एक राजा था। वह हमेशा दुखी रहता था। उसका इलाज करने के लिए राज्‍य का कोई न कोई वैद्य लगा ही रहता था। लेकिन उसकी बीमारी थी कि दूर होने का नाम ही नहीं ले रही थी। राज्‍य का काम प्रभावित होने लगा। तभी एक व्‍यक्ति आया और उसने राजा के स्‍वस्‍थ होने के लिए एक उपाय बताया। सब हंसने लगे। लेकिन राजा ने सोचा जब इतने उपाय आजमाए हैं तो एक और सही। बस फिर क्‍या था उस व्‍यक्ति के बताए नुस्खे की खोज होने लगी। किसी को नुस्‍खा नहीं मिला। अंत में राजा खुद नुस्‍खा खोजने निकलना पड़ा... क्‍या राजा को वह नुस्‍खा मिला... और मिला भी तो वह नुस्‍खा क्‍या था...


सुखी व्यक्ति का कपड़ा पहनेंराजा की बीमारी ठीक नहीं हो रही थी तो एक व्यक्ति ने आकर उन्हें सलाह दी कि आप किसी सुखी व्यक्ति का कपड़ा पहनें तो ठीक हो सकते हैं। राज कर्मियों को लगा कि वह व्यक्ति बकवास कर रहा है। जब एक से एक काबिल वैद्य के नुस्खों से राला को लाभ नहीं मिला तो यह टोटका क्या काम करेगा। लेकिन बीमारी से परेशान राजा ने सोचा जहां इतने नुस्खे आजमाए एक और आजमा लेते हैं। क्या पता यह काम कर जाए। वैसे भी जहां दवा काम नहीं करती किसी की दुआ ही काम कर जाए।नहीं मिला राज्य में सुखी व्यक्ति


राजा की आज्ञा पाकर कर्मचारी सुखी व्यक्ति की तलाश में निकल पड़े। लेकिन उन्हें यह काम जितना आसान लग रहा था वह था नहीं। धीरे-धीरे काम मुश्किल होता जा रहा था। राज्य में सुखी व्यक्ति नहीं मिल रहा था। एकबारगी तो ऐसा लगा जैसे राज्य में राजा ही नहीं सब दुखी हैं। सब ओर से निराशाजनक खबरें मिलने के बाद राजा आश्चर्य में पड़ गया। उसने सोचा राज्य में खुशहाली है ही नहीं! यह बात हजम नहीं होती। बस फिर क्या था। राजा ने सोचा चुपके से खुद ही इस बात की पड़ताल की जाए।राजा खुद निकला नुस्खा खोजने

राजा भेस बदल कर राज्य में निकल पड़ा ताकि वह कोई एक सुखी व्यक्ति की तलाश कर सके। राजा एक दुकान में गया वहां उसने पूछा क्या आप सुखी हैं। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि अरे भाई पूछो मत जीवन में बहुत दुख है। लोग उधार चुकाने को तैयार नहीं। राजा के कर्मचारी कर वसूलने के लिए हमेशा सिर पर खड़े रहते हैं। जब गृहस्थ ही दुखी हैं तो हमें क्या मिलेगा और हम राजा को क्या देंगे। राजा भी बीमार पड़ा है। कर्मचारी उसका बेजा फायदा उठा कर लोगों को परेशान कर रहे हैं। यह सुनकर राजा और चिंतित हो गया और उसका दुख और बढ़ गया।मिला सुखी रहने का नुस्खा

राजा सीधे खेतों की ओर निकल पड़ा। वहां पसीने से तरबतर निराई कर रहे एक किसाने से पूछा भइया तुम सुखी हो। खुरपी एक ओर रखते हुए किसान बोला हां भइया मजे में हैं आप बताओ। राजा ने सोचा यह किसान तो सुखी है। इसका कपड़ा मांग लें लेकिन इसने तो कपड़ा पहना ही नहीं है। अब राजा को समझ आ गया कि परिश्रम ही सुखी रहने का एकमात्र नुस्खा है। मैं परिश्रम करूंगा तो राज्य में हर कोई अपने आप सुखी हो जाएगा। अब राजा की बीमारी दूर हो गई थी और वह पूरी तन्मयता से राजकाज में रम गया। धीरे-धीरे राज्य की सभी समस्याओं को उसने दूर कर दिया। अब राजा ही नहीं राज्य के लोग भी सुखी थे।

Posted By: Satyendra Kumar Singh