- किन सूरतों में रोजा ना रखने की इजाजत है बताएंगे हम

GORAKHPUR: रमजान के रोजे रखना फर्ज है। मगर कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं, जिनकी वजह से लोग रोजा रखने लायक नहीं रहते या रोजा रखने से उन्हें नुकसान हो सकता है। ऐसी दशा में में अल्लाह ने रोजेदारों को राहत दी है। दारुल उलूम हुसैनिया के मुफ्ती अख्तर हुसैन ने बताया कि अगर कोई सफर यानी तीस दिन की राह के इरादे से बाहर निकलता है और सफर में रोजा रहना मुश्किल हो गया है, तो रोजा छोड़ा जा सकता है। उन्होंने बताया कि अगर सफर में मशक्कत ना हो तो रोजा रखना अफजल है। इसके साथ ही हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को अपनी जान या बच्चे की जान को हलाक होने का अंदेशा हो तो भी रोजा ना रखने की इजाजत है।

मरीज को है छूट

रोजेदारों को अल्लाह ने काफी मर्ज यानी मरीज को मर्ज बढ़ जाने या देर में अच्छा होने या तंदुरुस्त को बीमार हो जाने का अंदेशा हो तो उसे उस दिन रोजा ना रखने की इजाजत है। इसके साथ ही ऐसा बूढ़ा आदमी या औरत जो ना अब रोजा रख सकता हो और ना ही आइंदा उसमें रोजा रखने की ताकत आने की उम्मीद हो, तो उसे रोजा ना रखने की इजाजत है। इसके साथ ही हैज व निफास (मासिक) की हालतों में भी रोजा रखना जायज नहीं है।

बाद में रखना होगा रोजा

रोजा छोड़ने की हालत में उज्र खत्म हो जाने के ऐसे सभी लोगों को रोजे की कजा करना फर्ज है। बूढ़ा अगर जाड़े में कजा रख सकता है, तो रख ले वरना हर रोजे के बदले दोनों वक्त एक मिसकीन को पेट भर खाना खिलाए या हर रोजा के बदले सदकाए फित्र की मिकदार मिसकीन को दे दे। जिन लोगों को रोजा ना रखने की इजाजत है, वह किसी चीज को अलानियह (खुलेआम) खा पी नहीं सकते हैं।

Posted By: Inextlive