फिल्म इंडस्ट्री में कैंप होने को लेकर खबरें आती जाती रहती हैं। सूरज बडज़ात्या आधिकारिक तौर पर कहते हैं कि उनके पास सलमान हैं। कल गुरूवार को सलमान के साथ उनकी फिल्‍म प्रेम रतन धन पायो रिलीज भी हुई है। लिहाजा शाहरुख खान या किसी और के साथ काम करने की क्या जरूरत? वे कहते हैं 'सलमान हैं तो किसी की जरूरत नहीं है। वे स्टार हैं। वे हर तरह के रोल निभा सकते हैं। उनके साथ उनका खास जुड़ाव है। वह थोड़ी ही फिल्में बनाते हैं। ऐसे में उनकी मांग व भूख सलमान से ही पूरी हो जाती है। उन्‍हें कहीं और जाने की जरूरत नहीं।


सलमान संग लंबे समय बाद:


सलमान के साथ इतने समय बाद फिल्म क्यों के सवाल पर सूरज कहते हैं, 'इसके पीछे दो-तीन वजहें हैं। उन्हें विषय नहीं मिल रहे थे। उन्होंने प्रेम की दीवानी हूं के बाद कई चीजें सीखी। खुद को समय दिया। बिजनेस नीचे आ गया। उन्होंने टीवी शो बनाने शुरू कर दिए। उनमें उनका काफी समय बीत गया। उनका सारा फोकस बिजनेस को उठाने में था। विवाह के समय उन्होंने सलमान के हिसाब से कुछ बनाने का सोचा था, लेकिन उस समय 'विवाह' पर ही फोकस किया। 'विवाह' का किरदार उन पर फिट बैठता नहीं। प्रेम रतन धन पायो में परिवार और रिश्तों को अहमियत दी है। उसे समझाने की कोशिश की है। जैसे कि दीवाली। दीवाली में हम सभी से मिलते हैं। वरना ऐसे तो हमें अपने रिश्तेदारों का नाम तक याद नहीं रहता है। बचपन बिताना सबसे ज्यादा जरूरी है। उस जुड़ाव को दिखाया गया है। 'प्रेम का मतलब एकता:

इस फिल्म के पीछे की सोच के बारे में सूरज कहते हैं, उनके लिए प्रेम का मतलब एकता है। वे सब यही चाहते हैं। लेकिन उनके मांगने का तरीका अलग है। जो लोग चाहते हैं वो नहीं मांगते हैं। जो सबसे ज्यादा गुस्सा करता है वो उतना ही असुरक्षित महसूस करता है। उनके हिसाब से परिवार का मतलब है। उनकी फिल्मों में राम की छवि दिखाने की कोशिश की जाती है। हर किसी की तरह राम के भी प्लस माइंस होते हैं। अंदर से राम बनना होगा। सबसे जरूरी साफ दिल से सोना है। इस फिल्म में सलमान सोसायटी बदलना चाहते हैं। उन्होंने वही कोशिश की है।'इसलिए पीले रंग से है प्यार:

