-वीआईपी नंबर एलॉटमेंट के लिए ऑनलाइन प्रॉसेस पर दलालों ने किया कंट्रोल

- सॉफ्टवेयर इंजीनियर व हैकर की हेल्प से परिवहन विभाग की वेबसाइट को किया हैक

- व्हीकल ओनर के बार-बार प्रयास करने के बाद भी नहीं पूरी होती प्रक्रिया, दिखाता है एरर

- दलाल की शरण में जाते ही दो मिनट में हो जाता है मनचाहा नंबर एलॉट

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KANPUR: आरटीओ ऑफिस के बाबू। दलाल और पैसा। इन तीनों के 'गठजोड़' को तोड़ने के लिए परिवहन विभाग, स्थानीय प्रशासन और लोकल पुलिस ने कई बार प्रयास किए। जिससे किसी तरह से पब्लिक को राहत मिल जाए लेकिन ये यह गठजोड़ इतना मजबूत है कि हर बार प्रयास सिर्फ प्रयास ही रहा। ऐसा ही एक प्रयास परिवहन विभाग ने वीआईपी नंबर अलॉटमेंट में होने वाले के 'खेल' को रोकने के लिए किया। वीआईपी नंबर के लिए वेबसाइट के जरिए ऑनलाइन प्रॉसेस शुरू किया गया। लेकिन दलालों के नेटवर्क ने इस प्रॉसेस में भी सेंध लगा दी। यानि अगर आपको वीआईपी नंबर चाहिए तो दलालों की शरण में ही जाना पड़ेगा। दलालों ने वेबसाइट को हैक कर रखा है। गाड़ी ओनर के बार-बार ऑनलाइन प्रॉसेस के बाद भी वीआईपी नंबर की प्रक्रिया पूरी नहीं होती लेकिन दलाल के पास पहुंचते ही मिनटों में काम हो जाता है।

ये प्रयास भी गया बेकार

ज्यादातर लोग चाहते हैं कि अपनी चमचमाती हुई गाड़ी पर नंबर भी जरा यूनिक और हटकर हो। केस्को की भाषा में इन्हें वीआईपी नंबर कहा जाता है। वीआईपी नंबर के लिए लोग मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। वीआईपी नंबर पाने के लिए पहले कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं थी। आरटीओ कर्मचारी दलालों की मदद से मुंहमांगी रकम लेकर नंबरों को बेच दिया करते थे। वीआईपी नंबर के लिए अधिकारी से लेकर मंत्री तक की सिफारिश आती थी। वीआईपी रोड निवासी विक्रम मल्होत्रा ने बताया कि दो साल पहले वीआईपी नंबर के लिए उन्होंने 25 हजार रुपए खर्च किए थे। जबकि सरकारी फीस इसके आधे से भी कम है।

शिकायतों के बाद किया थ्ा ऑनलाइन

लगातार मिल रही शिकायतों और वीआईपी नंबर एलॉट करने की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार ने पिछले दिनों इसको ऑनलाइन कर दिया। जिससे की एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने के बाद प्रॉयोरिटी के हिसाब से आसानी से वीआईपी नंबर मिल सके।

दलालों ने निकाल लिया तोड़

सरकार ने ऑनलाइन वीआईपी नंबर के एलॉटमेंट के लिए पुख्ता इंतजाम किए। इसके तहत वीआईपी नंबर के लिए https://vahan.up.nic.in/UP_fancynumberbid/faces/applicant/pages/selected_number.jsp पर जाकर आपको अपना, नाम, आईडी के साथ ही दूसरी डिटेल्स फुलफिल करनी होती हैं। इसके बाद आपको अवेलेवल नंबर्स पर क्लिक करना होता है। इस प्रॉसेस को पूरा करने के बाद आगे की प्रक्रिया को फॉलो करना होता है। ये पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है लेकिन दलालों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है।

कैसे तोड़ा नेटवर्क?

एक दलाल ने बताया कि हर शहर में कई बड़े दलालों ने मिलकर एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हायर कर रखा है। जिसकी मदद से पूरे काम को अंजाम तक पहुंचाया जाता है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने उस इंजीनियर से बात करने की कोशिश की लेकिन दलाल ने बात कराने से मना कर दिया कि कहीं हम उस इंजीनियर की पहचान न कर लें। खैर हमको इस नेटवर्क का पूरा सिस्टम जानना था तो हमने दलाल के फोन से बात की। उस इंजीनियर ने बताया कि वेबसाइट खोलकर कुछ चुनिंदा वीआईपी नंबर्स को एक हैकिंग सॉफ्टवेयर की हेल्प से ब्लॉक कर देते हैं। जिससे की ये नंबर्स स्क्रीन पर दिखाई नहीं देते हैं। और जब दलाल जिसको चाहते हैं मनमाफिक पैसे लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के माध्यम से वीआईपी नंबर एलॉट करने की प्रक्रिया पूरा कर देते हैं। दलाल के मुताबिक इस प्रक्रिया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर का इनवॉल्वमेंट रहता है जोकि हैकिंग का भी मास्टर होता है। ऐसे में वीआईपी नंबर के चार्जेज भी ज्यादा होते हैं।

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ऑनलाइन वीआईपी नंबर रजिस्ट्रेशन का प्रॉसेस

1. परिवहन विभाग की वेबसाइट https://vahan.up.nic.in/UP_fancynumberbid/ पर लॉग इन करें।

