प्यार में कुछ भी सही या गलत नहीं होता है जब वी मेट का यह संवाद काफी लोकप्रिय रहा है। हकीकत भी यही है कि आप जब प्यार में होते हैं तो बस प्यार में होते हैं। ऊंच-नीच क्लास डिफ़रेंस से प्यार कितना प्रभावित होता है क्या प्यार के लिए सिर्फ प्यार काफी होता है ऐसे ही कुछ सवालों के जवाबों को खंगालती है प्यार को नयी परिभाषा देती फिल्म सर एक आम सी लड़की की ख़ास सी इमोशनल जर्नी है जिसे निर्देशक रोहेना ने खूबसूरती से गढ़ा है। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : सर (क्या प्यार ही काफी होता है )
कलाकार : तिलोतमा शोमे, विवेक गोमबर, गीतांजलि कुलकर्णी, अनुप्रिया
निर्देशक : रोहेना गेरा
ओटी टी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 3 . 5 स्टार

क्या है कहानी
एक लड़की, जिसका बचपन से सपना है कि वह फैशन डिजाइनर बने। लेकिन उसकी शादी हो जाती है। एक गांव की वह लड़की, 19 साल में विधवा भी हो जाती है, फिर वह अपनी बहन को पढ़ाना चाहती है। इसके लिए वह शहर में, एक रईस इंसान के घर पर मेड का काम करती है। रत्ना (तिलोतमा), अश्विन (विवेक ) के घर में उसका पूरा ख्याल रखती है। अश्विन की शादी, शादी से एक दिन पहले टूटती है। रत्ना को लेकर आश्विन महसूस करता है कि वह उसे अच्छी तरह समझती है। रत्ना को फैशन डिजाइनर बनना है, वह काम से समय बचा कर ट्रेनिंग लेती है। अश्विन और रत्ना के बीच यहाँ जिस्मानी प्यार नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे मोड़ आते हैं कि रत्ना अश्विन से अलग हो जाती है। लेकिन क्या उसका सपना पूरा होता है। इस प्यार का अंजाम क्या होता है। इसे बेहद खूबसूरती से रोहेना ने दर्शाया है। वर्तमान दौर में जब हर दिन प्यार के नए किस्से गढ़े जा रहे हैं। यह प्रेम कहानी आरसे तक दिल में बसने वाली कहानियों में से है।

क्या है अच्छा
फिल्म बेहद रियलिस्टिक, सामान्य अंदाज़ में दिखाई गई है। जबर्दस्ती बोल्ड दिखाने के लिए बोल्ड सीन नहीं ठूसे गए हैं, संवाद भी सहज है। तामझाम नहीं है। वर्तमान दौर की सहज प्रेम कहानियों में से एक फिल्म है। फिल्म में जातिवाद, क्लास डिफरेंस को लेकर भी बिना भाषणबाजी के बात कही गई है। सपने को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास की बात और पैशन की बात की गई है।

क्या है बुरा
दुर्भाग्य है कि दो साल पहले बन चुकी यह खूबसूरत फिल्म अब तक रिलीज होने के लिए रास्ता ही ताक रही थी। चूँकि स्टारविहीन इस फिल्म में कहानी है, लेकिन स्टार वैल्यू नहीं और कोरोना काल से पहले तक थियेटर में ऐसी फिल्मों को जगह न के बराबर मिलती है। इसे पैरेलल और बोरिंग सिनेमा कह कर सिनेमाघरों में रिलीज ही नहीं करते हैं। अच्छा है कि ओ टी टी आने के बाद ऐसी फिल्मों को सम्मान मिल रहा है।

अदाकारी
तिलोत्तमा ने इस फिल्म में शानदार अभिनय किया है। उनका किरदार इतना सहज है कि दिल में घर कर जाता है। उन्होंने इमोशनल दृश्यों को बेहद संजीदगी से दर्शाया है। विवेक इस फिल्म में सरप्राइज हैं। उन्होंने भी सरलता से अपना काम किया है। दोनों ही किरदारों ने दूसरे को पूर्ण किया है।

वर्डिक्ट
वर्ड ऑफ माउथ से देखी जायेगी यह फिल्म

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari