परिवार के साथ रोजा इफ्तार
लॉकडाउन के नियमों का पालन कर मना रहे रमजान
पहले दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ मनाते थे रमजान Meerut रमजान के पाक महीने में रोजा इफ्तार में भी खास बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले लोग रमजान के माह में इफ्तारी के समय आसपास के लोगों व दोस्तों को बुलाकर रोजा खोलते थे। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते कोरोना वायरस के बचाव के लिए सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों के साथ ही इफ्तार कर रहे हैं। वहीं, मुस्लिम धर्मगुरु भी अपील कर रहे हैं। सामूहिक रूप से नमाज अदा न करें। साथ ही घर में परिजनों के साथ ही रोजा इफ्तार करें। दे रहे हैं नसीहतरमजान के इस पूरे महीने में लोग खुदा की रहमत पाने के लिए पूरे 29 या 30 दिन रोजा रखते हैं। वे अपने भाई, रिश्तेदारों व दोस्तों संग मस्जिद में जाकर एक साथ नमाज अदा करते हैं। वहीं सामूहिक सहरी, इफ्तार करते है, लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते धर्मगुरुओं ने अपने परिवार में रहकर ही इफ्तार करने की सलाह दी है। शहरकाजी जैनुस साजिद्दीन के अनुसार रमजान के माह में महामारी से बचना है तो आवश्यक है कि अपने घर पर रहकर सहरी व इफ्तार करें, हमें एकजुट होकर रमजान माह में मुसलमानों को सब्र का परिचय देते हुए कोरोना से लड़ना है। वहीं कारी शफीकुर्रहमान के अनुसार कोरोना की जंग में हम मुसलमानों को एकता का परिचय देते हुए परिवार के बीच ही इफ्तार करना होगा। इसके लिए भीड़ इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है। हमें लॉकडाउन के नियमों का पालन करना जरुरी है, क्योंकि अल्लाह भी उसी के रोजे को कुबूल होता है जो अपनी और दूसरों दोनों की भलाई सोचता है और भला इसी में है हम सभी फिजिकल डिस्टेंस मेनटेन करे, सामूहिक इफ्तार व सहरी से परहेज करे।
ये हैं हिदायतें - रोजा रखकर घर पर ही रहें - सामूहिक इफ्तार पार्टी से परहेज करें - मस्जिद नहीं घर पर पढ़ें नमाज - इबादत के समय सोशल डिस्टेंसिंग का रखें ध्यान - रोजा घर पर ही खोलें दूसरों को परेशान करके अगर रोजा रखा जाए तो वह कुबूल नहीं होता है। इसलिए अब वक्त का तकाजा है कि हम रमजान के दौरान लॉकडाउन के नियमों का पालन करें। अब्दुल वकार रोजा रखकर घर पर रह रहे हैं। इस महामारी की जंग से छुटकारा पाना है। अगर हम साफ नीयत के साथ रोजा रखते है तो ही अल्लाह को कुबूल होता है। सैयारा बेगमरोजा रखते समय लॉकडाउन का पालन करना जरुरी है.सामूहिक इफ्तार पार्टी से परहेज करना बहुत ही जरुरी है, ताकि इस कोरोना की जंग में जीत हासिल करने मे हम योगदान दे सके।
कौसर जहां