सऊदी महिला वोजदान शहरखानी इन दिनों सुर्खियों में हैं.

जब ये घोषणा हुई कि वो सऊदी अरब की तरफ से ओलंपिक में खेलने वाली दो महिलाओं में से एक हैं, तो ये दुनियाभर के मीडिया में चर्चा का विषय बन गया। लेकिन इस खबर पर जल्द ही उनके हिजाब पहनने को लेकर खड़ा हुआ विवाद हावी हो गया।

शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय जूडो फेडरेशन यानी आईजेएफ ने कहा था कि शहरखानी को सुरक्षा कारणों से खेल के दौरान सिर पर स्कार्फ पहनने की अनुमति नहीं दी जाएगी। एक प्रवक्ता का कहना था कि जूडो में कुछ दांव ऐसे होते है जो हिजाब पहनने के कारण और खतरनाक हो सकते हैं।

संस्कृति

सऊदी अरब की ओलंपिक टीम को ये मंजूर नहीं था। सऊदी प्रशासन अपनी महिला खिलाड़ियों को ओलंपिक में केवल इसी शर्त पर भेजने को राज़ी था कि वो वहां के ड्रेस कोड के मुताबिक कपड़े पहने जिसमें सिर पर स्कार्फ बांधना शामिल था।

टीम ने शहरखानी को ओलंपिक से वापस बुलाने की धमकी दी थी लेकिन बाद में सहमति बन गई थी कि 16 वर्षीय खिलाड़ी एक विशेष स्कार्फ पहनकर खेलेंगी जो सुरक्षा मामलों के साथ-साथ सऊदी ड्रेस कोड का पालन करता हो।

आईजेएफ ने एक वक्तव्य में कहा था, '' अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के साथ एक प्रस्ताव पर सहमति बनी है जिसे सभी पार्टियों ने स्वीकृति दी है। इसके मुताबिक जो समाधान निकाला गया है वो सुरक्षा और संस्कृति दोनों पक्षों के बीच सही संतुलन की गारंटी सुनिश्चित करता है.''

शहरखानी ने शुक्रवार को 78 किलोग्राम मुकाबले में भाग लिया था। उन्हें प्युरेतो रीको की प्रतिद्वंद्वी ने आसानी से हरा दिया था।

जब इस बात पर बहस बढ़ गई कि शहरखानी को ओलंपिक में भाग लेने देना चाहिए या नहीं तो उनके पिता अली शहरखानी का कहना था, ''मैं कभी भी अपने धर्म या बेटी के हिजाब के साथ समझौता नहीं करूंगा चाहे इसकी वजह से ओलंपिक से हाथ क्यों न धोना पड़े.''

आलोचनालेकिन रियाद में रहने वाली और कानून की पढ़ाई कर रही 19 वर्षीय नूर अल सजन का कहना है कि शहरखानी के बयान से न वो और उनकी बेटी भारी आलोचना से बच पाए।

उनका कहना था, '' कुछ लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि वे ओलंपिक में खेल रही हैं, कुछ कह रहे थे कि ये पुरुष जो अपनी बेटी को ओलंपिक में लेकर जा रहा है, वो आदमी ही नहीं है.''

कुछ लोग उन पर नस्लीय हमले कर रहे हैं। उनका कहना है, '' वे सऊदी से नहीं है, वो हमारा प्रतिनिधित्व नहीं करते.'' नूर का कहना था, ''वो केवल 16 वर्ष की है और मुझे नहीं पता वो किस तरह से इस स्थिति से निपट रही है। मुझे लगता है ये बहुत कठिन है.''

'शरीर का प्रदर्शन'जेद्दा में रहने वाले एक व्यापारी अब्दुल्ला कासिम का कहना है कि उन्हें सऊदी महिलाओं के खेल में भाग लेने पर लेकर कोई दिक्कत नहीं है लेकिन इस बात का डर है कि उनपर पश्चिमी सभ्यता हावी हो सकती है।

उनका कहना था, डर इस बात को लेकर है कि ये महिलाएं ओलंपिक में जाकर अपने शरीर को प्रदर्शित कर सकती हैं। कासिम का कहना था, "इस बार तो सऊदी महिलाएं अपने शरीर को ढ़के हुए हैं लेकिन वो यूरोपीय महिलाओं की नक्ल नहीं करेंगी और उनकी तरह कपड़े नहीं पहनेगीं?"

शहरखानी और दूसरी सऊदी महिला एथलीट सरह अतर और उनके साथी सहयोगी के ओलंपिक में भाग लेने को लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर के हैशटेग पर उनके चरित्र पर सवाल उठाया गया है।

ट्विटर पर इस विषय की काफी चर्चा हो रही थी लेकिन नूर का कहना है कि इस तरह की बयानबाजी का इस्तेमाल इन खिलाड़ियों के फायदे के लिए किया जा रहा है।

उनका कहना था, '' कार्यकर्ताओं ने इस हैशटेग को फैला दिया है और वो लोग इसका इस्तेमाल इन खिलाड़ियों के बारे में सकारात्मक बयानबाजी करने के लिए किया.''

इसने अपना असर दिखाया और कई सैकड़ो लोगों ने शहरखानी और अतर के समर्थन में ट्वीट किया है। एक ट्विट में कहा गया है, '' सऊदी महिलाओं को ओलंपिक मशाल दो और गाड़ी की चाबी दो.''

Posted By: Inextlive