-बीमारी के डर से अधिकारी पास तक नहीं जाते

-बसों में भेड़-बकरी की तरह ठूंस कर भेजे जा रहे गांव

-स्टेशन पर नहीं हो रही जांच, न लिए जा रहे डिटेल

-बस स्टैंड में भी नहीं है रहने-खाने की व्यवस्था

रांची। प्रवासी मजदूरों को झारखंड में लाकर सम्मानपूर्वक उनके घर पहुंचाने की बात भले ही जिला प्रशासन की ओर से की जा रही हो, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। बाहर से रांची पहुंचने के बाद यहां के सिस्टम के आगे मजदूर भी बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं। उन्हें डंडे से मारकर जबरन बस में बिठा दिया जा रहा है। रविवार को अहमदाबाद और चेन्नई से लगभग दो हजार मजदूर हटिया स्टेशन पहुंचे थे। उन्हें सम्मान के साथ बसों में बिठाने के बजाए पुलिसकर्मियों ने लाठी-डंडे से मारकर बसों में ठूस दिया। बस की क्षमता से भी अधिक मजदूरों को बिठा दिया गया, जबकि गाइडलाइन के अनुसार क्षमता से एक-तिहाई मजदूरों को बसों में बिठाना है। राजधानी में प्रशासन के अधिकारी नियमों की वाट लगा रहे हैं। बसों में भेड़-बकरी की तरह मजदूरों को लोड कर उनके गांव ले जाया जा रहा है। सिर्फ सीट ही नहीं बल्कि कुछ मजदूर नीचे बैठे तो कुछ खडे़-खडे़ ही जाने के लिए मजबूर हुए। यहां सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का भी पालन नहीं हो रहा है। अगर इनमें एक भी मरीज कोरोना से संक्त्रमित पाया गया तो इसका क्या अंजाम होगा यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

ब्योरा नहीं लिया जा रहा

मजदूरों ने बताया कि हटिया स्टेशन में उतरने पर उनसे किसी प्रकार का कोई ब्योरा भी नहीं लिया गया। न ही ढंग से खाना और पानी ही दिया गया। बस का भी पता नहीं चल रहा था। एक अधकारी ने दूर से इशारा करते हुए कहा कि बस में चढ़ जाओ। इसके बाद सभी बस में चढ़ने लगे। जब सीट फुल हो गया तो पुलिसकर्मियों ने जबरन हम सभी को एक ही बस में चढने को कहने लगा। मजदूरों ने बताया कि उनकी किसी प्रकार की जांच की गई और न ही नाम पता या फोन नंबर मांगा गया। ये सभी मजदूर गढ़वा, पलामू और डाल्टनगंज के थे। मजदूरों ने बताया कि इससे अच्छी व्यवस्था तो तमिलनाडु सरकार ने की थी। बसों में दूर-दूर बिठाया गया था। खाना और पानी भी दिया गया, लेकिन झारखंड पहुंचते ही सभी व्यवस्था ध्वस्त हो गई।

मजदूरों की पीड़ा

अहमदाबाद में कंस्ट्रक्शन का काम करता था। लॉकडाउन में काम बंद होने से खाने और रहने की दिक्कत होने लगी। ट्रेन के बारे में पता कर किसी तरह रांची पहुंचे हैं। यहां हमलोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। बसों की एक सीट में तीन से चार लोग बैठाए जा रहे हैं। सभी को अपने घर पहुंचने की जल्दी है। प्रशासन ने कहा बस की कमी है इसलिए इसी में सब को बैठना होगा। गर्मी में हमलोगों की हालत खराब है।

-सुनील राम

हटिया स्टेशन में हमलोगों से कुछ भी नहीं पूछा गया। सिर्फ इतना ही बताया गया कि जिसे जहां जाना है वे अपनी बसों से नाम देखकर बस के पास चले जाएं। बस ढूंढने में भी बहुत परेशानी हुई। बस मिलने के बाद एक ही बस में जानवरों की तरह हम लोगों को लाद दिया गया। मैं लेस्लीगंज का रहनेवाला हूं और चेन्नई में रहकर काम करता था। काम बंद होने के बाद मुश्किल होने लगी। अब दुबारा कभी बाहर नहीं जाऊंगा।

- अनिल कुमार

मैं अहमदाबाद में रहकर कंस्ट्रक्शन का काम करता था। तीन महीने से काम बंद है। मालिक ने खाना देना बंद कर दिया। मुझे डाल्टनगंज जाना है। लेकिन बस पलामू तक ही जाएगी। वहां से फिर मुझे पैदल ही जाना होगा। झारखंड सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है। बसों में जानवरों की तरह ठूंस कर हमें लाया जा रहा है। डंडे से मारकर जबरदस्ती बस में बिठाया गया है। पानी भी नहीं दिया गया।

- सोमनंद उरांव

Posted By: Inextlive