अनसोशल होने का ठप्पा लगवा चुके मेट्रो सिटीज के लोगों में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक नई सोसाइटी का उदय हो चुका है. और इसका दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है.


सबसे पॉवरफुल मीडियम के रूप में उभर चुके सोशल मीडिया का जादू इन दिनों सिर चढक़र बोल रहा है. यूथ से लेकर पॉलिटिशियन, सोशल एक्टिविस्ट, राइटर, फाइटर सभी पर इन दिनों सोशल मीडिया की खुमारी छायी है. जिधर देखो उधर फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब. जो इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नहीं हैं, वो इन दिनों जैसे लो प्रोफाइल या फिर अनसोशल हो गए हैं. आप भले ही जो भी सोचें, मगर यह बात अब हकीकत में तब्दील होती जा रही है.
जो लोग फेसबुक को फ्रेंडशिप और लव अड्डा समझते हों, उन्हें शायद यह पता नहीं है कि सोशल मीडिया अब इस लेवल से बाहर निकलकर सोशल रिवोल्यूशन का प्लेटफॉर्म भी बन चुका है. यह रिवोल्यूशन कब और कहां से हुआ, इसका जवाब भी ऐसे लोग ढूंढते रह जाएंगे.जी हां, टेक्नोलॉजी का रिवोल्यूशन अब वाकई सोशल रिवोल्यूशन की एक नई इबारत लिख रहा है. यह दुनियाभर में हो रहा है. वह चाहे करप्शन के खिलाफ अन्ना की अगस्त क्रांति हो या फिर गैंगरेप के खिलाफ दिल्ली की सडक़ों पर चल रहा मूवमेंट. सोशल मीडिया आज उस मुकाम पर पहुंच गया है, जिससे दुनियाभर के शासक घबरा रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब से शुरू होने वाली मुहिम मेट्रो सिटीज की स्ट्रीट्स पर बड़े पब्लिक मूवमेंट का रूप लेने लगी हैं.


शायद ही कभी किसी ने ये कल्पना की हो कि इस देश में ऐसा आंदोलन भी हो सकता है जिसे न तो कोई पॉलिटिकल पार्टी और न ही कोई पॉलिटिशयन लीड कर रहा हो. मेरे जैसे बहुत से यूथ, जिसने आजादी के बाद 1975 में इमरजेंसी के बाद देश की पहली बड़ी क्रांति नहीं देखी है, उन्हें भी यह पता है कि इस मूवमेंट को भी जेपी जैसे नेता लीड कर रहे थे और देशभर का यूथ उनकी लीडरशिप में ही पूरे मूवमेंट को सफलता के अंजाम तक पहुंचा सका था. मगर करप्शन से लेकर गैंग-रेप के खिलाफ सोशल नेटवर्किंग साइट्स से शुरू होने वाली मुहिम कैसे सडक़ों तक पहुंच गई और बिना किसी लीडरशिप के इस तरह सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर रही है, पॉलिटिकल और सोशल साइंटिस्ट्स के लिए रिसर्च का नया सब्जेक्ट बनने वाला है.

इससे भी अहम बात ये है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स से सडक़ पर उतरने वाली इस भीड़ में वेल क्वॉलिफाइड यूथ और उसमें भी बड़ी संख्या में गल्र्स, प्रोफेशनल्स और एलीट क्लास शामिल है. ये सब कैसे एकजुट हो सके? ऐसा क्राउड और ऐसा नजारा शायद ही कभी किसी पॉलिटिकल पार्टी या किसी बड़े लीडर की सभा में भी किसी ने देखा हो? और उससे भी बड़ी बात कि ऐसा हुजूम जो बिना रुपए खर्च किए जुटा और जिसके सामने पुलिस की लाठियां, आंसू गैस के गोले, वाटर कैनन और बैरिकेड्स सभी कम पड़ गए. जी हां, ये वाकई सोशल रिवोल्यूशन है. इसे कोई लेनिन, माओ या गांधी लीड नहीं कर रहे. यह कॉमन मैन का कॉमनमैन के लिए और कॉमन मैन के द्वारा लीड किया जा रहा मूवमेंट है.
इसके साथ एक और बड़ी घटना हो रही है. यह है अपने पड़ोसियों से भी मतलब नहीं रखने वाले मेट्रो सिटीज में एक नई सोसाइटी का बनना. अनसोशल होने का ठप्पा लगवा चुके मेट्रो सिटीज के लोगों में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक नई सोसाइटी का उदय हो चुका है. और इसका दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बड़े स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान हो रहा है. ऐसे विचार, जिसे देश और सिस्टम को चला रहे हुक्मरान भी गंभीरता से लेने को मजबूर हैं. उन्होंने पहले कभी इसे तवज्जो नहीं दी थी. ये विचार जनमत को तैयार कर रहे हैं. यह जनमत अभी तो गैंग-रेप के विरोध में सडक़ों पर उतरा है. लेकिन यह यहीं रुकने वाला नहीं है. यह तो अभी आगाज है. अंजाम का इंतजार कीजिए. सोशल नेटवर्किंग साइट्स से शुरू हुआ ये मूवमेंट करप्ट सिस्टम को बदलने का माद्दा रखता है. इसलिए इनकी बात सुननी पड़ेगी.विकास वर्माWriter is DNE i next Gorakhpur

Posted By: Surabhi Yadav