- एनसीईआरटी बुक्स को स्कूल्स कर रहें हैं नजरअंदाज

- महंगे पब्लिशर्स की महंगी बुक्स से करते हैं मोटी कमाई

- 90 प्रतिशत से ज्यादा कीमत की होती हैं किताबें

- स्कूल्स नेम की कॉपी एंड कवर से भी करते हैं मुनाफा

Meerut : आजकल स्कूल्स बुक्स एंड कॉपीज का मेला सजने लगा है, रेट पर गौर करें तो होश ही उड़ जाएंगे। एनसीईआरटी की बुक्स की कीमत से दस गुणा महंगी बुक्स स्तर के मामले में आज भी कहीं ज्यादा पीछे। साफ है दस रुपए की बुक्स सीधे सौ में बेची जा रहीं हैं। वहीं स्कूल्स के नाम पर बेची जाने वाली कॉपी व उनके कवर भी काफी महंगे हैं। खामियाजा पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स को ही भुगतना होता है। हकीकत पर जाए तो एनसीईआरटी की बुक्स की कीमत जहां प्राईमरी क्लासेज के लिए महज चार-पांच सौ रुपए होती हैं। वहीं, पब्लिक स्कूल्स में बेची जा रहीं बुक्स सेट ढाई हजार तक है।

कर रहें नजरअंदाज

बात इंजीनियरिंग की हो या मेडिकल की बुक्स से तैयारियों की सबसे पहले एनसीईआरटी का नाम ही आता है। एक्सपर्ट भी अक्सर इन्हीं बुक्स से तैयारी करने की सलाह देते हैं। सलेबस कंटेट एंड क्वालिटी हर मामले में एनसीईआरटी बुक्स बेस्ट हैं, लेकिन सिटी के पब्लिक स्कूल्स इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। स्कूल्स महंगे पब्लिशर्स को ज्यादा पसंद करते हैं। एक्सपर्ट कमेंट्स पर गौर करें तो एनसीईआरटी बुक्स की क्वालिटी वाइज बेस्ट है। फिर भी स्कूल्स सिलेबस में जगह नहीं दे रहे हैं। वजह साफ है महंगे पब्लिशर्स की महंगी बुक्स से बड़ी कमाई होती है।

पेरेंट्स की होती है मजबूरी

एनसीईआरटी की बुक्स सिलेबस एंड कंटेंट के हिसाब से बेहतर भी मानी जाती हैं। क्लास फ‌र्स्ट से ही सीबीएसई स्कूल्स में यह बुक्स लागू हो जाती है, लेकिन सिटी के स्कूल्स तो शुरू से ही किताबों से शुरू से ही परहेज करते हैं। प्राईवेट स्कूल्स की बात करें तो यहां फ‌र्स्ट क्लास में बच्चों पर पढ़ाई का जितना बोझ होना चाहिए। उस हिसाब से एनसीईआरटी की बुक्स में कोई बुराई नहीं, डाटा के हिसाब से पेरेंट्स भी महंगाई की मार से बच जाते हैं। लेकिन स्कूल्स महंगे पब्लिशर्स की महंगी बुक्स ही पेरेंट्स को खरीदने के पर मजबूर करते हैं।

कवर भी कमाई का तरीका

कहानी केवल किताबों तक समित नहीं है। स्कूल्स नेम प्रिंट कवर के नाम पर भी मोटी कमाई हो जाती है। बता दे कि तमाम स्कूल्स एमपीएस, दीवान पब्लिक स्कूल, जीटीबी, सोफिया ग‌र्ल्स जैसे अधिकत्तर पब्लिक स्कूल्स ने अपने ही नेम वाली कॉपी एंड कवर चढ़ाने के लिए बोला हुआ है। सिटी के इन तमाम पब्लिक स्कूलों के नाम से बिकने वाली कापी साधारण कापी के मामले में पांच से दस रुपए महंगी ही पड़ती हैं। स्कूल कवर में ख्भ् से फ्0 रुपए के कवर पैकेट में दस ही कवर मिल रहे हैं। वहीं अगर कॉपी की बात करें तो क्भ्-क्म् रुपए वाली साधारण कॉपी स्कूल्स नाम आ जाने से ख्भ् से फ्0 रुपए के बीच सेल हो रहीं हैं।

क्या है एनसीईआरटी बुक्स के रेट

हिंदी रिमझिम ब्0 रुपए

इंग्लिश मैरीगोल्ड फ्0 रुपए

मैथ मैजिक वाली बुक्स ब्0 रुपए

गणित का जादू भ्0 रुपए

इसके अलावा भी एनसीईआरटी की तमाम बुक्स है जो केवल फ्0 से लेकर भ्0 रुपए के बीच ही मिल जाती हैं।

प्राईवेट बुक्स के रेट

एसएसटी - ख्ख्0

सोशल साइंस - ख्09

हिंदी व्याकरण - क्म्0

जर्नल नॉलेज - ख्00

हिंदी- क्70

इंग्लिश - क्ब्0

इंग्लिश ग्रामर- क्म्0

कंप्यूटर - क्ख्0

टैक्स से बचते हैं स्कूल

कायदे में तो वो बुक्स जो साहित्य के रूप में या उपन्यास के रूप में होती है वो इनकम टैक्स के दायरे से बाहर होती हैं। मगर अगर टैक्स बुक्स की बात करें या फिर किसी ऐसी बुक या कॉपी की बात करें जिनमें एक्सरसाइज भरने वाले चेप्टर होते हैं। तो उन पर लगभग पांच प्रतिशत का सेल टैक्स होता हैं, वहीं अगर बात करें स्कूल्स इनकम की तो उन्हें अपनी इनकम का लगभग ख्.फ्म् प्रतिशत टीडीएस भी भरना होता है। मगर स्कूल्स खुद को चेरिटेबल की कैटगरी में दिखाकर इन सबसे बच जाते हैं।

दिव्या, टैक्स एडवोकेट

एनसीईआरटी का सिलेबस अच्छा हैं, लेकिन कॉन्सेप्ट्स क्लियर करने में बच्चों को काफी प्रॉब्लम आती है। सीसीई एक्सरसाइजेज जैसी तमाम चीजें प्राईवेट पब्लिशर्स की बुक्स में ही होती हैं, इसलिए स्कूल्स इन्हें प्रीफर करते हैं। इनसे स्टूडेंट्स का बेस्ड स्ट्रॉंग होता है.वैसे भी यह सभी एनसीईआरटी बुक्स एनसीईआरटी बेस्ड ही होती हैं।

-अनीता त्रिपाठी, एमपीएस स्कूल

कुछ बुक्स ऐसी हैं जो एनसीईआरटी से ज्यादा बेहतर होती हैं.इनका कंटेंट प्रेजेंटेशन एंड लैंग्वेज एनसीईआरटी से बेहतर होता है, एनसीईआरटी पूरे देश की वैरायटी देखकर बनाई जाती है, लेकिन स्कूल्स को स्टूडेंट्स के हिसाब से जिन बुक्स में ज्यादा वैरायटी एंड एक्सरसाइज दिखती है वो वहीं लगाते हैं।

-एचएम राउत, दीवान पब्लिक स्कूल

नहीं होता कोई नियम

प्राईमरी बुक्स के लिए सीबीएसई ने अभी तक कोई नियम नहीं निकाला है। वैसे भी एनसीईआरटी की बुक्स मार्केट में आसानी से मिल पाती हैं। यहीं कारण है स्कूल्स स्टूडेंट्स के लिए बेहतर से बेहतर बुक्स लगाते हैं।

विशाल जैन, सहोदय सचिव एंड शांति निकेतन प्रिंसीपल

ऐसा नहीं है एनसीईआरटी की बुक्स स्कूल्स लगाना नहीं चाहते। मेन कारण तो है स्टूडेंट्स के बेस को क्लीयर करना। एनसीईआरटी की तुलना में प्राईवेट बुक्स में ज्यादा डिपली चेप्टर होते हैं, एक्सरसाइज भी ज्यादा अच्छे से दी होती हैं।

कपिल सूद, जीटीबी

स्कूल्स को बुक्स के लिए कोई

स्कूल्स तो अपने अपने अनुसार ही जिन बुक्स को सही समझते हैं वो ही लगवा देते हैं। स्कूलों को लगता होगा कि प्राईवेट बुक्स में एनसीईआरटी के अनुसार ज्यादा एक्सरसाइज हैं, इसलिए ही वह प्राईवेट बुक्स पर जोर देते हैं।

डॉ। पूनम देवदत्त, सीबीएसई काउंसलर

Posted By: Inextlive