बभनियांव में उत्खनन के दसवें दिन खत्ती ट्रेंच संख्या एक में गुप्तकालीन शिव मंदिर के अरघे का दो तिहाई हिस्सा अब स्पष्ट हो चुका है। इसके साथ ही मंदिर के प्रणाल का स्वरूप उभर कर अब दिखाई दे रहा है।

वाराणसी (ब्यूरो) अरघे व प्रणाल के साथ पूर्व में मिले मुखाकृति वाला जटाधारी शिवलिंग, प्रदक्षिणा पथ, प्रवेश द्वार व स्तंभ गर्त की स्थितियां सब कुछ हिंदू धर्मशास्त्रों पर आधारित एक पूर्ण शिव मंदिर का संकेत दे रहीं हैं। उत्खनन दल के सह निदेशक प्रो। अशोक कुमार सिंह के मुताबिक अरघे का आकलन करने पर पता चल रहा है कि इस मंदिर का अस्तित्व छह-सात सौ वर्षो तक रहा है। इतने लंबे समय तक पूजा होने से अरघे के तल पर जल चढ़ाने के स्पष्ट निशान अब तक मौजूद हैं।

वास्तुकला का बेहतरीन नमूना

इस गुप्तकालीन मंदिर में प्रणाल (जल निस्कासन) मार्ग उत्तर की ओर है, जो कि हिंदू धर्म के मुताबिक बेहद ही खास है। उत्खनन दल के सदस्य डा। रवि शंकर ने बताया कि यह मंदिर पूरी तरह से वास्तुकला व शास्त्रसम्मत है। पुराणों में मंदिर निर्माण की यह प्रणाली ब्राह्मण (हिंदू) धर्म में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती रही है। इससे पुष्ट होता है कि प्राचीन काल का बभनियांव गांव भारत में मंदिर स्थापत्य का अप्रतिम उदाहरण था।

लगी छात्रों की कक्षा

गुरुवार को गुप्तकालीन शिव मंदिर की पुष्टि होने से बीएचयू के प्राचीन इतिहास व पुरातत्व विभाग के लगभग 50 छात्रों को पुरातात्विक स्थल पर ले जाकर उत्खनन के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। किताबों से इतर उन्हें पुरातात्विक स्थल पर खोदाई की बारीकियों को समझाते हुए ट्रेंच व क्रास सेक्शन सहित कई तकनीकी सावधानियां बताई गई।

तीसरे ट्रेंच में मिले पूजा के सामान

इसके अलावा खत्ती (ट्रेंच) संख्या तीन में उत्खनन के दौरान जब ह्यूमस की परत को हटाया गया तो वहां से पूजा के कई पात्र मिलने लगे। कलश, तसले सहित कई बर्तनों के अवशेष मिले। प्रो। सिंह के मुताबिक इस ट्रेंच के थोड़ा और भीतर जाने पर मंदिर का बाहरी विस्तार व अन्य कई आध्यात्मिक अवशेष मिल सकते हैं। बता दें कि काशी के दक्षिणी हिस्से बभनियांव को अब शैव धर्म का बेहद बड़ा केंद्र माना जा रहा है।

Posted By: Inextlive