Bareilly : क्भ् साल की कड़ी साधना के बाद इन्होंने म्यूजिक इंडस्ट्री में कदम रखापर जब इनके सुर छिड़े तो हर किसी की जुबां पर बस इनके ही तराने सुनने को मिले। ओ परदेसी, कबीरा, गल मिट्ठी मिट्ठी बोल, खलबली, इकतारा जैसे गानों में अपनी आवाज का जादू बिखेर चुके सिंगर तोची रैना आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। फिजाओं में रस घोलती इनकी आवाज ही संगीत के लिए इनके जुनून को बयां कर देती हैं। सिटी में एक स्टेज शो में परफॉर्म करने पहुंचे तोची ने आई नेक्स्ट से अपने बारे में खुलकर बातें शेयर कीं।

आपके करियर की शुरुआत कैसे हुई।

बचपन से ही मुझमें म्यूजिक के लिए एक जबरदस्त जुनून था। हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान तो संगीत का नशा ऐसा बढ़ा कि मैं घर से भागकर दिल्ली पहुंच गया। वहां गंधर्व महाविद्यालय में टीचर पं। विनोद कुमार जी से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। करीब क्भ् साल तक उस्ताद भूरे खां, उस्ताद नुसरत फतेह अली खां, उस्ताद अल्ताफ हुसैन सारंग, पं। मनि प्रसाद, पं। सीताराम जैसे बेहतरीन संगीत के महारथियों से म्यूजिक की बारीकियां सीखने के बाद मुंबई का रुख किया। यहां मुझे पहला ब्रेक ए वेडनसडे मूवी के सांग बुल्लेशाह में डायरेक्टर नीरज पांडे ने दिया।

मुंबई में किस तरह के स्ट्रगल्स का सामना करना पड़ा।

क्98म् में जब घर से भागा था तो केवल सौ रुपए का नोट जेब में था। सोने के लिए सड़क और स्टेशन, ओढ़ने के लिए बस आसमान। दिन भर दिल्ली की सड़कों की खाक छानता था। पंडित जी ने हाथ थामा तो सुकून मिला। गंधर्व कॉलेज से लक्ष्मीनगर तक पैदल सफर करता था। लगातार क्भ् साल सीखने के बाद म्यूजिक इंडस्ट्री में कदम रखने का मौका मिला।

इस सफर में आपकी फैमिली का कितना सपोर्ट रहा।

ये समझिए कि संगीत मेरी नस-नस में बह रहा है। फैमिली में सभी लोग म्यूजिक से जुड़े थे। दादी सितार वादक, चाचा वॉयलिन और इसी तरह बाकी लोग भी म्यूजिक की कई विधाओं में उस्ताद थे। वह ऐसा दौर था जब संगीत करियर ना होकर केवल साधना थी।

आज के म्यूजिक ट्रेंड के बारे में क्या कहेंगे।

प्रेजेंट टाइम में म्यूजिक में रूहानियत का एहसास ना होकर केवल एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट रह गया है। इसमें आवाज की कोई पहचान नहीं है। बस इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट्स ही सुर और साज दोनों का रोल प्ले कर रहे हैं। संगीत कहीं नहीं है।

रियलिटी शोज के बारे में क्या कहेंगे।

रियलिटी शोज बिल्कुल बकवास होते हैं। सब टीआरपी का खेल है। जितने भी विनर्स चुने गए हैं, उनसे मिलिए तो पता चलेगा कि उनकी क्या कंडीशन हो गई है। होता क्या है कि पेरेंट्स बच्चों को कठपुतली समझकर नाच गाना करवाते हैं। सपनों का ताजमहल बना लेते हैं, लेकिन अनट्रेंड होने की वजह से वे इस फील्ड में सक्सेसफुल नहीं हो पाते और फिर शुरू होता है डिप्रेशन का अंतहीन दौर।

योगा क्लासेस से जुड़ाव कैसे हुआ।

खुद को पढ़ना मेरी हॉबी है। बड़े से बड़े एक्टर्स और डायरेक्टर्स से मिला, कहीं खुशी नहीं दिखी। ऐसे में योग की ओर झुकाव हो गया। योग हमारी परंपरा है। खत्म होती इस विरासत को खुद में जीवित रखने और मन, मस्तिष्क को शांत बनाने के लिए योग का सहारा लेता हूं। इसके लिए ख्00फ् में ओशो ज्वॉइन किया। फिर विपस्न्ना सीखा। अब भी डेली योगा करता हूं। हां, एक बात और मैं ब्लैक बेल्ट चैंम्पियन भी हूं।

आप स्टेज शो काफी करते हैं, इसमें इतनी दिलचस्पी क्यों।

आज के यंगस्टर्स ही सबसे बड़ी ऑडियंस है और उन्हें मौज-मस्ती पसंद होती है। बस उनके एंज्वॉयमेंट के लिए स्टेज शो करता हूं। आजकल के यंगस्टर्स को वेस्टर्न म्यूजिक काफी पसंद है। ऐसे में वेस्टर्न सांग्स की म्यूजिक पर हिन्दी सांग्स प्रेजेंट कर उन्हें देसी म्यूजिक पसंद करने का मैसेज देता हूं।

आपका फेवरेट म्यूजिक कौन सा है।

भाईसूफियाना हूं, सूफी पसंद करता हूं और सूफी अंदाज में ही गाता हूं। ये गायकी नहीं, पोएट्री है, साधना है, स्पिरिचुएैलिटी है। इसे ख्याल गायकी समझिए। इसमें जितना डूबिए उतना ही आनंद मिलता है। रोम-रोम जब संगीत में सराबोर हो जाए तो सूफियाना अंदाज हासिल होता है।

आपके पसंदीदा सिंगर्स कौन हैं।

वैसे तो मुझे कई सिंगर्स पंसद हैं, लेकिन केके, सुखविंदर, मोहित चौहान, अमित त्रिवेदी के गाए सांग्स मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। स्ट्रग्लर मुझे ज्यादा अच्छे लगते हैं क्योंकि मैं भी इसी दौर से गुजर कर यहां तक पहुंचा हूं।

फ्यूचर प्लांस क्या है।

कुछ नहीं। भविष्य के बारे में ज्यादा सोचता नहीं हूं। फिलहाल 'भटिंडा एक्सप्रेस' में प्लेबैक सिंगिंग की है। इसका म्यूजिक रिलीज होने वाला है। ख्00भ् से वेस्टर्न क्लासिक म्यूजिक भी सीख रहा हूं। 'बैंड ऑफ बंदगी' नाम से बैंड पार्टी बनाई है, साथ ही पंजाबी स्क्वॉयड नाम से स्टेज शो करता हूं। इसमें राम जी गुलाटी और नीरु रावल मेरे साथी हैं।

संगीत की दुनिया में आने की चाह रखने वाले यंगस्टर्स को क्या सलाह देंगे।

केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि 'बिना गुरु ज्ञान नहीं होता'। अच्छे गुरु के सानिध्य में रहकर संगीत की साधना करें। जब सीख लेंगे तो गुरु बता देंगे कि 'नाऊ स्काई इज लिमिट फॉर यू'।

Posted By: Inextlive