Shubh Mangal Jyada Saavdhan Review: फिल्म होमो सेक्सुलेटी पर नहीं बल्कि होमो फोबिया पर है। भारत में सुप्रीम कोर्ट के धारा 377 के बावजूद परिवारों में क्यों समलैंगिक संबंध अपराध ही माने जाते हैं। इस बार निर्देशक हितेश ने इसे परिवार के लोगों के बीच रह कर है डील करने की कोशिश की है। एक लड़का का एक लड़के से प्यार करना क्यों बहुत ही नेचुरल और प्योर है फिल्म की कहानी इसी विषय पर है। असहज लगने वाले विषय पर बनी यह फिल्म किसी भी लिहाज से अपनी बात रखने में फिल्म में असहज नहीं लगी है। क्यों यह एक प्योर और पारिवारिक लव स्टोरी है। पढ़ें पूरा रिव्यू

फिल्म : शुभ मंगल ज्यादा सावधान

कलाकार : आयुष्मान खुराना, जीतेन्द्र, गजराज राव, नीना गुप्ता, मनु ऋषि, पंखुरी, मानवी, सुनीता राजवार

निर्देशक : हितेश केवेल्या

क्या है कहानी :

निर्देशक ने फिल्म के अहम किरदार कार्तिक( आयुष्मान) अमन( जीतेन्द्र) की प्रेम कहानी गढ़ने में अधिक समय बर्बाद नहीं किया है। दोनों दिल्ली में साथ में रहते हैं और दोनों एक दूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं। कार्तिक फिल्मी अंदाज वाला आशिक है और बिंदास है। उसका सीधा फंडा है कि प्यार किया तो डरना क्या, उसे जमाने की फ़िक्र नहीं। फ़िक्र नहीं होने की बड़ी वज़ह यह भी है कि उसका परिवार उसके साथ नहीं। वहीं दूसरी तरफ अमन के आसमान में कई सितारे हैं, मतलब वह ज्वाइंट फैमिली का है। बहन की शादी के बहाने अमन कार्तिक के साथ अपने घर पहुंचता है। इसी क्रम में अमन के पापा जो कि हैं तो साइंटिस्ट लेकिन समलैंगिक होने को बीमारी ही मानते हैं, सबसे पहले उन्हें इस बारे में जानकारी मिल जाती है। वह हर हाल में अपने बेटे, जो उनके अनुसार एक बीमारी से ग्रसित हो गया है, उसे ठीक करने और कार्तिक को उसकी जिंदगी से हटाने के लिए तरकीब का इस्तेमाल करते हैं। वह अमन की शादी कर देना चाहते हैं। लेकिन कार्तिक किस तरह अपने प्यार को पाकर रहता है, यही फिल्म की कहानी है।

निर्देशक की यह खूबी है कि इस फिल्म में उन्होंने मनोरंजन का भरपूर इस्तेमाल किया है, लेकिन उन्होंने अपने समलैंगिक किरदारों को किसी भी रूप से उपहास का या उनका माखौल बनाने की कोशिश नहीं की है। निर्देशक ने फिल्म को ठीक वैसी ही लव स्टोरी का ट्रीटमेंट दिया है, जैसी लव स्टोरीज में प्यार के दुश्मन परिवार होते हैं। फिल्म में पापा का साइंटिस्ट होना भी अच्छे मेटाफर के रूप में इस्तेमाल किया गया है। फिल्म में किरदारों को जबरन शारीरिक करने की कोशिश नहीं की गई है। एक मध्यम वर्गीय परिवार में जिस तरह की मम्मियां होती हैं, भाई होते हैं, चाचा होते हैं और बहने होती हैं। उसी तरह फिल्म में इस विषय को सहजता से दर्शाया गया है। संवादों और वन लाइनर के माध्यम से इस विषय को लेकर और ऐसे रिश्तों को लेकर एक आम आदमी की क्या सोच होती है और क्यों वह कतई इस रिश्ते को स्वीकार नहीं पाते। एक पिता और मां के बीच के द्वंद्व को भी फिल्म में खूबसूरती से दर्शाया गया है। यह फिल्म सिर्फ आयुष्मान खुराना की फिल्म नहीं है, एक पिता, एक मां और उन तमाम अधूरी प्रेम कहानियों के नाम भी है, जो किसी ना किसी कारणों से अधूरे रह जाते हैं और दबाव में आकर अपना जीवनसाथी किसी ऐसे अनजान को चुन कर ताउम्र उनके साथ जिंदगी बीताते हैं, जिन्हें वह जानते तक नहीं। फिल्म उन तमाम समझौते वाली प्रेम कहानियों के नाम भी है।

क्या है अच्छा : सारे कलाकारों का बेहतरीन अभिनय, फिल्म के संवाद, फिल्म मनोरंजन के साथ रिश्तों की अहमियत को दर्शाती चलती है। समाज के दबाव की शादी, क्यों अपने जीवनसाथी को चुनने का हक सबको होना चाहिए, इन सभी पहलुओं को खूबसूरती से दर्शाया है। फिल्म में जबरन सेक्स घुसाने या भाषणबाजी करने की कोशिश नहीं है। गे रिलेशनशिप पर एक अच्छा टेक लेती है फिल्म। फिल्म का दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे के संदर्भ का इस्तेमाल भी शानदार मेताफर है।

क्या है बुरा : मनोरंजन करते करते कई बात किरदार काफी लाउड हो जा रहे थे और एक वक़्त के बाद वह बोर करने लगते हैं। कुछ दृश्य और संवाद फिल्म में बेवजह हैं। वे न भी होते तो फिल्म अच्छी ही लगती। फिल्म आयुष्मान की बाकी फिल्मों की तरह गहराई में जाते जाते रह गई है।

अदाकारी : जैसा कि हमने ऊपर ही कहा यह सिर्फ आयुष्मान खुराना की फिल्म नहीं है। लेकिन इस फिल्म के विषय को ध्यान में रखते हुए निर्देशक ने सही चुनाव किया है। उनका रहना दर्शकों को प्रभावित करेगा। जहां तक अभिनय की बात है तो उनके अभिनय में कोई नयापन तो नजर नहीं आया। वह फिल्मी आशिक इस फिल्म की रियल खोज जीतेन्द्र हैं। इंटरनेट की दुनिया से लोकप्रिय हुए जीतेन्द्र ने अपने किरदार को बखूबी जिया है, एक मध्यम वर्गीय परिवार के लड़के, उसपर पारिवारिक दबाव, और उसमें एक नेचुरल लवर की भूमिका बखूबी निभाई है। गजराज राव और नीना गुप्ता की बधाई हो जोड़ी इस बार भी बाजी मार ले जाती है। दोनों की केमिस्ट्री बेहद अच्छी रही है। गजराज ने एक नाकामयाब साइंटिस्ट, एक अकडू पिता के किरदार को बखूबी निभाया है। फिल्म के शेष कलाकारों में मनु ऋषि ने अच्छा परफॉर्म किया हैं। सुनीता रजवार ने शानदार परफॉर्म किया है। मानवी ने औसत काम किया है।

वर्डिक्ट : विषय को लेकर असहजता के बावजूद आयुष्मान खुराना के फैन्स फिल्म देखना पसंद करेंगे। फिल्म को माउथ पब्लिसिटी की जरूरत होगी।

बॉक्स ऑफिस : 50 करोड़ से पार

रेटिंग : 3 स्टार

Posted By: Mukul Kumar