एक मर्डर हुआ है। सुन कर आप चौंक सकते हैं। चूँकि शीर्षक ऐसा है और फिल्म के ट्रेलर से भी यह बात जाहिर नहीं होती है। लेकिन हाँ एक मर्डर हुआ है। इस बार मर्डर इंसान का नहीं जानवर का हुआ है। जंगल में बेपरवाह घूमने वाली बाघिनी का। विकास के नाम पर जंगलों के साथ जानवरों सा बर्ताव करने वाले इंसानों की यह क्रूरता की कहानी है। विकास करो तो पर्यावरण नाराज हो जाता है और पर्यावरण की सुनो तो विकास। फिल्म का यह संवाद फिल्म का सार है। हालाँकि निर्देशक ने क्यों बाघिनी की कहानी कहते हुए उसे शेरनी कहा है यह फिल्म देख के बाद भी शायद ही आप समझ पाएंगे। फिल्म वन विभाग में होने वाले भ्रष्टाचार राजनीति जानवरों को परेशान करना खुद की लग्जरी समझने वाले इंसान और इन सबके बीच एक काबिल डिप्टी फॉरेस्ट ऑफिसर की कहानी है। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : शेरनी
कलाकार : विद्या बालन, विजय राज, बृजेन्द्र काला, मुकुल चड्डा, शरत सक्सेना, नीरज कबी
निर्देशक : अमित मसूरकर
ओटीटी : ऐमजॉन प्राइम वीडियो
रेटिंग : ढाई

क्या है कहानी
विद्या विंसेट (विद्या बालन) को मध्य-प्रदेश के एक ऐसे जंगल में डीएफओ ड्यूटी दी जाती है, जहाँ जंगल के नाम पर खूब भ्रष्टाचार फैला हुआ है। बड़े अधिकारी से लेकर, नेता सभी बंदरबाट में लगे हुए हैं। गांव वालों के लिए जंगल रोजी रोटी है। और वहां रिसोर्ट चलाने वाले ठेकेदारों और रसूकदारों के लिए जंगल में शिकार करना लग्जरी। इन सबके बीच एक बाघिन है, जिसकी वजह से लोग जंगल जाते हैं और वह उनपर हमला करती है। कायदे से बाघिन को नेशनल पार्क पहुंचाने की बात होनी चाहिए, लेकिन यहाँ बड़ी राजनीति चलती है और इन सबके बीच किस तरह एक काबिल ऑफिसर जूझती है। यह इस पूरी फिल्म की कहानी है। साथ ही एक महिला कितने भी ऊपर पद पर पहुँच जाए, अगर वह बहू बन चुकी है तो उससे मंगलसूत्र और सिन्दूर नहीं लगाने के ही कारण पूछे जाते हैं।

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क्या है अच्छा
कहानी में जंगल, गांव और आम लोग की बात है। विकास के नाम पर जंगल और जानवरों को परेशान करने की बात दिखाई गई है। हर जगह मुनाफे के नाम पर क्या हो रहा है, यह दिखाया गया है। लोकेशन, फिल्म को फिल्माने का अंदाज़ और फिल्म में शामिल हुए कलाकार, पूरी तरह से स्थानीय टच के साथ हैं। कोई ड्रामा नहीं है। निर्देशक ने जो फेमिज्म ऐंगल भी जोड़ा है वह भी अच्छा है। फिल्म की खूबसूरती फिल्म का विषय है, इस फिल्म में बिना दहाड़े ही कई मुद्दे उठाये गए हैं।

क्या है बुरा
विद्या बालन का अंडर डॉग प्ले करना अंतिम तक, बात हजम नहीं होती है, चूँकि पूरी उम्मीद थी कि अंत में वह कुछ बड़ा और सार्थक स्टेप उठाएंगी। वह हो नहीं पाता है और काफी निराशा मिलती है। फिल्म का हद से अधिक सपाट होना और डॉक्यूमेंट्री हो जाना समझ नहीं आता है। फिल्म का शीर्षक शेरनी क्यों है, कन्फ्यूज करता है। पूरी फिल्म बाघिन पर है।

अदाकारी
विद्या बालन ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है, अलग बात है कि निर्देशक ने उनके साथ न्याय नहीं किया है। विजय राज, नीरज, बृजेन्द्र और मुकुल का काम औसत है।

वर्डिक्ट
प्रभाव छोड़ने में मशक्क्त करनी पड़ेगी इस शेरनी को। दर्शकों को डॉक्यूमेंट्री अंदाज़ शायद ही पसंद आये।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari