पकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते में जमाने से तल्खी रही है। अमूमन बॉलीवुड की फिल्मों में पाकिस्तान को नकारात्मक छवि में ही दर्शाया जाता रहा है। इस बार काशवी कुछ अलग करने की कोशिश में आई हैं। लेकिन अफसोस उनकी यह कोशिश केवल शायद उनके लेखन तक ही सीमित रह जाती है। फिल्म न तो मनोरंजक बन पाई है और न ही फिल्म में वे इमोशन खुल के निखर पाए हैं जो इस तरह की रिश्तों पर आधारित फिल्मों में होती है। कुछ दृश्य हालाँकि इमोशनल करते हैं। यह एक दादी और उसके पोते की कहानी है। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : सरदार का ग्रेंडसन
कलाकार : नीना गुप्ता, अर्जुन कपूर, रकुलप्रीत सिंह, अदिति राव हैदरी, जॉन अब्राहम
निर्देशक : काशवी नायर
लेखन टीम : अनुजा चौहान, काशवी नायर
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 2. 5 स्टार

क्या है कहानी
कहानी वीर जारा, हीरोज, गदर के बीच-बीच से उठा कर गढ़ी गई है। सरदार कौर ( नीना गुप्ता) एक साइकिल कम्पनी की मालकिन है, तमाम ऐशो आराम के बावजूद उसे एक बार फिर से अपना लाहौर देखना है, जिसे उसे कई वर्षों पहले दंगे के कारण मजबूरन छोड़ना पड़ा था। उसका पोता अमरीक (अर्जुन कपूर) अमेरिका से वापस आ जाता है,जब दिल टूटता है तो वह दादी के दर्द को समझ पाता है। उसका पोता तय करता है कि वह उस लाहौर के घर को भारत में दादी के पास अमृतसर लेकर आता है। अब इस मिशन में वह कैसे कामयाब होता है, उसके साथ क्या-क्या परिस्थितियां होती हैं। इसी में आपके पूरे दो घंटे बीत जाते हैं। बीच में कुछ कॉमेडी सीन्स भी हैं। विषय के लिहाज से काशवी की अच्छी कोशिश है। लेकिन जिस हद तक फिल्म को मनोरंजक मनोरंजक बनाया जा सकता था। उस हद तक फिल्म बन नहीं पाई है। लिहाजा अंतराल के बाद फिल्म और बोझिल बनी है।

क्या है अच्छा
विषय अच्छा है और डायरेक्टर ने इस विचार को जहाँ से लिया है कि एक व्यक्ति 70 साल की आजादी के बाद पकिस्तान लौटता है और वहां फिर से उन गलियों में जाता है, जहाँ उसने इस छोड़ा था, यह एक शानदार विचार था, लेकिन बॉलीवुड मसाला फिल्म बनाने के चक्कर में इमोशन उभर नहीं पाता है। कहानी में जो फ्लैशबैक से वर्तमान समय के ट्रांजिशन दिखाए गए हैं, वे कमाल हैं।

क्या है बुरा
कहानी में वीएस मोमेंट्स की कमी है जो एक शख्स की त्रासदी को दिखा सके, जो दुःख उसे अपने वतन से बिछुड़ने का बाद होता है, कहानी का फ़िल्मी हो जाना और कलाकारों का बोझिल अभिनय कहानी को बोरिंग बना देता है।

अभिनय
यह पूरी फिल्म नीना गुप्ता की है। लेकिन वह पिछली कुछ फिल्मों से अपने किरदारों में जकड़ी नजर आ रही हैं। इसलिए टाइटल किरदार होने के बावजूद उनका अभिनय प्रभावित नहीं करता है। हालाँकि 90 साल की सरदार के किरदार में उन्होंने ढलने की पूरी कोशिश की है। अर्जुन कपूर अपनी पिछली फिल्मों से इसमें बेहतर नजर आये हैं। फिल्म में अदिति राव ने युवा सरदार की जो भूमिका निभाई है। वह दमदार है। रकुल प्रीत ने औसत काम किया है। जॉन गेस्ट भूमिका में हैं।

वर्डिक्ट
इस वक्त जब परिवारों के पास करने के लिए कुछ नहीं है तो आप खाली वक्त में परिवार के साथ यह फिल्म देख सकते हैं। राधे के टॉर्चर से तो आपको फील गुड जरूर कराएगी।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari