आध्यात्मिक विकास किसी स्थान विषेष पर नहीं होता जैसे कि किसी धर्मस्थान पर या किसी नदी के किनारे पर या किसी जंगल में। यदि हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होना चाहते हैं तो वो हम किसी भी स्थान पर रहते हुए हो सकते हैं।


हालांकि कुछ आध्यात्मिक परंपराओं में  लोग जीवन और इससे जुड़ी चीजों को त्याग कर केवल अपनी आध्यात्मिक यात्रा की ओर ही ध्यान देते हैं, परंतु हमें चाहिए कि हम संपूर्ण इंसान बनें, जिसमें हम शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से विकसित हों। एक बार यह जान लेने के बाद कि हम आत्मा हैं, हमें अपनी आत्मिक शक्ति के विकास में समय लगाना चाहिए। ऐसा करने के लिए हमें कुछ आध्यात्मिक लक्ष्य तय करने होंगे। दूसरी ओर, अगर हम अपना समय अनिश्चित कार्यों में बर्बाद करेंगे, बिना जाने कि हम कहां जा रहे हैं, तो हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में बहुत मुश्किल होगी। आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारे लक्ष्य हैं ध्यान-अभ्यास में समय देना तथा अपने अंदर सद्गुणों का विकास करना। आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए हमें यह जानना चाहिए कि वास्तव में जरूरी क्या है?


हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये तथा उन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। यह जानना महत्वपूर्ण है कि कुछ चीजें हैं, जो आध्यात्मिक तरक्की में हमारी सहायता करती हैं। आध्यात्मिक प्रगति की कुंजी है मन को शांति। यदि हम अपने मन को शांत नहीं करेंगे, तो हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को कभी नहीं जान पाएंगे। सच्चाई, अहिंसा, नम्रता, पवित्रता और निष्काम सेवा जैसे सद्गुणों से भरपूर जीवन जीने से हम आध्यात्मिक मार्ग पर तेजी से तरक्की कर सकते हैं। जब हम सद्गुणों से भरपूर जीवन जीते हैं, तो हमारा मन शांत रहता है और एक बार जब हमारा शरीर और मन शांत हो जाते हैं, तो उस स्थिरता में हम अपने अंतर में प्रभु के साथ जुड़ पाते हैं। यदि हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होना चाहते हैं, तो वो हम कहीं भी रहते हुए हो सकते हैं।

एक शांत वातावरण, जिसमें कोई हलचल ना हो, हमें आध्यात्मिक प्रगति में अवश्य मदद करता है, इसीलिए हम ध्यान-अभ्यास करने के लिए एक शांत जगह ढूंढते हैं, पर जब हम आध्यात्मिक यात्रा में एक खास ड्डंचाई पर पहुंच जाते हैं, तो फिर बाहरी हलचल भी हमारे ध्यान को भंग नहीं कर पाती। आइजक न्यूटन के जीवन की घटना है कि वो सड़क के किनारे बैठे हुए थे और किसी गहन विचार में डूबे हुए थे। वो इतनी गहराई से उस विचार में खोए हुए थे कि उन्हें सामने से एक बैंड के गुजरने का भी पता भी नहीं चला। ठीक इसी तरह से जब किसी का ध्यान पूरी तरह से अंतर में प्रभु पर केंद्रित हो, तो बाहर की कोई भी चीज उसका ध्यान भंग नहीं कर पाती है। ये भी सच है कि इस अवस्था तक पहुंचने में बहुत समय लग जाता है, लेकिन हम किसी भी स्थान और किसी भी वातावरण में रहते हुए धीरे-धीरे अपना आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं। जरूरत है तो बस सच्ची लगन की- संत राजिन्दर सिंह जी महाराजeditor@inext.co.inउन्नाव पुलिस ने किया ट्वीट तो प्रियंका गांधी को करना पड़ा गया अपना ट्वीट डिलीट

Posted By: Vandana Sharma