बस कुछ लेसन इधर-उधर कर बदल दी जाती है पूरी किताब

पैरेंट्स स्कूलों की मनमानी का नहीं कर पाते हैं विरोध

थक हारकर नई किताब के लिए करनी ही पड़ती है जेब

ALLAHABAD: मिल बैठे हैं तीन यार (स्कूल, पब्लिशर्स और दुकानदार)। जम गई है जोड़ी, फेंटे जा रहे हैं पत्ते (पैरेंट्स)। तीन यारों के चक्कर में पैरेंट्स की हालत बुरी है और पहले एडमिशन फिर ड्रेस और अब बुक्स के नाम पर उनकी जेब ढीली करने का प्लेटफार्म तैयार हो गया है। सिर्फ एक या दो लेसन इधर-उधर कर पैरेंट्स को नई किताब खरीदने के लिए मजबूर करने का खेल शुरू हो चुका है। ऐसा इसलिए कि पुरानी किताब स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट्स आपस में बदल ना सकें।

हर साल पड़ता है बोझ

सीबीएसई से लेकर आईसीएसई बोर्ड के स्कूलों में तकरीबन हर साल नई किताबों को खरीदने का बोझ पैरेंट्स पर डाला जाता है। कमीशन के चक्कर में स्कूल पैरेंट्स को इसके लिए विवश करते हैं। बच्चों के उज्जवल भविष्य की चाह में पैरेंट्स स्कूलों की मनमानी झेलने को विवश होते हैं।

सब होते हैं खेल में शामिल

हालांकि दुकानदार बात करने पर कहते हैं कि पूरा खेल पब्लिशर्स और स्कूल के बीच चलता है। स्कूलों की डिमांड के कारण ही उन्हें नए पब्लिशर्स की बुक्स रखनी पड़ती है। चाह कर भी वे नई किताबों से दूरी बनाने में असफल होते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि वे भी इसमें बराबर के हिस्सेदार होते हैं।

ताकि एक-दूसरे को न दे पाएं बुक्स

क्योंकि यदि बुक्स नहीं बदली गई तो स्टूडेंट्स आपस में पुरानी बुक्स एक-दूसरे को देकर काम चला लेते हैं, सिर्फ इसे रोकने के लिए हर साल बुक्स बदल दी जाती है। ऐसे में जिन बच्चों के पैरेंट्स की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती, उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

नए सत्र में किताबों के सेट का रेट

नर्सरी 2649

एलकेजी 3271

यूकेजी 3189

क्लास 1 3589

क्लास 2 4195

क्लास 3 4587

क्लास 4 4527

क्लास 5 4852

क्लास 6 5641

क्लास 7 5962

क्लास 8 6270

प्राइवेट स्कूलों की ओर से हर साल किताबों या पब्लिशर्स में बदलाव किया जाता है। ऐसे में पैरेंट्स पर अनायास बोझ बढ़ता है। एनसीईआरटी की किताबों के स्थान पर प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स पर बैन होना चाहिए। तभी व्यवस्था में सुधार हो सकेगा।

शैलेश कुमार पाण्डेय

बेटी अभी काफी छोटी है। नर्सरी में भी किताबों का बोझ इतना होता है कि उसे उठाना कष्टकारी लगता है। लास्ट इयर की किताब की व्यवस्था करने की सोचें तो भी संभव नहीं हो पाता। क्योकि किताबों में हर साल बदलाव हो जाता है।

राम अवतार

स्कूल अपनी कमीशनबाजी के चक्कर में अनयास पैरेंट्स पर प्रेसर बनाते हैं। नए पब्लिशर्स अधिक कमीशन देते हैं। कमीशन के हिसाब से ही हर साल किताबों में बदलाव किया जाता है।

राहुल

स्कूलों की मनमानी हर साल पैरेंट्स को परेशान करती है। लेकिन पैरेंट्स भी लाचार रहते हैं। चाह कर भी कोई आवाज नहीं उठा सकते हैं। क्योंकि उन्हे बच्चों का करियर दिखाई देता है।

हिमांशु

बॉक्स

निजी स्कूलों की मनमानी पर गरजे पैरेंट्स

निजी स्कूलों की मनमानी और साल दर साल किताबों व कापियों के नाम पर होने वाली वसूली को लेकर बुधवार को पैरेंट्स ने मेडिकल कालेज चौराहे पर प्रदर्शन किया। वीर शिरोमणि रूपन बारी युवा सेवा संस्थान के बैनर तले पैरेंट्स ने प्रदर्शन किया। संस्थान के अध्यक्ष प्रदीप बारी ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश 2016 के नियम को लागू किया जाए, जिसमें न्यायालय के कथनानुसार सभी नेता, मंत्री, विधायक एवं अधिकारी के बच्चों का सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार्य किया जाए। इससे सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार हो सकेगा। इस दौरान स्कूलों द्वारा एडमिशन फीस, किताब, कापियों, विद्युत खर्च, एसएमएस खर्च आदि के नाम पर होने वाली मनमानी वसूली का विरोध किया गया। अभिभावक एकता समिति की ओर से प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों द्वारा प्रत्येक वर्ष मनमाने ढंग से की जा रही फीस वृद्धि को लेकर पुतला दहन किया गया। सीबीएसई के रीजनल कार्यालय पर समिति की अगुवाई में लोगों ने प्रदर्शन किया। सीबीएसई से हस्तक्षेप करने और जांच की मांग की गई। इस दौरान समिति के प्रदेश अध्यक्ष विजय गुप्ता, विकास अग्रहरि, इमरान अली, सुरेश भारतीय समेत अन्य लोग मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive