रांची: मानव तस्करी के लिए बदनाम झारखंड में अक्सर मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के मामले अक्सर सामने आते हैं। ऐसे में ये जुर्म करने वाले दोषियों को सजा दिलाने के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत कैसे कार्रवाई करनी है? इसे लेकर रांची में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया है, जिसमें बालमित्र थाना के पुलिसकर्मियों को पॉस्को एक्ट से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया, ताकि वे बेहतर अनुसंधान कर आरोपियों को सजा दिला सकें।

पुलिस की सहायता जरूरी

स्वयंसेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट व जिला बाल संरक्षण इकाई के संयुक्त तत्वावधान में पुलिस थानों में पदस्थापित बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारियों के लिए कार्यशाला आयोजित हुई। इस दौरान संस्था की निपा बसु ने कहा कि पुलिस की सहायता से ही पीडि़त बच्चों के अंदर हिम्मत लाई जा सकती है, ताकि वे अपने साथ हुई घटनाओं का जिक्र कर सकें।

बेहतर संवाद कायम करें

आमतौर पर बच्चों के साथ उनके करीबी यौन उत्पीड़न करते हैं। ऐसे मामले थानों तक बहुत कम ही पहुंच पाते हैं। यही वजह है कि रांची एसएसपी अनीश गुप्ता ने बच्चों को लैंगिक शोषण से बचाव के लिए उनसे बेहतर संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चों के साथ होने वाले अपराध को रोकना है तो उनको जागरूक करना होगा ताकि वे अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में अभिभावकों को ठीक से बता सकें। बालमित्र थाने से आए पुलिसकर्मियों को एसएसपी ने पॉक्सो एक्ट की महत्वपूर्ण बातों को भी स्पष्ट किया।

पसंद की जगह पर दर्ज करें बयान

कार्यशाला के दौरान बताया गया कि पॉक्सो एक्ट की जांच उपनिरीक्षक या इससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं। पीडि़त बच्चों के बयान लेने के लिए उन्हें थाने नहीं बुलाया जाए। बल्कि उनकी पसंद की जगह पर सादे वेश में जाकर पुलिस अधिकारी बयान दर्ज करें। एक खास बात यह भी बताई गई कि पीडि़त बच्चों से उनकी भाषा में ही धारा 164 के तहत बयान कराए जाएं।

रिपोर्ट के आधार पर लें एक्शन

पॉक्सो एक्ट के मामलों की जांच में सबसे बड़ी बाधा उम्र के निर्धारण को लेकर होती है। कई मामलों में पीडि़त नाबालिक के उम्र का निर्धारण करने में कागजी दस्तावेज नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। ऐसे में मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया जाता है। जिसमें उम्र 17 या 18 वर्ष बताई जाती है। ऐसे में कार्रवाई में पेंच फंसता है। 18 से कम हुआ तो पॉक्सो के दायरे में आएगा और ज्यादा हुआ तो आईपीसी के तहत केस बनेगा। इस सवाल पर अधिकारियों ने कहा कि मेडिकल साइंस में एक साल कम ज्यादा ही बता सकते हैं। अधिकारी अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर काम करें।

चौंकाने वाले आंकड़े

मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के पिछले सालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। झारखंड में बीते एक साल में अलग-अलग जिलों से 37 ऐसे मामले आए हैं, जिनमें बच्चों का यौन उत्पीड़न किया गया है। एक अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 के आंकड़ों की मानें तो झारखंड में फीमेल ट्रैफिकिंग के 176 मामले सामने आए हैं, जबकि मेल ट्रैफिकिंग के 33 मामले आए हैं।

पोक्सो एक्ट के तहत मामले

वहीं, इस दौरान पॉक्सो एक्ट के तहत फीमेल के 37 और मेल के 10 मामले थानों में दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा ऐसे कई और मामले भी जानकारी में आए हैं जिन्हें थाने तक पहुंचने से रोक दिया गया। अगर इन मामलों को भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 100 से भी अधिक होगी।

Posted By: Inextlive