>RANCHI: मैं उसे हर पल महसूस करती हूं। लगता है कि वह मेरे आसपास ही है, मैं उसे छूने की कोशिश करती हूं लेकिन छू नहीं पाती हूं, तब लगता है कि वह हमारे बीच अब नहीं रहा। वह मेरी जिंदगी था। उसके बिना मेरी जिंदगी ठहर-सी गई है। बस हम जिंदा हैं और जिंदगी की गाड़ी चल रही है। अब कुछ नहीं बचा है। यह कहते-कहते भारती बनर्जी फफक-फफक कर रोने लगती हैं। बेटी अमृता बनर्जी उन्हें दिलासा दिलाती हैं। पिछले साल आज ही के दिन क्भ् दिसंबर को रांची लेक पार्क के उद्घाटन के मौके पर मोटर बोट पलटने से जो दुघर्टना हुई थी, उसमें इनके जवान बेटे सागरमय नितिन बनर्जी और बहू पूजा की मौत हो गई थी। रांची के बीचों-बीच स्थित बड़ा तालाब में हुई इस दुर्घटना ने सबको हिलाकर रख दिया था। आज इस दुघर्टना को हुए एक साल हो रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी न तो बड़ा तालाब में इस हादसे से कोई सबक ले पाया है और न ही अपना सब कुछ खो चुके इस परिवार को प्रशासन की तरफ से कोई इंसाफ मिल पाया है।

घर तो सूना हो गया

कोकर से तिरिल रोड जाने वाले रोड के किनारे इस एक मंजिला आवास में पिछले एक साल से कुछ नहीं बदला है। इस घर में भारती बनर्जी अपनी बेटी अमृता बनर्जी के साथ रहती हैं। अमृता बनर्जी झारखंड हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं। यह सागरमय नितिन बनर्जी का घर है। इस घर के ड्राइंगरूम में गुमसुम बैठ कर भारती बनर्जी बेटे और बहू की तस्वीरें देखा करती हैं। इस घर के कोने-कोने में बेटे-बहू की यादें बसी हैं। सागर की बनाई गई पेटिंग्स और म्यूजिकल इंस्टूमेंट्स हर जगह उनकी मौजूदगी का एहसास कराते हैं। बेटे और बहू का जिक्र आते ही वह कहती हैं कि एक साल पहले इस घर में बेटा और बहू से खुशियां ही खुशियां थीं, लेकिन क्भ् दिसंबर के हादसे के बाद सब कुछ छिन गया।

मोहल्ले में साल भर से नहीं बजा गाना

सागर का रोम-रोम संगीत में बसा था। म्यूजिक को लेकर वह इस कदर दीवाना थे कि खुद गाना गाने के साथ ही सभी प्रकार के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स भी बजाते थे। साथ ही खासकर बच्चों को भी इसकी ट्रेनिंग देते थे। जब घर में होते, तो म्यूजिक बजता रहता था। स्कूल, कॉलेज से लेकर मोहल्ले में संगीत के कई कार्यक्रमों का आयोजन भी करते थे, लेकिन उसके जाने के बाद पूरे मोहल्ले में कहीं संगीत नहीं बजा। भारती बनर्जी अपने बेटे के बारे में बताती हुई पुरानी यादों में खो जाती हैं। उनकी बेटी अम़ृता बनर्जी कहती हैं कि भैया को संगीत को लेकर गजब का जुनून था। संडे, क्भ् दिसंबर ख्0क्फ् की सुबह भी वह एक घंटे तक सिंथेसाइजर साथ मिल कर बजाए थे। नए साल के प्रोग्राम के लिए नया सिंथेसाइजर लाए थे, लेकिन क्या पता था कि आज ही वह हम लोगों से इतनी दूर चले जाएंगे।

Posted By: Inextlive