क्यों बच्चे सेक्सुअल एब्यूज का शिकार होने के बाद अपने पैरेंट्स से बात करने में हिचकिचाते हैं? क्या हम उनकी बात सुनने में सक्षम हैं?

चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज पर रिसर्च करते समय जब मैंने हमारी एक्सपर्ट डा. अनुजा गुप्ता से बात की तो मुझे एक बड़े सच का पता चला कि क्यों बच्चे सेक्सुअल एब्यूज का शिकार होने के बाद अपने पैरेंट्स से बात करने में हिचकिचाते हैं? जो एक बड़ा सवाल हमारे समाने है वो है कि क्या हम उनकी बात सुनने में सक्षम हैं? अपने बच्चों के साथ हमारी रिलेशनशिप कैसी है? क्या हम वाकई अपने बच्चे की बात सुनते हैं? क्या हमें उसके डर का अहसास है? क्या हम उसके बारे में जानना चाहते हैं? या क्या हम वाकई अपने बच्चे के साथ एक दोस्त की तरह पेश आते हैं?

मेरी पीढ़ी शायद अपने बच्चों के साथ ज्यादा बात करती है, हमारे पैरेंट्स के कंपैरिजन में या हम कम से कम इस बात में यकीन करते हैं लेकिन फिर भी हम और आपमें से ऐसे कितने लोग होंगे जो अपने बच्चों के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं? अगर आपकी बच्चे के साथ एक स्वस्थ बातचीत हो, उस पर भरोसा हो और उसके साथ दोस्ती हो, तो वो आपसे सहजता से और बिना डरे अपनी हर बात कह सकेगा.

यकीनन हम प्रार्थना करते हैं कि किसी भी बच्चे के साथ सेक्सुअल एब्यूज जैसा दर्दनाक हादसा कभी पेश न आए लेकिन अगर ऐसा कुछ उसके साथ होता है तो उसे एक ऐसा माहौल दीजिए कि वो आपसे इस बारे में खुलकर बात कर सके. हमें उन्हें वो ताकत देनी होगी कि वो अपनी खुशी के साथ अपना गम भी हमसे शेयर कर सकें. जब मां-बाप और बच्चों के बीच बातचीत का रास्ता खुलता है तो कई सारी समस्याओं का हल अपने आप ही निकलने की शुरुआत हो जाती है.
 
बच्चों से बातचीत की नींव उन पर भरोसे के साथ तैयार होती है. अगर हम अपने बच्चों से बात करना चाहते हैं तो पहले उन्हें यह भरोसा दिलाना होगा कि हम न केवल उनकी बात सुनेंगे बल्कि उस पर यकीन भी करेंगे. हमें उनमें यह आत्मविश्वास जगाना होगा कि हम उनकी बात को ध्यान से सुनते हैं और उन पर भरोसा भी करते हैं.

 
एक और बात जो मुझे हरीश अय्यर की मां पदमा  से पता चली वो ये कि जब कभी भी हमारा बच्चा चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज के बारे में हमें कुछ बताता है तो अक्सर हमारा पहला ख्याल होता है कि हम अपने ही परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ कोई एक्शन कैसे ले सकते हैं? हमारे परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी वगैरह वगैरह.
पदमा की ही तरह हम पहले तो ऐसी बातों की संभावना को मानने से ही इंकार कर देते हैं और फिर इसे छिपाने की कोशिश करते हैं. लेकिन उस बच्चे के बारे में भूल जाते हैं. एक बच्चा जो शायद चार या पांच साल का है और जो एक कभी न भूल सकने वाली तकलीफ से गुजरा है. क्योंकि हम उस बच्चे के मां-बाप हैं तो वो सिर्फ हमारे पास ही आ सकता था, उस बच्चे का क्या? हमारा बच्चा हमारा प्राइमरी कंसर्न होना चाहिए और बाकी चीजें सेकेंडरी होनी चाहिए. ऐसे समय में हमें सिर्फ यह सोचना चाहिए कि बच्चा किस तकलीफ से गुजरा रहा होगा जो बच्चे की भलाई के लिए होगा ताकि इस दर्द से बाहर आने की इस पूरी प्रॉसेस में बच्चा और मजबूत बन सके.
चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज को एक क्राइम की तरह देखना होगा. आपके घर में कोई चोरी हो तो उसके बारे में शोर मचाना बंद करिए, लेकिन अगर घर में किसी बच्चे के साथ एब्यूज हो रहा है तो हमें चुप्पी तोडऩी होगी. आपको कहना होगा कि कैसे कोई भी मेरे घर में आकर मेरे बच्चे के साथ यह हरकत करने की जुर्रत कर सकता है. इससे भी कहीं ज्यादा आपके बच्चे को इस बात का अहसास होना चाहिए कि उसकी सिक्योरिटी आपके लिए कितनी माएने रखती है. लोकसभा में चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज से जुड़े एक बिल को तैयार करने का काम चल रहा है और हमें उम्मीद है कि यह एक मजबूत और प्रभावशाली बिल होगा. हम उम्मीद करते हैं कि यह बिल जल्द आए.

अंत में मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा कि हम अक्सर सेक्सुएलिटी को लेकर संकीर्ण विचारधारा रखते हैं और शायद तभी इसका यह भयानक रूप हमारे सामने आता है. मैं उम्मीद करता हूं कि आने वाले समय में हम अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर डरेंगे नहीं बल्कि इसके साथ डील करना सीखेंगे.

Posted By: Surabhi Yadav