जब हम अपने मस्तिष्क में व्याप्त तनाव समुक्त होते हैं तो हमारा शरीर एक खुशहाल चरण में प्रवेश करता है जिसमें हम दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं...


हम जीवन का सारा तनाव कहां रखते हैं? सबसे ज्यादा तनाव हम जहां रखते हैं, वह हमारा मस्तिष्क है। वह मस्तिष्क ही है जो बाहरी दुनिया में घटित होने वाली घटनाओं और अनुभवों की व्याख्या करता है, फिर चाहे वह अच्छी हों या बुरी, प्रिय हों या अप्रिय। जब हम भविष्य में हो सकने वाली बुरी या अप्रिय चीजों की चिंता करते हैं, तब हमें तनाव महसूस होता है और जब हम वर्तमान या अतीत की बुरी या अप्रिय घटनाओं की व्याख्या करते हैं, तो भी हम तनाव का अनुभव करते हैं। हमारे मस्तिष्क को जैसी अनुभूति होती है, वैसी ही प्रतिक्रिया हमारा शरीर देता है। मोक्ष का असली अर्थ शरीर से मुक्ति नहीं: साध्वी भगवती सरस्वतीस्वयं को अपने भीतर जाने की अनुमति दें: साध्वी भगवती सरस्वतीमोक्ष शरीर में रहकर मुक्ति पाने को कहते है
इसीलिए, हमारी मांसपेशियों में भी शारीरिक तनाव हो सकता है, लेकिन ऐसा केवल मस्तिष्क की अनुभूतियों और व्याख्या के कारण ही होता है। अत: अपने मस्तिष्क को चिंताओं से मुक्त करें, शरीर स्वत: ही उसका पालन करेगा। इसीलिए वास्तविक मोक्ष या वास्तविक मुक्ति, 'शरीर से मुक्ति' नहीं, बल्कि 'शरीर में रहकर मुक्ति' होती है। समस्या हमारा शरीर नहीं है, समस्या हमारा मस्तिष्क है। जब हम अपने मस्तिष्क में व्याप्त तनाव समुक्त होते हैं, तो हमारा शरीर एक खुशहाल चरण में प्रवेश करता है, जिसमें हम दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं

Posted By: Vandana Sharma