2. लेफ्ट हैंड साइड पर बनी विंडो पर सेलेक्ट अट्रैक्टिव नंबर्स पर क्लिक करें।

3. फिर अपने शहर के आरटीओ यानि जैसे कानपुर, लखनऊ, आगरा आदि पर क्लिक करें।

4. सलेक्ट व्हीकल्स और फिर सीरीज पर क्लिक करें।

5. क्लिक करते ही आपकी स्क्रीन पर अवेलेवल वीआईपी नंबर आ जाएंगे। फिर अपना नंबर सलेक्ट कर निर्धारित पेमेंट अदा करें।

रूल्स के मुताबिक इसी क्रम में ऑनलाइन फॉर्म फिल करने पर आपको नंबर एलॉट हो जाना चाहिए लेकिन दलालों के नेटवर्क और हैकिंग के मास्टर की वजह से नंबर पर क्लिक करने के बाद भी आपको नंबर एलॉट नहीं होगा। बार-बार एरर लिखकर आएगा लेकिन दलाल को पैसे देते ही आपको नंबर एलॉट हो जाएगा।

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टोल फ्री नंबर पर भी रिस्पॉन्स नहीं

परिवहन विभाग ने अपनी वेबसाइट पर एक टोल फ्री नंबर 1800-1800-151 भी दिया है। इस नंबर पर आप वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार की शिकायत कर सकते हैं। लेकिन टोल फ्री नंबर पर शिकायत करने के बाद भी पब्लिक को रिस्पॉन्स नहीं मिलता है। जिसके बाद आखिरकार उनको वीआईपी नंबर के लिए दलालों की शरण में जाना पड़ता है। ये है वो टोल फ्री नंबर

TOLL FREE 1800-1800-151

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ऑनलाइन वीआईपी नंबर के रजिस्ट्रेशन वाली ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट की वेबसाइट में कई लूपहोल हैं। जिनका फायदा उठाकर हैकर्स बड़े आराम से हैक कर सकते हैं। पेंटरेशन टेस्टिंग से ये मालूम चल जाता है कि वेबसाइट में कौन-कौन से और कहां-कहां लूपहोल हैं। इसके बाद वेब सर्वर और डाटाबेस के माध्यम से अंदर की जानकारी मिल जाती हैं। हैकर्स इसके लिए द्धह्लह्लश्चह्य://ख्ख्ख्.द्गफ्श्चद्यश्रद्बह्ल-स्त्रढ्ड.ष्श्रद्व/ का यूज करते हैं। इसके माध्यम से पॉवरफुल लूपहोल्स मालूम हो जाते हैं। जिसके बाद हैकर्स कंप्लीट टार्गेट कर लेता है। इसके बाद फिर हैकर्स जैसे चाहता है वैसे वेबसाइट का यूज करता है।

अधोक्षज मिश्रा, साइबर एक्सपर्ट

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अक्सर वेबसाइट बनाते वक्त बनाने वाले कई तरह के लूपहोल्स छोड़ देते हैं। क्योंकि वेबसाइट की प्रोग्रामिंग करते वक्त वो सिक्योरिटी का ध्यान नहीं रखते हैं। ऐसे में हैकर्स उसका फायदा उठा लेते हैं। ऑनलाइन नंबर दिलाने वाली या फिर इसी तरह की दूसरी वेबसाइट को वो एसकेवल इंजेक्शन जैसे लूपहोल्स का फायदा उठाकर हैक कर लेते हैं। जिसके बाद हैकर्स जैसे चाहते हैं वो वैसे काम करती है। वेबसाइट की प्रोग्रामिंग और डाटाबेस में काफी गड़बड़ी रहती है जिसका फायदा उठाकर हैकर्स साइट हैक कर लेते हैं।

रक्षित टंडन, साइबर एक्सपर्ट

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वीआईपी नंबर के रेट

गवर्नमेंट दलाल

क्भ्000 ख्भ्000

7भ्00 क्ख्000

म्000 क्0000

फ्000 7000

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नोट-गवर्नमेंट रेट की कैटेगिरी ट्रंासपोर्ट डिपार्टमेंट की वेबसाइट के मुताबिक हैं और दलाल के रेट उससे बातचीत के आधार पर दिए गए हैं।

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मैंने कुछ दिनों पहले नई बाइक खरीदी। मुझको वीआईपी नंबर चाहिए था। आरटीओ ऑफिस जाकर मालूम चला कि ऑनलाइन वीआईपी नंबर ले सकते हैं। मैं एक हफ्ते तक रोज वेबसाइट पर नंबर एलॉट होने की प्रक्रिया पूरी करता रहा लेकिन नंबर एलॉट नहीं हुआ। फिर आरटीओ ऑफिस के बाहर बैठे दलाल से बात की तो उसने फ्000 रुपए की जगह 7000 रुपए मांगे और कुछ घंटों में ऑनलाइन नंबर एलॉट करवा दिया।

नितिन तिवारी, सर्विसमैन

मेरे बेटे ने कुछ दिनों पहले कार खरीदी। उसने वीआईपी नंबर के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने की प्रक्रिया पूरी करने की कोशिश कई बार की लेकिन नंबर उसको एलॉट नहीं हुआ। लेकिन आरटीओ ऑफिस के बाहर बैठे दलालों से संपर्क करने के बाद दोगुने पैसे दिए और कुछ मिनटों में नंबर मिल गया।

प्रदीप कुमार, बिजनेसमैन

Posted By: Inextlive