पांच दशक पहले भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बीमारी के वक़्त देश और दुनिया एक ही प्रश्न से दो-चार थी- ‘’नेहरू के बाद कौन?’’


इसी सवाल की तहों में एक अनजाना डर भी मौजूद था: ‘’नेहरू के बाद क्या?’’आज क्रिकेट प्रेम में दीवाना भारत और दुनिया भर में इस खेल के चाहने वाले उसी चिंतित स्वर में पूछ रहे हैं, ‘’तेंदुलकर के बाद कौन?’’ और असल में इसका मतलब है, ‘’तेंदुलकर के बाद क्या?’’अपनी बीमारी और मौत से पहले नेहरू 17 साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे; तेंदुलकर अपने संन्यास से पहले 24 साल तक भारत के मुख्य बल्लेबाज़ रहे.नेहरू का इस हद तक असर था कि उनके नेतृत्व, दूरदृष्टि और राष्ट्रीय भविष्य के लिए उनके तक़रीबन मसीहाई व्यक्तित्व के बिना भारत की कल्पना करना मुश्किल था.उसी तरह तेंदुलकर के तक़रीबन सभी बड़े बैटिंग रिकॉर्ड और विजय ने देश को एहसास कराया कि उनकी जगह कोई नहीं ले सकता था और इस खेल में भारत को टॉप पर बनाए रखने की गारंटी वही थे.



तेंदुलकर ने अपनी शुरुआत तब की थी जब भारत ग़रीब था, हाशिए पर था और ख़ुद में सिमटा था.

वह ऐसे भारत में संन्यास ले रहे हैं जो 20 साल से विकास के आवेश से लबरेज़ है, एक देश जिसकी बढ़ती आबादी और अर्थव्यवस्था ने उसे दुनियाभर में क्रिकेट की महाशक्ति बना दिया है और जो दुनिया भर में खेल का 90 फ़ीसदी राजस्व हासिल करता है.एक कमज़ोर, असुरक्षित देश को खिलाड़ी नायक चाहिए होते हैं, क्रिकेट के मैदान में जीवन से बड़े खिलाड़ी चाहिए होते हैं जो अपने देश और टीम की सीमाओं से आगे जा सकें.तेंदुलकर ऐसे नन्हे महापुरुष थे जिन्होंने अपने देशवासियों को दिखाया कि एक भारतीय भी दुनिया भर में बेहतरीन हो सकता है. उन्हें देश के क्रिकेट देवालय में भगवान का दर्जा दिया गया.मगर दुनिया में मज़बूत अर्थव्यवस्था के साथ साल 2013 के विश्वासी भारत, वह भारत जिसे दुनिया के नेता चाहते हैं या जिससे मिलकर रहना चाहते हैं, को अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन के लिए भगवान नहीं चाहिए. केवल अमर्त्य इंसान ही यहां जीत हासिल करने में सक्षम हैं.आज के भारत ने दुनिया को नाप लिया है और तय किया है कि वह किसी भी चुनौती का सामना करने के क़ाबिल है. देश कहता है – धन्यवाद सचिन, तुम एक प्रेरणा रहे हो, मगर अब हमें तुम्हारी ज़रूरत नहीं है.ऐसे में यह सवाल ‘’तेंदुलकर के बाद कौन?’’ एक विरोधाभासी जवाब लाता है. अब इसका मतलब नहीं है कि ‘’कौन’’: कई लोग दायित्व उठा सकते हैं.
तेंदुलकर, वह बल्लेबाज़ जिसने भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी के लिए क्रिकेट को परिभाषित किया, उसने वो शर्तें भी गढ़ दी हैं, जिनमें अब भारतीय क्रिकेट को देखा जाएगा.उनकी असाधारण कामयाबियों के लिए उन्हें धन्यवाद, उन्होंने अपने सभी अनुयायियों के लिए दक्षता का पैमाना उठा दिया है.वह एक ऐसे समय में दाख़िल हुए थे जब किसी दमकती जीत के मुक़ाबले नायकत्व भरी हार ज़्यादा सामान्य बात हुआ करती थी. वह उस वक़्त जा रहे हैं जब जीत एक सामान्य बात हो चुकी है.यह बदलाव तेंदुलकर युग का है. उनके बाद भारतीय क्रिकेट अब वैसा नहीं रहेगा.

Posted By: Subhesh Sharma