पाकिस्तान का सिंध प्रांत अब यातनाएं और मुसीबतों से छुटकारा पाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने अब पाकिस्तान से अलग होने का पूरा मन बना लिया है।


डाॅ. रमेश ठाकुर (पत्रकार) पाकिस्तान का सिंध प्रांत कट्टरपंथियों की दुर्दांत सोच का शिकार सदियों से रहा है। उन पर सेना का पहरा प्रत्यक्ष रूप से हमेशा रहा है। जिस आजादी के हकदार वह थे, वह उन्हें कभी नहीं मिली। उनके हिस्से में तरक्की की जगह यातनाएं और मुसीबतें ही दी गईं। लेकिन अब वह इन सभी से छुटकारा चाहते हैं। यही वजह है कि सिंध क्षेत्र के लोगों ने अब खुद को पाकिस्तान से अलग करने का पूरा मन बना लिया है। उनकी मांग है कि उन्हें पाकिस्तान से अलग कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने बड़ा आंदोलन छेड़ा है। हजारों-लाखों की संख्या में लोग सड़कों, बाजारों, गली-मोहल्लों में प्रदर्शन कर रहे हैं। सभी एक सुर में इमरान खान सरकार को ललकार रहे हैं। विद्रोह की लपटें देखकर ऐसा लगता है कि क्या पाकिस्तान फिर से दो हिस्सों में बंटेगा। जैसे कभी बंगालियों ने अलग बांग्लादेश की मांग की थी, जो भारत के सहयोग से पूरी भी हुई। ठीक वैसे ही सिंध प्रांत के वासी भी अपने लिए अलग सिंध देश की मांग कर रहे हैं।बांग्लादेश बनने के बाद से ही सिंध मुल्क की मांग


गौरतलब है कि अलग सिंध देश की मांग तो वैसे कई सालों से उठ रही है, लेकिन बीते कुछ दिनों में इस मांग ने ज्यादा जोर पकड़ ली है। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से ही सिंध मुल्क की मांग वहां के लोग कर रहे हैं। कई राष्ट्रवादी पार्टियां भी उनका समर्थन कर चुकी हैं, लेकिन हुकूमतों ने इसपर कभी गौर नहीं फरमाया। बीते संडे पाकिस्तान के राष्ट्रवादी नेता जीएम सईद की जयंती पर सिंध वासियों ने जमकर प्रदर्शन और नारेबाजी की। सरकार को अल्टीमेटम दिया कि हमें अलग कर दो नहीं तो नतीजा बुरा होगा। क्षेत्रवासी खुलकर सरकार को चुनौती दे रहे हैं। बता दें कि सिंध क्षेत्र में ज्यादातर पंजाबी, ईसाई,इमरान सरकार ने फौज के जरिए इन पर जुल्म बरपायाहिंदू और बाकी मुस्लिम आबादी रहती है। ये बात सही है कि वहां सरकार इन लोगों के साथ सालों से पक्षपात करती आई है। अभी हाल में इमरान खान सरकार ने फौज के जरिए इनपर जो जुल्म बरपाया था, उसे न सिर्फ पाकिस्तानियों ने देखा, बल्कि दुनिया के कोने-कोने में उसकी चर्चा हुई।सिंध में सेना-पुलिस एक दूसरे को मारने काटने पर उतारू

सिंध प्रांत में सेना-पुलिस आमने सामने आकर एक दूसरे को मारने काटने पर उतारू थी। पुलिस सिंधियों के पक्ष में थी, तो वहीं सेना उनके खिलाफ खड़ी थी। दरअसल, ये इंतेहा की मात्र बानगी थी, ऐसे जुल्म वहां आए दिन लोगों पर ढाए जाते हैं। इन्हीं जुल्मों से लोग मुक्ति चाहते हैं, तभी अलग मुल्क की मांग को लेकर विद्रोह करने पर उतर आए हैं। 18 जनवरी को एक साथ हजारों लोग सड़कों पर उतरे, कइयों के हाथों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और उनकी तस्वीर की तख्तियां थीं। लोग उनसे मदद की गुहार लगा रहे थे। नारेबाजी हो रही थी। लोग बोल रहे थे कि जैसे कश्मीरियों को 370 से आजादी दिलाई, वैसे हमें भी आजादी दिलवाने में मोदी सहयोग करें। लोगों के हाथों में जब मोदी की तख्तियां सेना ने देखीं तो सीधे इमरान खान को सूचित किया गया। इसके बाद मामला दूसरी ही दिशा में चला गया। उन्हें लगा, इसके पीछे कहीं भारत का हाथ तो नहीं?हिंदुओं, ईसाईयों और पंजाबियों के मूल अधिकारों का हनन

विद्रोह की तपिश जब तेज हुई तो इस्लामाबाद से दिल्ली फोन आया, लेकिन भारत ने इनकार करके खुद को उनके अंदरूनी मसले से अलग किया। पाकिस्तान में हिंदुओं, ईसाईयों और पंजाबियों के मूल अधिकारों का किस तरह हनन होता है, शायद बताने की जरूरत नहीं। दशकों से लोग पाकिस्तानी हुकूमतों के जुल्म की यातनाएं झेलते आए हैं। इन पर शुरू से इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बनाया गया। डर के कारण कुछ लोगों ने इस्लाम धर्म को अपनाया भी। पाकिस्तान के दूसरे शहरों में इस तरह की हरकतों का होना आम बात है। कराची में बीते दिनों प्राचीन मंदिरों को कट्टरपंथियों ने तोड़ डाला, मामले ने जब तूल पकड़ा तो दिखावे के लिए सरकार ने कुछ लोगों पर कार्रवाई की। हिंदू लड़कियों से वहां जबरन शादी करके उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर किया गया।सिंध का समूचा इलाका संपदाओं से लबरेज
पाकिस्तान के लिए सिंध क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण है, इस थ्योरी को समझना जरूरी है। दरअसल, सिंध का समूचा इलाका संपदाओं से लबरेज है, हर फसल की खेती-बाड़ी, जड़ी-बूटियां, प्राकृतिक औषधियां, ड्राई फ्रूट्स आदि के लिए यह क्षेत्र मशहूर है। ये क्षेत्र पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा संपन्न है। क्षेत्र की आबोहवा हिंदुस्तानी सभ्यता से एकदम मेल खाती है। एक जमाने में सिंध प्रांत वैदिक सभ्यताओं का हब भी रहा है। यहां का इतिहास बहुत ही स्वर्णिम रहा है। लेकिन कट्टरपंथियों ने इसका नक्शा ही बदलकर रख दिया। मार काट और खून-खराबे में तब्दील कर दिया। लोगों का यहां रहना दूभर हो गया। पीछे इतिहास में झांके तो पता चलता है कि इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का कभी कब्जा हुआ करता था। 1947 में जब भारत आजाद हुआ और पाकिस्तान अमल में आया, तब जाते-जाते सिंध प्रांत को अंग्रेजों ने पाकिस्तान को सौंप दिया। उनकी उसी गलती को सिंधवी आज भी भुगत रहे हैं। इस्लामाबाद में बैठी पाकिस्तान की हुकूमत ने सिंध प्रांत को हमेशा से हिकारत की नजरों से देखा। मानविकी पहलुओं, मानव संसाधन, प्रबंधन, मुकम्मल अधिकार सभी पर मानवद्रोही ताकतें हावी रहीं। प्रकृति की धरोहर कहे जाने वाले उस क्षेत्र को उजाड़ दिया।

Posted By: Satyendra Kumar Singh