मानवता तो छोडि़ए, ड्यूटी भी भूल गए जिम्मेदार
- गोरखपुर डिपो पर दिव्यांग को बस में बैठने से कंडक्टर ने किया मना
- मुसाफिर ने अपने पास से किराया देकर दिव्यांग और उसके भाई को बस से भेजा घरGORAKHPUR: भैया मेरे भाई को बस में बैठा लो। वह दिव्यांग है। प्लीज भैया, उसका ट्राइसाइकिल बस पर चढ़ा दो। गोरखपुर बस डिपो पर साल का मासूम नीरज एक कंडक्टर से गिड़गिड़ा रहा था। लेकिन, उसके दिव्यांग भाई जुगानी को कोई भी कंडक्टर अपनी बस में बैठाना नहीं चाह रहा था। कहां तो नियम है कि दिव्यांगों को बस में कुली की मदद से चढ़ाना है और कहां बस वाले उसे बैठने से ही मना कर रहे थे। यह सब देखकर एक मुसाफिर फैसल का दिल पसीज गया। उसने न सिर्फ कंडक्टर से रिक्वेस्ट कर दिव्यांग को बस में जगह दिलवाई, बल्कि उसका और उसके भाई का किराया भी अदा किया। बस अड्डे पर सभी लोग उस मुसाफिर की मानवता देखकर उसकी तारीफ कर रहे थे तो डिपो के जिम्मेदारों की असंवेदनशीलता पर उन्हें कोस रहे थे।
लगाता रहा गुहार, सोए रहे जिम्मेदारशनिवार का दिन था। सुबह के करीब 8.30 बजे थे। गोरखपुर डिपो पर सात वर्षीय नीरज अपने भाई जुगानी (दिव्यांग) को बांसी जाने वाली बस में चढ़ाने के लिए गुहार लगा रहा था। बस के कंडक्टर ने उसे बस में बैठाने से मना कर दिया। किसी तरह एक बस कंडक्टर बस में बैठाने को तैयार हुआ लेकिन दिव्यांग का ट्राइसाइकिल बस में लादने से मना कर दिया। काफी गिड़गिड़ाने के बाद भी बस डिपो के किसी जिम्मेदार ने दिव्यांग की पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया।
मुसाफिर ने की मदद एक मुसाफिर फैसल दिव्यांग और उसके भाई को काफी देर से देख रहा था। पहले तो उसे लगा कि कोई न कोई कंडक्टर बस में बैठा ही लेगा लेकिन जब किसी ने नहीं बैठाया तो वह आगे आया। उसने बस डिपो पर तैनात कर्मचारियों से मदद करने के लिए बोला लेकिन वे भी तैयार नहीं हुए। कई बस कंडक्टर से कहा लेकिन उन्होंने भी रूचि नहीं दिखाई। किसी तरह गोरखपुर डिपो के बस नंबर यूपी 53 बीटी 05081 का कंडक्टर बस में चढ़ाने के लिए तैयार हो गया। वह भी पहले आनाकानी करता रहा लेकिन जब बस में बैठे पैसेंजर्स ने उसे नैतिकता और मानवता का पाठ पढ़ाया तब कंडक्टर का जमीर जागा और दिव्यांग को बैठाने को राजी हुआ। मुसाफिर ने दिया किरायादिव्यांग जुगानी के पास दिव्यांग सर्टिफिकेट भी नहीं था। ऐसे में उसे पूरा किराया भी चार्ज किया गया। जिसकी भरपाई भी मुसाफिर फैसल ने की। दोनों भाइयों ने मुसाफिर को थैंक्यू कहा। फैसल का कहना था कि दिव्यांग को तो मानवता के आधार पर भी बस में जगह देनी चाहिए जबकि यहां तो नियम ही है कि उन्हें बस में बैठने में मदद की जाए। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि जिम्मेदार मनबढ़ कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं करते।
बॉक्स भाई ने निकाल दिया था घर से सात वर्षीय नीरज ने बताया कि वह अपने भाई जुगानी को लेकर इलाज के लिए बड़े भाई श्यामू के पास दिल्ली गया था। कुछ दिन रहकर इलाज भी करवाया। जुगानी की हालत नाजुक होने के चलते वह बिस्तर खराब कर देता था। इससे आजिज आकर बड़े भाई ने उसे घर से निकाल दिया। वह किसी तरह दिल्ली से गोरखपुर पहुंचा। लेकिन उसे गोरखपुर बस स्टेशन पर जो झेलना पड़ा वह जीवन भर न भूलने वाला रहा। क्या है नियम यूपी रोडवेज गोरखपुर की मानें तो जो भी दिव्यांग बस स्टेशन पर आता है उसे कुली की मदद से बस में बैठाया जाता है। इसकी पूरी जिम्मेदारी स्टेशन प्रबंधन की होती है कि यदि कर्मचारी अपनी ड्यूटी सही ढंग से नहीं करते तो उन पर कार्रवाई करें। वर्जनस्टेशन पर आने वाले दिव्यांग के साथ किसी प्रकार के दुर्व्यवहार की शिकायत आती है तो जिम्मेदार पर कार्रवाई की जाती है। इस मामले में आखिरकार लापरवाही क्यों हुई, इस बारे में पूछताछ की जाएगी।
- सुग्रीव कुमार राय, आरएम, यूपी रोडवेज गोरखपुर रीजन