छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: इस्लाम की शिक्षा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की है और जो भी इसके विरुद्ध जाता है, अलगाववाद की बात करता है, हिंसा की बात करता है, समाज को तोड़ने की बात करता है उसका नाम चाहे जो हो उसे खुद को मुसलमान कहने का अधिकार नहीं। इस्लाम ने सारे धमरें, धार्मिक ग्रन्थों, धर्म के प्रगवर्तकों और धर्मगुरुओं का सम्मान करना सिखाया है। न अल्लाह केवल मुसलमानों का है न उसके पैगम्बर केवल मुसलमानों के हैं और न कुरान केवल मुसलमानों का है। यह बातें इस्लामी विद्वान प्रोफेसर शमीम मुनअमी ने उपस्थित शिक्षक-शिक्षिकाओं व गणमान्य लोगों को संबोधित करते हुए बुधवार को कही। वे बतौर मुख्य अतिथि इस्लाम की नजर में बहुलता मूलक समाज और सह-अस्तित्व के विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपनी बात को समेकित करते हुए कहा कि भारत के बहुलतामूलक समाज में शांतिपूर्ण ढंग से जीवन बिताने का सबसे अच्छा उदाहरण सूफीसंत हैं।

गुरु गोविंद सिंह एक तरफ औरंगजेब से लड़ रहे थे और दूसरी ओर मियां मीर से श्रद्धा रखते थे। आज के समाज को भी औरंगजेब की नहीं मिया मीर के इस्लाम की आवश्यकता है जिन्होंने स्वर्ण मंदिर की आधारशिला रखी थी। इस कार्यक्रम का आयोजन कॉलेज के सेंटर फॉर एकैडमिक एक्सेलेंस की ओर से किया गया। इसके संयोजक डॉ। इफ्तेखार नबी ने अतिथियों और मुख्य वक्ता का स्वागत किया। प्रोफेसर अहमद बद्र ने मुख्यवक्ता का परिचय कराया तथा विषय प्रवेश किया। मौके पर प्राचार्य डॉ। मोहम्मद जकरिया, डॉ। इंद्रसेन सिंह, डॉ। मोहम्मद रेयाज, मोजीब आलम, डॉ। अशरफ बिहारी, डॉ। अनवर आलम, डॉ। अनवर शहाब और गौहर अजीज सहित कई लोग उपस्थित थे।

Posted By: Inextlive