एजुकेशन सेक्टर भी बन गया है कारपोरेट, मोटी फीस वसूलते हैं शिक्षण संस्थान

सुविधाओं के नाम पर रहती है केवल हाईफाई व्यवस्था, यूनिवर्सिटी में तो सुविधाएं भी नहीं मिलती

ALLAHABAD: बिजनेसमैन हो, पूंजीपति, सर्विस मैन या फिर मजदूरी करने वाला, हर कोई यही चाहता है कि उसका बेटा अच्छे स्कूल-कॉलेज में पढ़े। अच्छी शिक्षा हासिल करे। अच्छा इंसान बने। इसके लिए वे स्कूल-कॉलेजों में मुंहमांगी फीस भरते हैं, लेकिन इसके बाद भी क्वालिटी एजुकेशन की उम्मीद नहीं रख सकते। एजुकेशन सेक्टर में भी अब कारपोरेट कल्चर हावी है। एजुकेशन अब सबसे बड़ा बिजनेस बन चुका है। इसलिए मोटी फीस देने के बाद भी पैरेंट्स व स्टूडेंट को क्वालिटी एजुकेशन की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के कैंपेन गर्मी लगी क्या के अंतिम दिन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के यूनियन हॉल और मिशन इंस्टीट्यूट में स्टूडेंट्स से बातचीत की गई। उन्होंने खुल कर अपनी राय रखी।

स्पॉट 1- यूनियन हॉल, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

एजुकेशन पर जीडीपी का तीन परसेंट ही हो रहा खर्च

चर्चा की शुरुआत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के यूनियन हॉल से हुई। यहां स्टूडेंट्स ने स्कूल-कॉलेजों के फीस स्ट्रक्चर के साथ ही सुविधाओं पर सवाल उठाया। उन्होंने इसके लिए किसी और को नहीं बल्कि सिस्टम को ही दोषी ठहराया। छात्र रामबाबू तिवारी ने कहा कि शिक्षा की समानता में लगातार दूरी बढ़ती चली जा रही है। व‌र्ल्ड बैंक जब गवर्नमेंट को लोन देती है, तो यह व्यवस्था बनाती है कि आप हेल्थ वेलफेयर कम करेंगे, हेल्थ वेलफेयर में इनवेस्टमेंट कम करेंगे। यही कारण है कि एजुकेशन में सब्सिडी कम हो रही है और प्राइवटाइजेशन बढ़ रहा है। एचडीआई में एजुकेशन का 135वां रैंक है। यही कारण है कि एजुकेशन की स्थिति खराब है।

गणेश शुक्ला ने कहा कि सरकारी कॉलेजों में बीटेक की 500 सीटें हैं, जबकि बीटेक करने वाले 5000 हजार से ज्यादा। ऐसे में ज्यादातर छात्र प्राइवेट कॉलेज की ओर जाते हैं। समस्या का मूल कारण सरकार को समझना चाहिए। सरकार जीडीपी का 3 परसेंट भी एजुकेशन पर खर्च नहीं करती है। चीन एजुकेशन पर जीडीपी का दस परसेंट खर्च करता है। कबीर आजाद मिश्रा ने कहा कि एलएलबी करने बड़े संस्थान में जाईए तो वहां सब कुछ मिलेगा, लेकिन एयू की बात करें तो यहां कुछ नहीं मिलेगा। हर डिपार्टमेंट में समस्या है। किसी भी यूनिवर्सिटी के छात्रों को केवल तीन चीजें चाहिए। पहला-रहने के लिए हॉस्टल, दूसरा- पढ़ने के लिए शिक्षक और पीने के लिए अन्य जरूरी सुविधाएं। ये तीन चीजें मिल जाएं तो स्टूडेंट आसानी से सर्वाइव कर सकें। अरविंद सरोज ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र से निम्न परिवार के छात्र भविष्य संवारने का सपना संजोकर महानगरों में आते हैं। ज्यादातर छात्र पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इलाहाबाद हो या फिर, कानपुर-दिल्ली आज महानगरों में एजुकेशन काफी महंगा है।

