Shattila Ekadashi 2020 : भगवान विष्‍णु की दया और कृपा प्राप्‍त करने के लिए महत्‍वपूर्ण एकादशी का व्रत किया जाता है। वर्ष भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों में से षटतिला एकादशी का विशेष महत्‍व है। माघ माह में पड़ने के कारण इसकी महिमा और बढ़ जाती है।

Shattila Ekadashi 2020 Shubh Muhurat:
यह महत्‍वपूर्ण व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस साल षटतिला एकादशी 20 जनवरी को है। इस दिन एकादशी तिथि प्रात: 2 बजकर 51 मिनट पर लग रही है व 21 जनवरी को प्रात: 2 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। प्रत्‍येक माह में दो व वर्ष में 24 बार एकादशी की तिथि आती है। इन सभी में षटतिला एकादशी के व्रत को करने की अलग ही महिमा है।

Shattila Ekadashi 2020 Puja Vidhi
षटतिला एकादशी का व्रत करने वालों को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्‍त होती है। इस व्रत में तिल का अत्‍यधिक महत्‍व है। स्‍नान, दान, भोजन, तर्पण व प्रसाद सभी में तिल का उपयोग होता है। तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिल का दान के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है।एकादशी के दिन ब्रह्मामुहूर्त में जागकर स्‍नान आदि से निवृत होकर पूजा घर में भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें व व्रत का संकल्‍प लें। इस व्रत में दिन भर निराहार रहना होता है, फलों का सेवन कर सकते हैं। शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन कर तुलसी के पौधे के समीप दीपक जलाएं। अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

Shattila Ekadashi Vrat Katha
षटतिला एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है, पुलस्‍त्‍य ऋषि ने यह कथा दालभ्य ऋषि से कही थी जो इस प्रकार है, एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से लोक कल्‍याण के लिए प्रश्‍न किया जिसके उत्‍तर में श्री भगवान ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य नारदजी से कहा। भगवान ने नारदजी से कहा कि- हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूं। ध्यानपूर्वक सुनो। प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत करती, एक बार उसने एक माह तक व्रत किया जिसके कारण उसकी काया अत्‍यंत क्षीण व दुर्बल हो गई। बुद्धिमान होने के बावजूद उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के लिए अन्न या धन का दान नहीं किया था।

इससे मेरे मन में विचार आया कि व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लेने के कारण इसे विष्णुलोक की प्राप्ति तो होगी परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है। भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिक्षु का वेष धारण कर उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा मांगी। उसने प्रश्‍न किया कि आप किसलिए आए हैं? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर अपने लोक को लौट आया। कुछ समय वह शरीर त्याग कर स्वर्ग आ गई। अपने कर्मों के फलस्‍वरूप उसे यहां सुंदर महल मिला, परंतु वह अन्‍नादि सामग्रियों से शून्‍य था। वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की, परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। तुम्‍हें देखने के लिए देवस्त्रियां आएंगी, उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुनने के बाद ही दरवाजा खोलना। यह सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियां आईं और और द्वार खोलने को कहा तो वह बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो। उनमें से एक ने इस व्रत का माहात्‍मय सुनाया जिसे सुनने के बाद द्वार खोल दिया। इसके बाद उस ब्राह्मणी ने उनके कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से भर गया। यह व्रत करने से अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Shattila Ekadashi 2020 Paran Ka Samay
एकादशी के व्रत को समाप्‍त करने को पारण कहा जाता है जो सूर्योदय के बाद अगले दिन किया जाता है। व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर ही कर लेना चाहिए। इस तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को हरि वासर कहा जाता है, व्रत का पारण करने के लिए इसके समाप्‍त होने की प्रतीक्षा उचित मानी गई है। पारण के लिए प्रात:काल को सही माना गया है। अगर ऐसा न हो सके तो मध्‍याह्न के बाद ऐसा करना उचित माना जाता है।

Posted By: Chandramohan Mishra