- 70 क्विंटल मावा और 40 हजार लीटर सिंथेटिक दूध की रोजाना खपत

70 क्विंटल मावा और ब्0 हजार लीटर सिंथेटिक दूध की रोजाना खपत

BAREILLY:

BAREILLY:

होली पर डिमांड बढ़ते ही सिंथेटिक दूध और मावा की रोजाना बड़ी खेप मार्केट में पहुंचने लगी है। दूध का जितना उत्पादन नहीं है, उससे ज्यादा मिठाइयां और खोया बन रहा है। नकली दूध-मावा के कारोबारी बेखौफ होकर गोरखधंधे को अंजाम दे रहे हैं।

एक लाख टन मावा की खपत

होली एक ऐसा फेस्टिवल है जिसमें सबसे अधिक दूध, मावा, पनीर की खपत होती है। एक लाख टन मावा से सिर्फ मिठाइयां तैयार होती है। ब्0फ् डेयरी, मदर डेयरी, पराग, अमूल और कामधेनू से रोजाना क् लाख ख्भ् हजार लीटर दूध का रोजाना उत्पादन होता है। जबकि, होली में दूध की डिमांड रोजाना डेढ़ लाख लीटर से अधिक बताई जा रही है। हैरत की बात यह है कि प्रोडक्शन से अधिक डिमांड होने के बावजूद बाजार में दूध अवेलेबल है। एक अनुमान के मुताबिक 70 क्विंटल डेली सिंथेटिक मावा और ब्0 हजार लीटर सिंथेटिक दूध की खपत हो रही है।

सिंथेटिक दूध माफिया हुए सक्रिय

सिंथेटिक दूध तैयार करने की कई विधि है। दूध माफिया सबसे पहले पानी में यूरिया डाल कर गरम करते है। जब पानी उबलने लग जाता है, तो कपड़े धोने वाला पाउडर, साबुन या फिर शैम्पू के साथ स्टार्च फोरमेलिन मिलाया जाता है। जब सभी चीजें अच्छी तरह से मिल जाती है तो उसमें थोड़ा सा असली दूध मिला दिया जाता है। फिर, उसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। वहीं कुछ लोग सोडियम हाइड्राक्साइड, सेडियम सल्फेट जैसे खतरनाक रसायन भी मिलाते हैं। एक लीटर सिंथेटिक दूध तैयार करने में मात्र भ् रुपए का खर्चा आता है। जिसे असली दूध बताकर मार्केट में भ्0 से म्0 रुपए प्रति लीटर बेचा जा रहा है।

हेल्थ के लिए ठीक नहीं है

डॉक्टर्स की मानें तो, मिलावटी दूध और मावा हेल्थ के लिहाज से ठीक नहीं होता है। सिंथेटिक दूध से बनी मिठाइयां खाने का मतलब है कई तरह की बीमारियों को न्योता देना। ऐसी मिठाई खाने के बाद उल्टी, दस्त शुरू हो जाता है। किसी के पेट में दर्द होने लग जाता है तो किसी को घबराहट व बेचैनी। व्यक्ति के लीवर और किडनी पर भी बुरा असर पड़ता है। स्कीन डिजिज के चांसेज कई गुना बढ़ जाते हैं।

कैसे करें असली-नकली की पहचान

- नकली दूध, पनीर, मावा, घी की गंध से पहचान की जा सकती है। सिंथेटिक दूध से तैयार चीजों में साबुन जैसी गंध आती है।

- इसका स्वाद कड़वा होता है। जबकि, असली दूध से बनी मिठाइयों में कड़वापन नहीं होता है।

- सिंथेटिक दूध उबालने पर पीला हो जाता है। जबकि, असली का रंग सफेद ही बना रहता है।

- मिलावटी मावा बिल्कुल सफेद और असली मावा थोड़ा मटमैला और दानेदार होता है।

- सिंथेटिक दूध न ही फटता है और न ही इसका दही जमता है।

- सिंथेटिक दूध की दो बूंद हाथ पर लेकर रगड़ने पर झाग बनने लगता है। जबकि, असली दूध के साथ ऐसा नहीं होता है।

बॉक्स

- फेस्टिव में एक लाख टन मावा की बनती है मिठाई।

- रोजाना दूध का उत्पादन क् लाख ख्भ् लीटर।

- दूध के सोर्सेज ब्0फ् डेयरी, मदर डेरी, पराग, कामधेनू।

- मावा की करीब क्भ्0 दुकानें।

- 70 क्विंटल सिंथेटिक मावा डेली खपाया जा रहा है।

- ब्0 हजार सिंथेटिक दूध की खपत डेली।

फेस्टिव सीजन में दूध और मावा माफिया सक्रिय हो जाते है। शहर में भी इस तरह की मिलावट की सूचना मिली है। लोगों को चाहिए कि अपने भरोसे मंद लोगों से दूध व मावा ले।

लल्लू सिंह यादव, जिला अध्यक्ष, दुग्ध संघ बरेली

Posted By: Inextlive