- एसटीएफ ने पकड़ा फर्जी आईकार्ड बनाने की दुकान

- रेलवे स्टेशन के सामने 17 साल से हो रहा था कारनामा

GORAKHPUR: गोरखपुर रेलवे स्टेशन के सामने 17 साल से चंद रुपए में अधिकारी बनाने का खेल चल रहा था। गुमटी में बैठा एमकाम पास हरिओम चंद मिनटों में विभिन्न विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों का आईकार्ड जारी कर देता था। इसके लिए 80 रुपए से लेकर दो सौ रुपए तक वसूल करता था। शुक्रवार को एसटीएफ गोरखपुर यूनिट ने हरिओम की दुकान पर छापा मारकर फर्जीवाड़े का खुलासा किया। आतंकी घटनाओं में फर्जी आईकार्ड और वर्दी के दुरुपयोग की जानकारी के बावजूद पुलिस वाले आंख मूंदकर उसकी दुकान चलवाते रहे। कहा जा रहा है कि कम से कम तीन सौ पुलिस कर्मचारी हरिओम की दुकान से बने आईकार्ड के सहारे नौकरी कर रहे हैं। रेलवे सहित अन्य विभागों में उसका आईकार्ड खूब चल रहा है।

फर्जी डीजीपी मामले से खुली पोले

एसटीएफ ने कैंट एरिया के बेतियाहाता में बुधवार की रात डीजीपी बनकर एसएसपी को फोन करने वाले राम नगीना सिंह को अरेस्ट किया था। उसके पास से सिपाही का फर्जी पहचान पत्र मिला। पूछताछ में बताया कि रेलवे स्टेशन के सामने कुमार इंटरप्राइजेज नाम से पुलिस-सेना की वर्दी बेचने की दुकान है। उसका मालिक हरिओम 80 रुपए से लेकर दो सौ तक में किसी विभाग के पुलिस अधिकारी और कर्मचारी का आईडी कार्ड बनाकर दे देता है। पद और जरूरत के अनुसार वह आईकार्ड की कीमत लेता है। राम नगीना की सूचना पर पुलिस ने शाहपुर एरिया के आवास विकास कॉलोनी निवासी हरिओम अरोरा को अरेस्ट कर लिया।

पहले भी जा चुका है जेल

पूछताछ में सामने आया कि करीब 17 साल से रेलवे स्टेशन के सामने हरिओम वर्दी बेचने का काम कर रहा है। 10 साल पहले उसने फर्जी तरीके से परिचय पत्र बनाने का खेल शुरू किया। बगल में पुलिस लाइन होने का उसको सबसे ज्यादा फायदा मिला। आसानी से आईकार्ड बनने के चक्कर में उसके कारोबार को पुलिस ने ही बढ़ा दिया। पुलिस के अधिकारियों, कर्मचारियों के अलावा वह रेलवे के टीटीई, गा‌र्ड्स सहित कई विभागों के परिचय पत्र बनाने लगा। उसके पास से विभिन्न विभागों का आईकार्ड बनवाकर तमाम लोग बेजा फायदा उठा रहे हैं।

ये सामान हुए बरामद

- उत्तर प्रदेश पुलिस और होमगा‌र्ड्स के विभिन्न अधिकारियों-कर्मचारियों के आईडी कार्ड।

- उत्तर प्रदेश पुलिस मित्र के अवैध रूप से तैयार किए पहचान पत्र।

- एनई रेलवे के विभिन्न पदों के अधिकारियों और कर्मचारियों के आईडी कार्ड।

- कंप्यूटर, पेन ड्राइवर, विभिन्न प्रकार के आईकार्ड बनाने के लिए साफ्टवेयर।

- आईडी कार्ड बनाने में इस्तेमाल होने वाला स्कैनर, प्रिंटर, कटर, मशीन और लेमिनेशन मशीन।

- एसपी सिटी के नाम से बनी रबर मुहर व मोबाइल।

- तीन पुलिस कर्मचारियों के पीएनओ नंबर से बने आईकार्ड

सुरक्षा में चूक, बड़ा खतरा

हरिओम ने पुलिस को बताया कि उसके पास से ज्यादातर पुलिस कर्मचारी आईकार्ड बनवाते रहे। इसके लिए वह मुंहमांगी कीमत भी दे जाते थे। गंभीर बात यह है कि पुलिस में रहकर फर्जीवाड़े से आईकार्ड लेने वाले कर्मचारियों ने इसे सुरक्षा के लिए खतरा नहीं माना। न ही कभी हरिओम के खिलाफ कार्रवाई के बारे में सोचा। इससे हरिओम अपने कारोबार में लगा रहा। पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि पुलिस वाला बनकर लाभ लेने के चक्कर में उसकी दुकान से तमाम लोगों ने वर्दी और आईकार्ड खरीदा है। वर्ष 1999 में होमगा‌र्ड्स के प्रतिबंधित बैज बेचने के चक्कर में कैंट पुलिस ने उसे अरेस्ट किया था। बावजूद इसके किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया।

पीएचक्यू से बनकर आता है आईकार्ड

पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि पुलिस कर्मचारियों का परिचय बनाने की प्रक्रिया होती है। इसमें कम से कम दो से तीन माह का समय लग जाता है। आईकार्ड के लिए पुलिस कर्मचारी अपने जिले के तैनाती स्थल पर पुलिस ऑफिस से फॉर्म लेकर आवेदन करते हैं। निर्धारित फॉर्मेट भरकर पीएचक्यू चला जाता है। फिर वहां से आईकार्ड बनकर पुलिस कर्मचारियों तक पहुंचता है। लंबी प्रक्रिया होने से पुलिस कर्मचारी कई बार इसी तरह के आईकार्ड से काम चलाते हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पुलिस को पीएनओ नंबर जारी होता है। यदि वह अपने नाम, पते और पीएनओ नंबर से बने कार्ड का इस्तेमाल कर रहा है तो कोई प्रॉब्लम नहीं है। लेकिन यदि किसी गलत व्यक्ति ने अन्य के नाम, पते पर अपनी फोटो लगाकर कार्ड बनवा लिया तो उसका दुरुपयोग संभव है।

आईजी कराएंगे मामले की जांच

रेलवे स्टेशन के सामने वर्षो से पुलिस और सेना की वर्दी बेचने, अधिकारियों और कर्मचारियों के नाम से आईकार्ड बनाने के मामले की जांच आईजी जोन कराएंगे। इस प्रकरण को आईजी ने सुरक्षा के लिहाज से भारी चूक माना है। आईजी ने कहा है कि इस तरह के लोग मामूली रकम के चक्कर में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हैं। इसलिए इस मामले में लोकल पुलिस भी आरोपी से पूछताछ करेगी।

वर्जन

पकड़ा गया हरिओम फर्जी तरीके से आईकार्ड बनाता था। उसके पास से विभिन्न विभागों के आईकार्ड बनाने वाले साफ्टवेयर बरामद हुए हैं। सुरक्षा के लिए यह बड़ा खतरा था। गलत तरीके से लाभ उठाने के लिए उसकी दुकान से बहुत से लोगों ने आईकार्ड बनवाए हैं।

विकास चंद त्रिपाठी, सीओ, एसटीएफ

रेलवे स्टेशन के सामने पुलिस अधिकारियों- कर्मचारियों के नाम से आईडी कार्ड बनाने का मामला गंभीर है। इस प्रकरण में लोकल पुलिस को जांच करने का निर्देश दिया जाएगा।

- मोहित अग्रवाल, आईजी जोन

Posted By: Inextlive