प्रत्येक मनुष्य में कुछ सद्गुण होते हैं। आपके द्वारा प्रज्ज्वलित प्रत्येक दीपक इसी का प्रतीक है। कुछ में धैर्य होता है कुछ में प्रेम शक्ति उदारता अन्य में लोगों को साथ मिलाकर चलने की क्षमता होती है। आप में स्थित अव्यक्त सद्गुण दीपक के समान हैं। केवल एक ही दीप जलाकर संतुष्ट न हों; हजारों दीप प्रज्ज्वलित करें।


कानपुर। एक दीपक की बाती को जलने के लिए उसे तेल में डूबे होना चाहिए, और साथ ही तेल के बाहर भी रहना चाहिए. यदि बाती तेल में पूरी डूब जाए, तो वह प्रकाश नहीं दे सकती। जीवन भी दीपक की बाती के समान है, तुम्हें संसार में रहते हुए भी उसके ऊपर निष्प्रभावित रहना होता है। अगर तुम पदार्थ जगत में डूबे हुए हो, तो जीवन में आनंद और ज्ञान नहीं ला पाओगे। संसार में रहते हुए भी, सांसारिक माया के ऊपर उठकर हम आनंद और ज्ञान के ज्योति प्रकाश बन सकते हैं। इस प्रकार से ज्ञान के प्रकाश के प्रकट होने का उत्सव ही दिवाली है। दीपावली बुराई पर अच्छाई का, अंधकार पर प्रकाश का और अज्ञान पर ज्ञान के विजय का त्योहार है। इस दिन घरों में की जाने वाली रोशनी न केवल सजावट के लिए होती है, बल्कि जीवन के गहरे सत्य को भी अभिव्यक्त करती है।

हरेक दिल में प्रेम और ज्ञान की लौ को प्रज्ज्वलित करें और सभी के चेहरों पर सच्ची मुस्कान लाएं। प्रत्येक मनुष्य में कुछ सद्गुण होते हैं। आपके द्वारा प्रज्ज्वलित प्रत्येक दीपक इसी का प्रतीक है। कुछ में धैर्य होता है, कुछ में प्रेम, शक्ति, उदारता, अन्य में लोगों को साथ मिलाकर चलने की क्षमता होती है। आप में स्थित अव्यक्त सद्गुण दीपक के समान हैं। केवल एक ही दीप जलाकर संतुष्ट न हों; हजारों दीप प्रज्ज्वलित करें क्योंकि अज्ञान के अंधकार को दूर करने के लिए अनेक ज्योत जलाने होंगे। ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वलित होने से आत्मस्वरूप के सभी पहलू जाग्रत हो जाते हैं और उनका जाग्रत और प्रकाशित हो जाना ही दीपावली है।

जीवन का एक और गूढ़ रहस्य दिवाली के पटाखों के फूटने में है। जीवन में कई बार आप पटाखों के समान अपनी दबी हुई भावनाओं, कुंठाओं और क्रोध के कारण अति ज्वलनशील रहते हैं। बस फूटने के लिए तैयार. अपने राग-द्वेष, घृणा आदि को दबाकर हम फटने की उस स्थिति तक पहुंच जाते हैं कि अब फूटे कि तब. पटाखे फोडऩे की प्रथा हमारे पूर्वजों द्वारा, लोगों की दबी हुई भावनाओं से मुक्ति पाने का एक सुंदर मनोवैज्ञानिक उपाय है। जब आप बाहर विस्फोट देखते हैं तो आपके अंदर भी वैसी ही कुछ अनुभूति होती है। विस्फोट के साथ प्रकाशपुंज भी होता है और आप अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होते हैं फिर अंदर में शांति का उदय होता है।

अपने नित नूतन और चिर पुरातन स्वभाव का अनुभव करने के लिए इन दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना अति आवश्यक है। दीपावली का अर्थ है, वर्तमान क्षण में जीना, अत: अतीत का पछतावा और भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान क्षण में जीएं। दीपावली की मिठाइयों और उपहारों के आदान-प्रदान के पीछे भी एक मनोवैज्ञानिक पहलू है। पुरानी गलतफहमी की कड़वाहट को छोड़कर संबंधों को मधुर बनाते चलो। सेवा भाव के बिना हर उत्सव अधूरा है। परमात्मा ने जो कुछ भी हमें दिया है उस प्रसाद को हमें सबके साथ बांटना है क्योंकि जितना बांटेंगे उतना हीउसकी कृपा और बरसती है। सही मायने में यही दीपावली का उत्सव है।

उत्सव का और एक अर्थ है- अपने मतभेदों को मिटाकर अद्वैत आत्मा की ज्योति से अपने सच्चिदानन्द स्वरूप में विश्राम करना। दिव्य समाज की स्थापना के लिए हर दिल में ज्ञान व आनंद की ज्योत जलानी होगी। और वह तभी संभव है यदि सब एकसाथ मिलकर ज्ञान का उत्सव मनाएं। बीते हुए वर्ष के झगड़े फसाद और नकारात्मकताओं को छोड़कर अपने भीतर उदित हुए ज्ञान पर प्रकाश डालकर एक नई शुरुआत करना ही दीपावली का उत्सव है। जब सच्चा ज्ञान उदित होता है, तब उत्सव होता है।

अधिकतर उत्सव में हम अपनी सजगता या एकाग्रता खोने लगते हैं। उत्सव में सजगता बनाए रखने के लिए, हमारे ऋषियों नें प्रत्येक उत्सव को पावन बनाकर पूजा विधियों के साथ जोड़ दिया इसलिए दिवाली भी पूजा का समय है। दिवाली का आध्यात्मिक पहलू उत्सव में गहरायी लाता है। प्रत्येक उत्सव में आध्यात्म होना चाहिए क्योंकि आध्यात्म के बिना उत्सव छिछला होता है। जो ज्ञान में नहीं हैं, उनके लिए वर्ष में एक बार ही दिवाली आती है, किंतु जो ज्ञानी हैं उनके लिए प्रत्येक दिन, प्रतिक्षण दिवाली है। इस दिवाली को ज्ञान के साथ मनाएं और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें। अपने दिल में प्रेम का दीपक जलाओ.

श्री श्री रविशंकरश्री श्री रविशंकर जानेमाने आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक हैं। मानव जीवन को बेहतर बनाने में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2016 में उन्हें पद्मा विभूषण से सम्मानित किया है।

Posted By: Chandramohan Mishra