है, बस दाल रोटी की जुगाड़ हो जाए काफी है, लेकिन अब महंगाई का आलम यह है कि लोग रोटी दो जुटा सकते हैं, लेकिन दाल की जुगाड़ नहीं हो सकती है। कुछ ही माह में दलहन की कीमतों जिस तरह से बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है, उससे अब आम आदमी की पहुंच से दाल बाहर हो चुकी है।

कम उत्पादन महंगाई का कारण

दलहन पर अचानक आई महंगाई का

मुख्य कारण कम उत्पादन है। बीते कुछ वर्षो का हाल देखा जाए, तो मंडियों में दलहन की आवक 40 फीसद तक कम हुई है। किसान दलहन की खेती कर ही नहीं रहे हैं, कारण है मौसम दलहन की खेती के प्रतिकूल है। इसके कारण चाहते हुए भी वे दलहन की खेती नहीं कर रहे हैं।

शहर में दाल मिलों की स्थिति

सिटी में दाल मिलों की बात की जाए, तो यहां पर अरहर की दाल की तीन मिले हैं, जो सिटी से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर पड़ने वाले गांव अकोला के पास हैं। इन फैक्ट्रियों की स्थिति भी काफी अच्छी नहीं है। लोकल मंडी से यहां दालें आती नहीं है। दूरदराज की मंडी से ये मिल मालिक दालें लाते हैं और अधिक प्रॉफिट के चक्कर में सिटी के आस-पास के जिलों में दाल सप्लाई करते हैं।

यहां से आ रही दालें

सिटी में दालें दिल्ली, महाराष्ट्र से आ रही हैं। व्यापारी वहां की मंडियों में बैठे आढ़तियों से सीधे संपर्क में रहते हैं। जरूरत के हिसाब से दाल मंगाई जाती है। लोकल स्तर पर दाल मिलों को इतनी दाल नहीं मिलती है, कि वे सिटी के मार्केट की भरपाई कर सकें।

खेत से रसोई तक इस तरह बढ़ता भाव

किसान के उत्पादन से लेकर रसोई तक पहुंचने में दाल के दाम में प्रतिकिलो 40 रुपये का अंतर आ जाता है। किसान से दाल मिल के मालिक दलहन खरीदते हैं। इसके बाद इसे तैयार किया जाता है। अरहर की दाल की बात करें, तो मिल से जब यह दाल निकलती है, तो इसकी कीमत थोक के हिसाब से 80 रुपये किलो होती है यहां से भाडे़ और चढ़ाई और उतराई के साथ जब यह दाल मंडी में बैठे थोक व्यापारियों तक पहुंचती है, तो इसकी कीमत 95 रुपये तक पहुंच जाती है। ये थोक व्यापारी कम से कम तीन से पांच रुपये प्रतिकिलो प्रॉफिट लेते हैं। इसके बाद थोक व्यापारिरयों के कुछ दलाल हैं, जो इन दालों की मार्के टिंग कर उनको फुटकर विक्रेताओं तक पहुंचाते हैं। यहां पर दाल की कीमत 115 रुपये तक पहुंचती है। थोक विके्रता इस दाल पर छह से आठ रुपये का प्रॉफिट लेते हैं, यानि किचिन तक पहुंचते हुए दाल की कीमत 120 से 125 रुपये पहुंच जाती है।

रसोई की जान है दाल

एक समय वो था, जब घर में एक वक्त स?जी तो एक वक्त दाल बना करती थी। कहा जाए तो रसोई की जान होती हैं, दलहन। वहीं लोग इन्हें खाने में बेहद पसंद करते हैं। अरहर, उड़द, मूंग, चना और मसूर की दाल किचन से अब गायब होती जा रही हैं। कारण है सबका भाव 100 का आंकड़ा पार कर चुका है।

खेती न करने प्रमुख कारण

1. दलहन के लिए प्रतिकूल रहता है मौसम।

2. कुछ वर्षो में बढ़ गया जानवरों का आतंक।

3. उत्पादन का स्तर गिरा हुआ है।

4. अधिक प्रॉफिट वाली फसलों की ओर हो रहे आकर्षित।

सिटी में दाल की खपत

सिटी में दाल की बड़ी मंडी मोती गंज हैं। यहां पर दर्जन भर से अधिक थोक विक्रेता हैं, जिनके पास से सिटी में फुटकर विक्रेताओं को दालें सप्लाई की जाती हैं। मंडी के थोक विक्रेता राधाचरन से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि इस मंडी से दाल का करोड़ों रुपये का काराबोर है। उन्होंने बताया कि थोक विके्रता की बात की जाए, तो एक थोक विके्रता एक माह में विभिन्न दालों को 20 से 30 कुंतल की बिक्री कर देता है।

Posted By: Inextlive