मशहूर सूमो चैंपियन हारुमाफुड्ज़ी कोहेई ने पिछले दिनों अपने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। इस मौके पर वे 30 सेकेंड तक सिर झुकाए खड़े रहे और कहा 'मैं तहेदिल से माफ़ी मांगता हूं।' मंगोलियाई मूल के हारुमाफुड्ज़ी कोहेई का नाम महान सूमो पहलवानों में शुमार किया जाता है।

ऐसा आरोप है कि इस साल 25 अक्तूबर को उन्होंने एक बार में अपने जूनियर पहलवान की खोपड़ी तोड़ दी थी। मामला पुलिस में गया और जापानी अख़बारों में इस ख़बर ने काफ़ी सुर्ख़ियां बटोरी।

इस वाक़ये से जापान के प्राचीन राष्ट्रीय खेल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है।

एक दशक पहले एक प्रशिक्षु पहलवान को उसके सीनियरों ने बीयर की बोतल और बेसबॉल के बल्ले से पीट-पीटकर मार डाला था।

वह प्रशिक्षु पहलवान महज़ 17 साल का था और इस मामले पर तब काफ़ी चिंता जताई गई थी।

 

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मंगोलियाई आ रहे हैं...

इस हफ्ते हारुमाफुड्ज़ी कोहेई के रिटायर होने से पहले तक, वहां चार सूमो ग्रैंड चैंपियन थे।

हारुमाफुड्ज़ी कोहेई समेत उनमें से तीन मंगोलियाई हैं।

पूर्वी यूरोप, रूस और हवाई जैसी जगहों से नए पहलवान जापान सूमो का खेल सीखने आते हैं। उगते हुए सूरज के देश जापान में सूमो कोई खेल नहीं है, ये परंपरा का हिस्सा है।

जापानियों के लिए सूमो के बहुत मायने हैं।

कड़े नियम सूमो पहलवानों के आचरण की मर्यादा तय करते हैं और जापान से बाहर पैदा होना लापरवाही की दलील नहीं हो सकता है।

सभी सूमो पहलवान सार्वजनिक तौर पर पारंपरिक लिबास पहनते हैं। उन्हें बातचीत में मर्यादापूर्ण और मधुरभाषी होने की तालीम दी जाती है।

उनका रुतबा कुछ ऐसा होता है कि जब वे सड़कों पर निकलते हैं तो अजनबी भी उन्हें देखकर सिर झुकाते हैं।

जापान में सूमो की ट्रेनिंग देने वाले 45 केंद्र हैं और जापान सूमो एसोसिएशन के नियम के तहत ये सभी केंद्र एक बार में केवल एक ही विदेशी नागरिक को सूमो की ट्रेनिंग के लिए दाखिला दे सकते हैं।

 

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तनख़्वाह नहीं, गर्लफ़्रेंड नहीं, फ़ोन नहीं

जापान में साल में छह टूर्नामेंट होते हैं। खेल में तरक्की के लिए हारे गए मुक़ाबलों से ज़्यादा मैचों में जीतना ज़रूरी होता है।

प्रतिद्वंदी को रिंग के बाहर करने वाला या उसे बिना पैरों का इस्तेमाल किए धूल चटाने वाला पहलवान विजेता बनता है।

विजेताओं का एक श्रेष्ठता क्रम होता है जिसके छह स्तर होते हैं।

तक़रीबन 650 पहलवान लड़ते हैं और केवल 60 लोग ही ऊपर की श्रेणी में आते हैं।

नीचे के चारों स्तरों पर विजेता बनने से कोई आर्थिक फ़ायदा नहीं है।

लगातार दो या तीन साल तक जीतने पर ही कोई पहलवान उस मुक़ाम तक पहुंचता है जहां तनख़्वाह मिलती है।

लेकिन जब वो मुक़ाम आ जाता है तो श्रेष्ठता क्रम के दूसरे डिविज़न में तक़रीबन 12 हज़ार डॉलर मिलते हैं और शीर्ष पर अंदाज़न 60 हज़ार डॉलर हर महीने।

इसमें स्पॉन्सरशिप डील भी शामिल है। इसके अलावा और भी फ़ायदे हैं।

जूनियर पहलवानों को जाड़े में भी पतले सूती कपड़े और लकड़ी के सैंडल पहनने होते हैं।

 

क़ायदे बदल रहे हैं...

पिछले साल एक प्रशिक्षु पहलवान की एक आंख उसके साथ हुई बदसलूकी के कारण चली गई थी।

तब उसे 288,000 डॉलर का मुआवज़ा दिया गया।

मंगोलियाई सूमो पहलवान हाकुहो ने 2007 की घटना के बाद कहा था, "आज मेरी जीत के बाद आप मेरे खुश चेहरे को देख रहे हैं लेकिन एक वक़्त ऐसा भी था जब मैं रोज़ रोता था।"

उन्होंने बताया, "पिटाई के पहले 20 मिनट में बहुत दर्द होता है लेकिन इसके बाद चीज़ें आसान हो जाती हैं। भले ही आप पीटे जा रहे हों लेकिन दर्द कम हो जाता है। हां, मुझे भी पीटा गया था। मेरे सीनियर पहलवानों ने बताया कि ये मेरे भले के लिए है और मैं फिर रोया।"

 

तो फिर लोग चुप क्यों रहते हैं?

सूमो के खेल पर लिखने वाले क्रिस गोउल्ड कहते हैं कि खामोशी का नियम बहुत सख्त है। सूमो की विधा के पतन के बारे में फ़िलहाल कुछ कहना जल्दबाज़ी होगा। यह भविष्य को लेकर आशंकित होने का समय नहीं हैं।

जापान सूमो एसोसिएशन को ये समझने की ज़रूरत है कि सूमो के पक्ष में और उसके विरोध में क्या है?

Posted By: Chandramohan Mishra