स्पॉट- 2 मिशन इंस्टीट्यूट

अभी तक शिक्षा नीति नहीं बना सकी मोदी सरकार

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के यूनियन हॉल में चर्चा के बाद दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम मिशन इंस्टीट्यूट पहुंची। वहां स्टूडेंट्स ने एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाया। चर्चा की शुरुआत करते हुए कौटिल्य शुक्ला ने कहा कि सन् 1800 में जब लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति आई थी, तब से यह दिक्कत है, जब बाल गंगाधर तिलक ने उनकी शिक्षा नीति का विरोध किया था। क्योंकि किसी भी देश का विकास उसकी संस्कृति से होता है। लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति ने भारत की संस्कृति पर हमला किया था। आज शिक्षा का निजीकरण हो चुका है। रही बात मोदी सरकार की तो अभी तक केंद्र सरकार की शिक्षा नीति निर्धारित ही नहीं हो सकी है। स्मृति ईरानी के बाद प्रकाश जावड़ेकर आए तो उन्होंने कहा हम नई शिक्षा नीति बनाएंगे। अरविंद कुमार यादव ने कहा कि सरकारी स्कूल कॉलेज तो अव्यवस्था के लिए हमेशा बदनाम रहते हैं। वहीं प्राइवेट कॉलेजों की बात करें तो ज्यादातर कॉलेजों में प्रयोगशाला ही नहीं रहती है, जबकि कॉलेजों में फीस पूरी ली जाती है। प्रभात कुमार ने कहा कि पुस्तकालय में पुस्तक हो और पढ़ाने के लिए अध्यापक हों, पीने के लिए स्वच्छ पानी हो। इससे ज्यादा लग्जरी व्यवस्था छात्रों को कुछ और नहीं चाहिए। कृषिका श्रीवास्तव ने कहा कि फीस किसलिए ली जाती है। फीस का आधार क्या है। शिक्षा व्यवसाय हो चुका है। रमन मौर्या ने कहा कि सुविधा शुल्क क्या है? कॉलेजों में अब सुविधा शुल्क का प्रचलन शुरू हो गया है।

जो फीस ली जा रही है वो काफी ज्यादा है। छात्रों में अनुशासन की कमी नजर आती है। फीस तो ली जाती है, लेकिन उसमें इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है कि छात्रों को कैसे बेहतर एजुकेशन दे सके। स्टूडेंट्स पढ़ तो बड़े कॉलेज में रहा है, लेकिन उसके बेसिक गड़बड़ हैं। इसीलिए उसे कोचिंग संस्थान में जाना पड़ता है। कॉलेजों में अनुशासनहीनता है।

संजय सिंह परिहार

डायरेक्टर मिशन इंस्टीट्यूट

किसी भी स्टूडेंट को प्राइवेट संस्थान में इसलिए जाना पड़ता है, क्योंकि सरकारी संस्थाओं में पढ़ाई ठीक से नहीं होती। वैदिक काल में कहा गया है कि सा विद्या या विमुक्तये। जो विद्या हमें मुक्ति देती है, उसे आज बेचा जा रहा है। प्राइवेट कॉलेजों की स्थिति ये है कि हर वक्त अभिभावकों को लूटने के नए-नए तरीके इजाद करने में लगे रहते हैं।

संदीप पांडेय

टॉप यूनिवर्सिटी में प्राइवेट यूनिवर्सिटी का ही नाम आता है, जो फीस ज्यादा लेती हैं। आज स्थिति ये है कि हाईस्कूल के 70 परसेंट बच्चे वर्ड नहीं पढ़ पा रहे हैं। अब ये जब हॉयर एजुकेशन के लिए पहुंचेंगे तो क्या कर लेंगे, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। स्कूलों का हाल ये है कि उन्हें बस फीस चाहिए, इससे मतलब नहीं कि बच्चा पढ़ क्या रहा है।

प्रशांत मिश्रा

इनवायरनमेंट विभाग इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में है, लेकिन इनवायरमेंट सुरक्षा पर ध्यान नहीं। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की समस्या, हर हॉस्टल में कचरा फैला रहता है। हेल्थ की व्यवस्था नहीं, बीमा की सुविधा नहीं। छात्रों के हेल्थ पर ध्यान नहीं दिया जाता है। हायर एजुकेशन में तो हेल्थ की बेहतर व्यवस्था होनी ही चाहिए।

रामबाबू तिवारी

क्वालिटी एजुकेशन डाउनफाल की ओर है। स्कूलों और कॉलेजों में प्रैक्टिकल पर नहीं बल्कि थ्यौरी पर ही फोकस किया जाता है। जबकि थ्योरी से ज्यादा प्रेक्टिकल पर फोकस होना चाहिए। तभी स्टूडेंट्स का फ्यूचर बेस्ट हो सकेगा, लेकिन कोई भी स्कूल या कॉलेज इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं। बस सिर्फ शानदार बिल्डिंग बनाने पर सबका फोकस है।

सद्दाम हसन

Posted By: Inextlive