मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर की ‘अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ मलेशिया’ में एक रूसी छात्र जेहुन जाफ़र एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर वीडियो पोस्ट करते हैं.

तुर्की भाषा में एक टिप्पणी कंप्यूटर स्क्रीन पर आ जाती है. जाफ़र तुर्की नहीं समझते लेकिन अनुवाद की सुविधा से वो इसका जवाब दे पाते हैं.
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ‘सलामवर्ल्ड’ विश्व के मुसलमानों को ऐसे ही जोड़ने की कोशिश कर रहा है.
मलेशिया की क़रीब तीन करोड़ आबादी का अधिकांश हिस्सा मुसलमान हैं और इनमें से 60 फीसदी इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
इस दक्षिण-एशियाई देश के अलावा ‘सलामवर्ल्ड’ को बोस्निया-हर्ज़ेगोविना, तुर्की, मिस्र और इंडोनेशिया में फैले एक हज़ार लोगों के बीच परखा जा रहा है.
ये कंपनी नवंबर महीने में अपनी वेबसाइट को वैश्विक स्तर पर लॉन्च करना चाहती है.

‘सलामवर्ल्ड’ की दुनिया
पहली नज़र में देखने पर ‘सलामवर्ल्ड’ भी अन्य सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट जैसा ही लगता है, बल्कि सफेद और नीले रंग के पहले पन्ने के साथ फ़ेसबुक जैसा ही प्रतीत होता है.
लेकिन इसे बनाने वालों का दावा है कि कई भाषाओं में इस्तेमाल होने वाली इस वेबसाइट पर जो सामग्री होगी, वो अलग होगी.
‘सलामवर्ल्ड’ मुसलमानों के लिए एक ‘सुरक्षित’ जगह बनाना चाहता है, जहां अश्लील साहित्य और जुए जैसी ग़ैर-इस्लामी जानकारी नहीं होगी.
मसलन कुआलालंपुर के विश्वविद्यालय में पढ़ाने वालीं प्रोफेसर नूराएहन मत दाउद का कहना है कि पश्चिमी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर महिलाओं को कम कपड़ों में दिखाने वाले विज्ञापन उन्हें बुरे लगते हैं.
हालांकि अश्लीलता पर फ़ेसबुक के कड़े नियम हैं लेकिन उसपर जुआ खेलने के 'ऐप' मौजूद हैं.
सेंसरशिप
‘सलामवर्ल्ड’ नाम की ये बेवसाइट तुर्की में बनाई गई है, लेकिन कई देशों में स्थित सलाहकारों की मदद से वो ज़्यादा लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश में है. इसके लिए दुनिया के विभिन्न देशों में इस्लाम की अलग-अलग समझ को ध्यान में रखा जाएगा.
मसलन हिजाब पहने मुसलमान महिलाओं की तस्वीर इंडोनेशिया के लिए सही है लेकिन सऊदी अरब में नहीं.
लेकिन इंटरनेट का इस्तेमाल करनेवाले लोग इस तरह के नियंत्रण को पसंद करेंगे या नहीं कहना मुश्किल है. मसलन मलेशिया में इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के पहले कुछ प्रयासों का पुरज़ोर विरोध हुआ है.
एक छात्र अब्दुल हादी बिन हाजी कहते हैं, “अगर ये नियंत्रण राजनीतिक मक़सद से हो, जैसे सीरिया के असली घटनाक्रम या बर्मा में मुसलमानों पर हो रही हिंसा से हमें बेखबर रखना, तो ये हमे नामंज़ूर होगा.”
फ़ेसबुक से मुकाबला?
जानकारों के मुताबिक़ अगर दुनियाभर के मुसलमान भी ‘सलामवर्ल्ड’ का इस्तेमाल करना शुरू कर दें, तो फ़ेसबुक को टक्कर नहीं दे पाएंगे.
इंटरनेट के इस्तेमाल के रूझानों का अध्ययन करने वाली कंपनी, ‘अलेक्सा’ के मुताबिक़ फ़ेसबुक उन सभी देशों में बहुत लोकप्रिय है, जहां के लोगों के बीच ‘सलामवर्ल्ड’ अभी अपनी वेबसाइट परख रहा है.
उदाहरण के तौर पर मलेशिया में दोस्तों से कुछ कहना हो तो टेलिफ़ोन या मोबाइल से ज़्यादा फ़ेसबुक का इस्तेमाल किया जाता है.
लेकिन ‘सलामवर्ल्ड’ का एशिया-प्रशांत क्षेत्र का काम देख रहे सलाम सुलेमानोव इससे चिंतित नहीं हैं.
उनका मानना हैं कि एक विकल्प की ज़रूरत है. वे कहते हैं, “जब हम डेढ़ अरब मुसलमानों की बात करते हैं, जिनमें से कुछ मेरी सोच से इत्तेफाक़ रखते हैं, तो फिर भी वो एक बड़ी संख्या है.”

Posted By: Bbc Hindi