हमारी सीरीज दास्‍तान कहानी है उनकी जिन्होंने गुमनामी के अंधेरों से बाहर निकलकर रियो ओलंपिक का सफर तय किया है। अनजानी जगहों से निकले ये खिलाड़ी ओलंपिक में भारत की आस हैं। जो जिंदगी की तमाम दुश्वारियों को पीछे छोड़कर नई इबारत लिखने को बेताब हैं। इस बार यह दास्तान है एथलीट ओपी जायशा की।

घर के हालात थे काफी बदतर
पांच बरस की ओपी जायशा बस दुर्घटना के बाद बिस्तर पर लाचार पड़े अपने पिता को निहारती रहती। पति की यह हालत देखकर उसकी मां भी अवसाद का शिकार हो गई। आमदनी का कोई जरिया नहीं बचा था। कई दिन जायशा को मिट्टी खाकर गुजारा करना पड़ा। चावल का पानी तक नसीब में नहीं था। वक्त के साथ उसकी मां ने किसी तरह अपने को संभाला। बैंक से कर्ज लेने के लिए घर गिरवी रख दिया गया। गायें खरीदी और दूध का काम शुरू किया। अब आमदनी का जरिया था पर जिंदगी फिर भी आसान नहीं थी। जायशा हर रोज सुबह 5 बजे उठकर गाय दुहती। फिर डेढ़ किमी पैदल चलकर सोसाइटी तक दूध पहुंचाने जाती। उसे स्कूल भी जाना होता। जो दो किमी दूर था। दोपहर में खाने के लिए फिर घर भागती। हालांकि घर पर भरपेट खाना मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं होती। शाम को उसे फिर सोसाइटी दूध पहुंचाने जाना होता।

ऐसे लगाई पहली दौड़

कभी जिद न करने वाली लड़की एक दिन जिद पर अड़ गई। वह घर से तीन किमी दूर उत्तरी केरल के कलपेट्टा में स्पोर्ट्स फेस्टिवल में जाना चाहती थी। मां पहले तो तैयार नहीं हुई फिर हार मानकर जाने की अनुमति दे दी। वहां दर्शकों के बीच खुद को पाकर वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी। तभी हैरान परेशान स्थानीय कोच की उस पर नजर पड़ी। आखिर मिनटों में उनका एथलीट गायब हो गया था। उन्होंने जायशा से पूछा, तुम दौड़ोगी। जायशा ने हां कर दी। वह पैरों में जूतों के बिना भी 800 मीटर की रेस दम लगाकर दौड़ी। कभी हार न मानने वाली जायशा ने दौड़ जीत ली। उसने नेशनल स्कूल चैंपियन को हरा दिया था। जो दौड़ में उससे सौ मीटर पीछे रह गया था।
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चलती नहीं दौड़ती थी वो
घर से सोसाइटी, सोसाइटी से स्कूल, स्कूल से घर वह जो दौड़ लगाती आ रही थी। उसके चलते उसके अंदर लंबी रेस दौड़ने का स्टेमिना डेवलप हो गया था। जब वह जीत के सर्टिफिकेट के साथ घर लौटी तो उसकी मां, पिता व तीन बड़ी बहनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। अब जायशा ने तय कर लिया था उसे दौड़ना है ताकि अपने परिवार की जिंदगी बदल सके।कोच ने उसका नाम एजम्पशन कॉलेज के लिए सुझाया। जहां एथलेटिक ट्रेनिंग की सुविधायें मौजूद थीं। जायशा का परिवार उसकी कॉलेज की फीस व बाकी खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था।
कोच ने बेटी की तरह पाला
बहरहाल वह सिर्फ अपने कपड़े और जेब में बिना फूटी कौड़ी के सिर्फ इरादे लेकर चल पड़ी। कॉलेज में उसे फिर मददगार कोच मिले। जिन्होंने उसे अपनी बेटी की तरह रखा। यूनिवर्सिटी गेम्स में 2005 में उसने 1500 मी, 5000 मी व 10000 मी तीनों स्पर्धाओं का स्वर्णपदक जीता। एशियन गेम्स, 2006 में उसे बड़ी कामयाबी हासिल हुई। उसने 5000 मीटर में कांस्य पदक जीता। पदक जीतने के बाद मिले रुपयों से उसने बहनों की शादी की और घर का कर्ज चुकाया। इसी समय चोट की वजह से उसका करियर ढलान पर आने लगा। 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में वह 10वें नंबर पर रही। एशियन एथलेटिक चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बावजूद 2011 में उसे नेशनल कैंप से बाहर कर दिया गया।
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19 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा

साल भर बाद उसकी मुलाकात अपने होने वाली पति व पूर्व धावक गुरमीत सिंह से हुई। जहां बाकी लोग जायशा का करियर खत्म मान चुके थे गुरमीत ने उसका हौसला बढ़ाया। उसे भरोसा था कि जायशा ट्रैक पर वापसी कर सकती है। 2014 में उसकी नेशनल कैंप में वापसी हुई। उसी साल उसने एशियन गेम्स में 1500 मीटर कांस्य पदक जीतकर लोगों के मुंह बंद कर दिए। जायशा ने 19 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ रियो ओलंपिक के लिए भारतीय दल में जगह बनाई। जहां वह पदक तो नहीं जीत सकी लेकिन उसका हौसला अब सबकी जुबान पर है।  
    
नोट: यह दास्तान ओपी जायशा से संबंधित विभिन्न साक्षात्कारों व समाचारों पर आधारित है।

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari