Patna: हर दिन आम Patnaites को जिन-जिन problems से जूझना पड़ता है वह किसी भी राज्य की राजधानी के लिए अजूबे से कम नहीं है. मगर शहर की शर्मनाक सच्चाइयां VVIPs को नहीं नजर आती हैं.

First wonder 
Traffic without signal 
डेवलपमेंट की बातें बड़ी और हाईटेक हैं लेकिन ट्रैफिक रेगुलेट करने के लिए ऑटोमैटिक सिग्नल तक नहीं है। राजधानी का डाकबंगला चौराहा, बोरिंग रोड चौराहा या फिर बेली रोड, कहीं भी ट्रैफिक सिग्नल नहीं हैं। जबकि शायद ही कोई दूसरा स्टेट होगा जिसके कैपिटल में ट्रैफिक सिग्नल नहीं हो। यह शुरू होकर बंद भी हो गया। ट्रैफिक के कई एसपी आए और चले गए। किसी से यह काम नहीं हो सका सिर्फ कागजों पर ही प्लानिंग होती रही.

- 2004 के आसपास कोलकाता की कंपनी बेबेल मीडिया को ट्रैफिक लाइट लगाने दिया गया।
- महीनों बाद यह खराब होने लगी और कंपनी ने इसका मेंटेनेंस नहीं किया, कंपनी पर बुद्धा कॉलोनी थाना में एफआईआर है. 
- बेली रोड, डाकबंगला और बोरिंग रोड में ट्रायल के तौर पर ट्रैफिक सिग्नल लगे, लेकिन वो भी फेल रहे।
- घंटों ट्रैफिक पोस्ट पर करना होता है लोगों को इंतजार. 

Second wonder 
Parking on road  
शायद पटना अपने आप में अनोखा शहर है, यहां सड़क पर ही गाडिय़ां पार्क कर दी जाती हैं। हो भी क्यों ना, मजबूरी है। एक तो व्हीकल्स की बढ़ती संख्या और ऊपर से कोई पार्किंग प्लेस नहीं। ऐसे में आम पब्लिक के लिए तो मुश्किल बड़ी है। आराम से होटल और रेस्टोरेंट खोलिए मगर पार्किंग की चिंता ना कीजिए, क्योंकि सड़क और फूटपाथ है नहीं। सालों से इस प्रॉब्लम को पटनाइट्स झेल रहे हैं, सारे हुक्मरान यहीं बैठते हैं, मगर इसपर कोई नहीं सोचता। जब भी मन किया कुछ चालान काटकर अपना काम पूरा कर लेते हैं। पुलिसिया वसूली हर जगह है.

- शहर में चार आईडेंटीफाइड पार्किंग प्लेस हैं, इसमें अशोक राजपथ पर दो, एक डाकबंगला और एक सिविल कोर्ट के पास का एरिया है।
- हड़ताली मोड़ से राजापुर पुल तक बने पुराने पार्किंग एरिया को तोड़कर नया ढांचा तो दिया गया लेकिन वो सफिशिएंट नहीं है. 
- नगर निगम के पास फिलहाल पार्किंग को लेकर कोई प्लानिंग नहीं है। नतीजा मेन सड़कों पर बेतरतीब गाडिय़ां खड़ी रहती हैं।
- एग्जीबिशन रोड, फ्रेजर रोड, बोरिंग रोड, पाटलिपुत्र एरिया में पार्किंग के नाम पर तो मजाक ही होता है.

Third wonder 
Unplanned in planned way
अपनी सिटी इंडिया में एक मात्र कैपिटल होगी, जहां मास्टर प्लान फाइलों में ही रह गया। बेतरतीब बसे शहर में पानी का जमाव, नाले की कमी, तंग गलियों में ऊंची इमारत शहर की पहचान बनती जा रही है। शहर में हर जगह गंदगी है। इसको लेकर लगातार हाईकोर्ट की फटकार मिली है और ऑन द स्पॉट रिकॉर्डिंग हो रही है। पीएमसी में मेयर दोबारा आ गए, कमीश्नर बदलते चले गए मगर, कोई सुधार नहीं। पीएमसी के निकाले टेंडर तक पर कोई ध्यान नहीं देता। अरबन डेवलपमेंट के प्लांस भी सिर्फ बजट को खत्म करने के लिए होते हैं। जहां अतिक्रमण हटाने से ही काम हो जाएगा वहां फ्लाईओवर बना दो और जहां ट्रैफिक स्लो है, वहां सड़कें निकाल दो। आगे की कोई सोच नहीं, सिर्फ 5 से 15 साल के लिए काम चल जाए। वैसे भी अफसर का ट्रांसफर तीन साल में और सरकार पांच-पांच साल में।
- शहर के लैंड यूज को लेकर कोई प्लान नहीं है. 
- मास्टर प्लान के नाम पर सिर्फ बयान निकलते हैं लेकिन ग्राउंड लेवल पर सब नदारद।  
- शहर के आसपास के गांव पर भी बेतरतीब निर्माण हो रहा है, उस पर किसी का ध्यान नहीं. 
- गार्बेज ट्रीटमेंट प्लांट तक की व्यवस्था नहीं है। लिहाजा एक जगह का कचरा दूसरी जगह फेंका जा रहा है।
- किसी भी जगह का नक्शा आसानी से पास करवाया जा सकता है।
- बारिश में साल-दर-साल जलजमाव की स्थिति भयावह होती जा रही है।  

Forth wonder
उड़ जाती है थाने की छत
स्टेट कैपिटल जहां डीजीपी से लेकर पुलिस के सारे बड़े ऑफिसर्स बैठते हैं, लेकिन यहां के थानों का हाल किसी से छिपा नहीं। कुछ थानों को तो चमका दिया गया, मगर अभी भी ज्यादातर थाने अपनी किस्मत पर रो रहे हैं। आलम यह है कि शहर के पुराने थाने में एक पीरबहोर थाने की छत अचानक गिर गई है। छह महीने से अधिक समय बीत गया लेकिन अब तक उसे कोई देखने वाला नहीं. 

- कई थानों पर करोड़ों रुपए खर्च हुए लेकिन ज्यादातर थाने अब भी बदहाल।
-कुछ थाने किराए के दो कमरों में चल रहे हैं जहां फैसिलिटीज अब भी नहीं है।
-गर्दनीबाग, एसके पुरी और बहादुरपुर थाना का एग्जांपल ही शहर का हाल बताने के लिए काफी है।
-जमीन मिलने के बाद भी कुछ थानों का काम वर्षों से रुका पड़ा है.

Fifth wonder 
Model junction for what? 
हर दिन सैकड़ों ट्रेन और लाखों लोग पटना जंक्शन पर आते हैं। इस दौरान ना तो स्टेशन की प्रॉपर सफाई हो पाती है और ना ही किसी तरह की सुविधा मिलती है। एंट्री प्वाइंट पर दिन रात जाम लगा रहता है और जैसे ही प्लेटफार्म नंबर एक पर जाते हैं तो आपको बेतरतीब वेंडर वाले नजर आते हैं। डिस्प्ले सिस्टम कभी खराब तो कभी चेकिंग के नाम पर कुछ भी नहीं हो पाता है। जीआरपी दिख तो जाती है लेकिन काम नहीं करती। स्टेशन पर इंक्रोचमेंट है तो कोई सरोकार नहीं। स्टेशन की सफाई सीनियर ऑफिसर को दिखाकर फिर कूड़े में तब्दील हो जाता है.

- वेटिंग रूम में समय गुजारना मुश्किल होता है। यहां मच्छरों का आतंक रहता है. 
- प्लेटफार्म नंबर एक को छोड़कर कहीं भी टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है।
- जंक्शन के हर प्लेटफार्म पर बेगर्स और मेंटल केस. 
- स्मैक और दूसरे ड्रग्स लेने वालों का अड्डा बना हुआ है। स्मगलर्स के लिए भी यह सेफ जोन है. 
- सिक्योरिटी के नाम पर गेट तो लगा है लेकिन किसी की जांच नहीं होती. 
- पार्किंग में कोई भी गाड़ी पार्क कर सकता है, उसकी जांच तक नहीं होती. 

Sixth wonder 
No public transportation 
बिहार से अलग हुए झारखंड में रांची सहित तीन शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्विस स्मूथली रन कर रही है और सात अन्य शहरों में बस चलाने की प्लानिंग है। लेकिन अपने पटना में कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं। सिर्फ लूट ट्रांसपोर्ट काम करता है। ऑटो, बस और टैक्सी, जिसका मन जैसे करे ठग ले। सिटी सर्विस के नाम पर 70 से अधिक गाडिय़ां चली और बंद हो गईं मामला टैक्स और स्टैंड को लेकर अटका है। सरकार पीपीपी मोड पर बस चलाने वाली एजेंसी को कोई सुविधा नहीं मिलती. 

- पूरे स्टेट में गवर्नमेंट की 80 बसें और पीपीपी मोड पर चलाने वाले को नहीं मिल रही है सुविधा।
- टेंपो के सहारे ट्रैवल करते हैं पटनाइट्स, हर दिन मनमाना किराया देने से रहते हैं परेशान।
- गल्र्स और लेडीज के लिए चलाई जाने वाली पिंक बस कुछ महीनों में ही बंद हो गई. 
- गवर्नमेंट की प्रायॉरिटी लिस्ट में ट्रांसपोर्टेशन का कोई मतलब नहीं है. 

Seventh wonder 
Waterlogging पूरे साल
सिवरेज सिस्टम पूरी तरह बदहाल है। एक घंटे भी अगर बारिश होती है तो शहर में ऐसे सड़कों की तलाश मुश्किल है, जहां वाटरलॉगिंग न हुआ हो। नाले के निर्माण में इतनी गड़बडिय़ां है कि नाले का पानी सड़क पर आ जाता है। पाटलिपुत्र एरिया में सड़कों का पानी नाले में गिरने तक की भी जगह नहीं बनी है। राजेंद्र नगर, कंकड़बाग और शहर के दूसरे कई एरिया में कमर भर पानी से लोगों को आज भी गुजरना पड़ रहा है। कंस्ट्रक्शन सतही होता है। अब इसे हर साल मरम्मत करने की जरूरत पड़ती ही है। सिटी अनप्लांड और नाली निकासी पर कोई भी ठोस प्लान नहीं बनाया जा सका है। कभी पाइप लिकेज तो कभी नाली ओवरफ्लो से सालों भर प्रॉब्लम्स झेलनी मजबूरी है. 

- वाटरलॉगिंग की वजह से शहर में आना-जाना मुश्किल हो जाता है. 
- कई लोग अपने एरिया को छोड़कर दूसरे एरिया में शिफ्ट कर जाते हैं।
- गटर और नाले की प्रॉपर क्लीनिंग नहीं होने से गंदा पानी घरों में घुस जाता है।
- बाईपास एरिया में अब भी डेवलपमेंट हो रहा है लेकिन सीवर प्लान पर कहीं भी काम नहीं हो रहा है. 

 

 

Posted By: Inextlive