-शिवकुटी में हुई घटना ने सामाजिक तानेबाने पर सवाल

-समाज शास्त्री और मनोचिकित्सक भी रिश्ते में शादी के समर्थन में नहीं

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ALLAHABAD: कितनी आजादी दी जा सकती है आज के यूथ को? आजादी के नाम पर क्या नैतिक मूल्यों, परंपराओं को तोड़ने की इजाजत उन्हें दी जा सकती है? पैरेंट्स को किस जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे युवाओं की जिद किस हद तक स्वीकार करनी चाहिए? शिवकुटी में हुई घटना से ये सवाल खड़े हुए हैं। इस सवाल का जवाब हमने खोजने की कोशिश की एक्सप‌र्ट्स से बात करके। आइए जानते हैं, किसने क्या बताया।

आज के बच्चे जिस ओर जा रहे हैं, वह चिंताजनक है। बेसिकली इसके लिए पैरेंट्स भी जिम्मेदार हैं। वह बच्चों को बेहतर फ्यूचर देने में कोई कसर नहीं रखना चाहते। इसके लिए मां-बाप दोनों जॉब करने लगे हैं। वे बच्चों को सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं। लेकिन, चेक करने का उनके पास वक्त नहीं है कि बच्चा जा कहां रहा है। केवल पैसा खर्च करने से बच्चों का फ्यूचर बनने वाला नहीं है। उन्हें परम्परा, संस्कार, संस्कृति और सामाजिक बंधनों की जानकारी तो घर से ही मिलेगी। यह पैसा नहीं दे सकता।

-डॉ। प्रदीप भटनागर

वरिष्ठ पत्रकार

टेक्नोलॉजी उन्नति कर रही है। लेकिन, उससे ज्यादा तेजी से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। पारिवारिक विघटन से रिश्तों का मूल्य खत्म हो गया है। लोग केवल पैसा कमाने और अपनी जिंदगी जीने में व्यस्त हैं। पैरेंट्स खुद रिश्तों को इंपार्टेस नहीं दे रहे हैं और बच्चों से इसकी अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। यही वजह है कि आज का यूथ सोशल बैरिकेडिंग को तोड़ कर आगे बढ़ रहा है।

-डा। कमलेश तिवारी

मनोवैज्ञानिक

समाजिक नियम-कानून बदल रहा है। भारतीयता का मूल चेंज हो रहा है। लोगों का खुद पर नियंत्रण नहीं है। इससे रिश्तों का भी महत्व खत्म हो गया है। माता-पिता, टीचर, समाज सुधारक कोई भी तो अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है। कॅरियर की ओर सब भाग रहे हैं। इस चक्कर में आने वाली पीढ़ी की नीव कमजोर कर रहे हैं। हर किसी को कंज्यूमर सोसाइटी की लत लग गई है। यह स्थिति इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है।

-प्रो। दीपा पुनेठा

साइकोलॉजिस्ट

ब्लड रिलेशन में शादी होने से जेनिटिक प्रॉब्लम के खतरे बढ़ जाते हैं। इसीलिए रिश्तों की बैरिकेडिंग बनाई गई। साइंस भी इससे इत्तेफाक रखता है। तमाम बीमारियां ऐसी हैं जो जेनेटिक होती हैं। ब्लड रिलेशन में शादी से इनके बढ़ने का खतरा अपने आप बढ़ जाता है। इसीलिए ब्लड रिलेशन में रिश्ता बनाने की इजाजत साइंस भी नहीं देता। इसके लिए जरूरी है कि घर का माहौल ऐसा हो कि यूथ घर के माहौल में घुटन महसूस न करे। उम्र बढ़ने के साथ एंटी सेक्स से अट्रैक्शन कॉमन है। यह आप्च्र्युनिटी उन्हें बाहर नहीं मिली तो वह घर में ही इसकी संभावनाएं तलाशने लगेंगे। तह तक जाएंगे तो यह फैक्ट भी स्थापित मिलेगा कि उन बच्चों के साथ यह प्राब्लम नहीं होती जिनके पैरेंट्स ज्यादा ओपन माइंड होते हैं।

-डॉ। अभिनव टंडन

साइकियाटिस्ट

सोशल वैल्यू गिराने में टीवी का महत्वपूर्ण रोल है। कुछ चैनल्स पर आज कल ऐसे सीरियल्स आ रहे हैं, जिनमें युवक अपनी चचेरी, ममेरी बहन या बुआ की बेटी से प्यार करता है। ये लव इफेक्ट दोनों तरफ से होता है। इस तरह के सीरियल्स स्पेशली यूथ के दिमाग पर असर डाल रहे हैं। सीरियल्स में देखने के बाद उनके मन में भी सवाल उठता है कि वे कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं? उनके समाज में कोई बंदिश नहीं है? पूरी आजादी है? फिर हम पर ही पाबंदी क्यों?

-डा। हेमलता श्रीवास्तव

समाज शास्त्री

रिश्तों की अहमियत खत्म होने की वजह

-संयुक्त परिवार का खत्म होना

-रिश्तेदारों से मेल-जोल कम होना

-पैसा को सबसे ज्यादा इंपार्टेस

-रिश्ते निभाने के लिए वक्त न होना

-फैमिली में डिस्प्यूट

-माडर्न सोसाइटी में सभ्यताओं का कम्पैरीजनवो कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं

-रिश्ते की संजीदगी खत्म होने से यूथ को केवल लड़का-लड़की ही दिखता है

-रिश्तों की समझ खत्म हो गई है कि लड़का-लड़की या आदमी-औरत के साथ ही उनकी पहचान उनके रिलेटिव के तौर पर भी है।

बदलाव के लिए जरूरी

-रिश्तों के महत्व को समझना होगा

-बच्चों और युवाओं को सामाजिक और नैतिक मूल्यों की जानकारी देनी होगी

-उन्हें बताना होगा कि मामा का बेटा-बेटी, बुआ का बेटा-बेटी, चाचा का बेटा-बेटी भी उनके भाई-बहन की तरह ही हैं

-एहसास कराना होगा कि सामाजिक बंधन बोझ नहीं जरूरत हैं

-बच्चों को रुढि़वादिता की बेड़ी में जकड़ें नहीं

-बच्चों पर नजर रखें, लेकिन पाबंदी न लगाएं

-ज्यादा सख्ती और पाबंदी का होता है गलत रिएक्शन

Posted By: Inextlive