पहले तो मेरठ के लोगों की ओर से दिल्ली को देश की राष्ट्रीय राजधानी के सौ साल पूरे होने की खुशी में हार्दिक बधाई.

- दिल्ली का खास रिश्ता है हमारे शहर से

- मेरठ से ही दिया गया था दिल्ली चलो का नारा

मेरठ. पहले तो मेरठ के लोगों की ओर से दिल्ली को देश की राष्ट्रीय राजधानी के सौ साल पूरे होने की खुशी में हार्दिक बधाई। वैसे दिल्ली और मेरठ का नाता काफी पुराना है। बोले तो, हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ (अब दिल्ली) जितना पुराना। हमारे शहर में ‘दिल्ली’ ऐसे रचा बसा है जो हमें हर रोज याद आता है, हर मोड़ पर आता है। आइये जानते हैं -

रिश्ता जायके का

कहा जाता है कि हम मेरठ वाले बहुत बड़े जायकेबाज हैं। बात चाहे खुद खाने की हो या दूसरों को खिलाने की, हम कभी पीछे नहीं हटते। शहर में ऐसा कौन है जिसने दिल्ली छोले भटूरे का स्वाद नहीं चखा। आप किसी भी वक्त चले जाएं, देखकर लगता है मानो आधा शहर छोले भटूरे खाने के लिए कसम खा बैठा है। पिछले करीब चार दशक से मेरठी इसका स्वाद ले रहे हैं। दुकान के मालिक कुलदीप खुद दिल्ली के करोल बाग के रहने वाले हैं।

लाइफ लाइन

दिल्ली रोड मेरठ और दिल्ली के बीच किसी सेतु से कम नहीं है। ये मेरठ की लाइफ लाइन है। कभी भी इस रोड पर किसी तरह की कोई डिस्टर्बेंस होती है तो हमारा दम फूलने लगता है। दिल्ली रोड पर डेली एक लाख से अधिक वाहन दौड़ते हैं और 50 हजार से अधिक लोग इसी रोड से मेरठ से दिल्ली आवागमन करते हैं।

बिजनेस प्वाइंट दिल्ली चुंगी

शहर में दिल्ली चुंगी को कौन नहीं जानता। भले ही अब यहां अब किसी तरह की चुंगी न ली जाती हो, लेकिन पहले ये व्यापारिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण प्वाइंट था। चुंगी सिस्टम बंद होने के बाद भी इसका नाम ‘दिल्ली चुंगी’ ही कहा जाता है। आज भी यहां के आसपास के किसी मोहल्ले में जाना हो तो लोग यही कहते हैं दिल्ली चुंगी से घूम जाना।

प्रवेश द्वार

जैसे हर घर में एंट्रेंस होता है। वैसे ही मेरठ में एंटर करने के लिए भी कई दरवाजे थे। इनमें दिल्ली गेट आज भी काफी मशहूर है। इसी नाम से एक थाना भी है। मेरठ से दिल्ली और दिल्ली से मेरठ आने-जाने में इसी का इस्तेमाल करते थे। अब यहां कोई गेट नुमा कुछ भी नहीं है, लेकिन दिल्ली से अपने रिश्ते कायम रखते हुए आज भी हम इसे दिल्ली गेट ही कहते है। शारदा रोड से घंटाघर तक अब एक बड़े बाजार के रूप में बस चुका है।

दिल्ली चलो

दिल्ली चलो का नारा अक्सर किसी आंदोलन और प्रदर्शन के लिए राजनीतिक दलों या जन संगठनों द्वारा दिया जाता है। लेकिन इसकी शुरुआत भी मेरठ से ही हुई थी। 1857 की क्रांति में दिल्ली चलो का नारा पहली बार मेरठ से दिया गया। आंदोलन के विभिन्न अवसरों पर आज भी पूरे देश में इसको पुकारा जाता है।
एजुकेशन भी
एजुकेशन हब के रूप में मेरठ एक बड़ी पहचान रखता है। ऐसे में दिल्ली पब्लिक स्कूल मेरठ से अपने को कैसे अलग रखता। सालों पहले जाने माने कई स्कूल मेरठ में आए तो दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) ने भी यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पिछले डेढ़ दशक से हजारों बच्चे यहां एजुकेशन ले रहे हैं।

Posted By: Inextlive