क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ : चाहिए 2700 नर्सिग स्टाफ्स और काम चल रहा मात्र 451 से. जी हां, स्टेट के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स के लाइलाज होने का आलम यह है कि हर वक्त भर्ती रहने वाले 1500 मरीजों का प्रॉपर केयर नहीं हो पा रहा है. परिजन स्लाइन चढ़ा रहे हैं. वहीं हॉस्पिटल की व्यवस्था भी दुरुस्त कराने में प्रबंधन फेल साबित हो रहा है. जिसका खामियाजा इंडोर में एडमिट मरीजों को भुगतना पड़ता है. ऐसे में हॉस्पिटल में तत्काल मैनपावर बहाल करने की जरूरत है ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके. इतना ही नहीं खराब पड़ी मशीनों को दुरुस्त कराने को लेकर भी प्रबंधन गंभीर नहीं है.

हर वक्त 1500 मरीज भर्ती

हॉस्पिटल में हर वक्त 1500 के लगभग में मरीज एडमिट होते है. ऐसे में तीन शिफ्टों में मरीजों की सेवा के लिए 2700 नर्सिग स्टाफ्स की जरूरत है. लेकिन 451 स्टाफ्स के भरोसे ही मरीजों का इलाज चल रहा है. उसमें भी अगर नर्स छुट्टी पर चली जाए तो परिजनों को खुद ही दवा और स्लाइन भी लगानी पड़ती है. वहीं इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को हर वक्त नर्स की मदद चाहिए होती है. ऐसे में ट्रेनिंग के लिए आने वाले नर्सिग स्टूडेंट्स की मदद ली जाती है ताकि मरीजों को राहत मिल सके.

डायलेसिस को 1200 का मैटेरियल

सरकारी हॉस्पिटल में मरीजों का डायलेसिस फ्री में किया जाता है. रिम्स में भी यही व्यवस्था सालों से चली आ रही थी. लेकिन कुछ दिनों से फ्री डायलेसिस के नाम पर केवल आईवॉश किया जा रहा है. डायलेसिस कराने के लिए परिजनों से 1200 रुपए का केमिकल और पाउडर मंगवाया जा रहा है. इतना ही नहीं, इसकी सप्लाई के लिए दलाल भी तय है. जिसे मरीज के आने की सूचना दे दी जाती है. इसके बाद पूरा झोला तैयार रहता है. जबकि प्राइवेट सेंटर में 1500 रुपए में बिना किसी झंझट के आसानी से डायलेसिस किया जा रहा है.

प्राइवेट सेंटरों में कट रही मरीजों की जेब

हॉस्पिटल में मरीजों को सरकारी दर पर जांच कराने के लिए हर तरह के जांच की मशीनें लगाई गई थी. ताकि यहां आने वाले मरीजों को जांच कराने के लिए बाहर जाने की नौबत न आए. लेकिन पिछले कुछ सालों से स्थिति यह है कि आधी से अधिक मशीनें कभी कभार ही ठीक रहती है. इसके बाद भी प्रबंधन मशीनों का मेंटेनेंस कराने को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहा. इस चक्कर में मरीजों को प्राइवेट सेंटरों का रूख करना पड़ता है. ऐसे में मरीजों की जेब तो हल्की हो रही है. वहीं गरीब तबके के मरीजों को ये लोग लूटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते.

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फैक्ट फाइल

सीनियर एकेडमिक डॉक्टर्स : 253

सीनियर डॉक्टर नॉन एकेडमिक : 23

जूनियर डॉक्टर्स पीजी : 412

जूनियर डॉक्टर्स एचएस : 75

जूनियर डॉक्टर्स इंटर्न : 78

मेडिकल स्टूडेंट्स : 659

नर्सिग स्टाफ्स : 451

नर्सिग स्टूडेंट्स : 381

थर्ड ग्रेड स्टाफ्स : 162

फोर्थ ग्रेड स्टाफ्स : 220

पारा मेडिकल स्टूडेंट्स : 150

मिसलेनियस स्टाफ : 106

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वर्जन

हम हॉस्पिटल को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं. हमारे आने के बाद कई चीजें सुधरी हैं, जहां तक मशीनों की बात है तो उसके लिए प्रक्रिया चल रही है. मैनपावर को लेकर भी एडवर्टिजमेंट निकाला गया है, जहां तक हॉस्पिटल में दलालों की बात है तो हमें प्रूफ दें तो कार्रवाई की जाएगी. डॉक्टर हॉस्पिटल में टाइम दे, इसके लिए सख्ती की जा रही है. इसके बाद भी व्यवस्था नहीं सुधरती है तो एक्शन लिया जाएगा.

डॉ. डीके सिंह, डायरेक्टर, रिम्स

Posted By: Prabhat Gopal Jha