सलमान खान को उनके करियर की सबसे बड़ी हिट सूरज बडज़ात्या ने भी दी है। गुरुवार को दोनों की जुगलबंदी एक बार फिर बॉक्स ऑफिस पर देखने को मिली सूरज ने फिल्म में खल चरित्र पहली बार इंट्रोड्यूस किए हैं, पर कुछ चीजों को अपनी पिछली फिल्मों की तरह ही रखा है। मिसाल के तौर पर फिल्म के कॉस्ट्यूम, लेंथ व म्यूजिक। दोनों में पारंपरिक और आधुनिकता का मिश्रण है। उनसे जब पूछा गया कि उन्होंने अपनी हर फिल्म में अभिनेत्री को पीले कपड़े ही पहनाए गए हैं तो सूरज ने जवाब दिया, मेरी फिल्म के लक के साथ ही पीला रंग चल रहा है। भाग्यश्री, करिश्मा , माधुरी सभी ने एक गाने में पीले रंग का कपड़ा जरूर पहना है। इस फिल्म में सोनम को भी पीले रंग का डे्रस पहनाया गया है। यह एक आकर्षण है। इसके अलावा कुछ नहीं। उन्हें ऐसा लगता है कि मैंने प्यार किया में भाग्यश्री का पहला लुक पीली साड़ी पर ही लिया गया था। पहला टेस्ट लिया था। वहीं से सिलसिला शुरू हुआ। उन्हें फिल्म में कोई ग्रेस फुल सीन हो या रोमांटिक सीन तो उसमें पीले रंग का इस्तेमाल जरूर करते हैं। मुझे पीले रंग से प्यार है। हम साथ -साथ में बस को भी पीला रंग दिया गया था। परतें चढ़ा रखी हैं हम सबने:
प्रेम रतन धन पायो दीवाली पर रिलीज हुई है। फिल्म में फैमिली ड्रामा है। संयुक्त परिवार भी है। सूरज बडज़ात्या ने उस मिजाज के परिवार असल जिंदगी में भी देखे हैं। उनके मुताबिक, उन्होंने जो भी देखा वही प्रस्तुत किया है। उसकी वजह यह है कि पारिवारिक कहानियों में जरा सा भी नकलीपन व बनावट हो तो वह पकड़ में आ जाते हैं। उसमें नकलीपन नहीं दिखाया जा सकता है। यहीं वजह है कि उन्हें लिखने में भी समय लगता है। वह हमेशा सोचते कि आज वो होते तो उनकी फिल्मों से खुश होते या नहीं। उसी आधार पर फिल्में बनाते हैं। उन्हें हमेशा उसे बनाकर रखना है। उम्र के साथ वह भी जिम्मेदार बनते चले जाते हैं। लोग उनकी फिल्म से प्रभावित होते हैं। उनकी फिल्में टीवी पर आती हैं। वो आज भी जिंदा है। आज भी टीवी पर उनकी फिल्में देखी जाती हैं। आज भी लोग इस तरह की फिल्में देखना चाहते हैं। उन्होंने उनकी मार्केटिंग टीम से कहा कि इसे युवा फिल्म के नाम से प्रमोट ना करें। आज के बच्चे इस तरह की फिल्में शायद ही देखना पसंद करें। लेकिन वे अपने माता-पिता को यह फिल्में दिखाना पसंद करेंगे। यह सब उन्हें उनकी फिल्मों को विरासत में मिला है। यही वजह है कि इतनी असफल फिल्मों के द भी राजश्री बैनर को मौका दिया जाता है।"  खुद पर परत लगा रखी:
सूरज बडज़ात्या जैसे शांत और संयत लोग कम हैं। इतना निश्छल हो पाना समाज में कितना मुश्किल है? शूटिंग के समय कैसे सहजता से काम हो पाता है, पूछे जाने पर सूरज कहते हैं, "जी नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है। उन सबने खुद पर परत लगा रखी है। उन्होंने सेट पर कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने लोगों पर चिल्लाया भी है। उन्होंने महसूस किया कि चिल्लाने से कोई काम नहीं होने वाला है। एक्टर और फिल्म की टीम निर्देशक के विजन से काम करती है। वो अपनी जिंदगी के हिसाब से काम नहीं करते हैं। फिल्म में सभी निर्देशक की जिंदगी जीते हैं। वह इसी वजह से फिल्म से पहले ढेर सारा होमवर्क कर लेते हैं। जिससे कमी की कोई संभावना नहीं बचती है। उससे काफी काम पहले ही हो जाता है। इससे शूटिंग के समय रचनात्मक काम होता है। इसके अलावा उन्होंने देखा कि कई चीजों को छोड़ देना चाहिए। गलती तो हर इंसान से होती है। कवरअप करने पर काम जल्दी हो जाता है।"

Report by: Ajay Brahmatmajabrahmatmaj@mbi.jagran.comMumbai Bureau

Posted By: Shweta Mishra