-ढाई हजार मकान अधूरे, निर्माण निगम दफ्तर पर लटक रहे ताले

-बीएसयूपी योजना के तहत दस हजार मकान बनाने का था लक्ष्य

-अफसर बोले हर हाल में पूर्ण कराया जाएगा निर्माण

Meerut: सरकारी योजना का क्या हश्र होता है, इसका बीएसयूपी अच्छा उदाहरण है। गरीब के घरौंदे का सपना कुचलकर योजना के मद का पैसा विभागीय अधिकारी हजम कर गए। आधे-अधूरे मकान अब योजना को मुंह चिढ़ा रहे हैं, वहीं कार्यदायी संस्था राजकीय निर्माण निगम अधर में पड़े मकानों को छोड़कर गायब हो गई। दो साल में योजना को पूर्ण करने के लिए रखा गया लक्ष्य आज छह साल बाद भी हिट नहीं पाया है।

ये है मामला

भारत सरकार ने ख्009 में बेसिक सर्विस फॉर अर्बन पुअर (बीएसयूपी) योजना का शुभारंभ किया था। योजना के माध्यम से सरकार ने गरीब शहरियों को सरकारी आवास मुहैया कराने का लक्ष्य रखा था। सरकार की ओर से जिला नगरीय विकास अभिकरण यानी डूडा को नोडल एजेंसी और कार्यदायी संस्था के रूप में उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम का चयन किया गया था। योजना के लिए डूडा ने शहर की मलिन बस्तियों का सर्वे कर चौदह फेस में दस हजार मकान बनाने का टारगेट फिक्स किया था। योजना के लिए चयनित किए गए व्यक्ति के लाभार्थी अंशदान के रूप में मकान की कुल कीमत ढाई लाख का दस फीसदी लगभग ख्भ् हजार रुपये जमा कराना तय हुआ था।

कार्यदायी संस्था का खेल

शासन की प्रमुखता वाली इस योजना में नोडल एजेंसी को साथ ले कार्यदायी संस्था ने बड़ा खेल कर दिया। दरअसल, शासन से जो पैसा आवास निर्माण कार्यो को लिए आया उसको निर्माण निगम के अफसरों ने मोटे कमीशन के फेर में इन्फ्रा कार्यो में बंदरबाट कर दिया। जबकि आवास कार्यों का निर्माण बेहद धीमी गति से चलता रहा। इस तरह से आवास कार्यो में खर्च होने वाला पैसा निर्माण निगम के अफसरों और कांट्रेक्टर्स के बीच ही गुम होकर रह गया और गरीब लाभार्थियों के आवास कार्य अधूरे रह गए।

बेघर हो गए लाभार्थी

योजना में लाभार्थी बने गरीबों ने कभी यह भी नहीं सोचा था कि सरकारी योजना का लाभ उठाने के चक्कर में उनको लेने के देने पड़ जाएंगे। डूडा की ओर से निर्माण निगम को जिन लाभार्थियों की सूची सौंपी गई थी, वहां जाकर निर्माण निगम के कांट्रेक्टर्स ने नए आवास बनाने के लिए उनके पुराने मकानों पर बुल्डोजर चलवा दिया। यहीं से गरीबों की परेशानी के दिन शुरू हो गए। असल में कांट्रेक्टर्स ने मकानों को तोड़ आवास निर्माण कार्य तो शुरू कर दिया, लेकिन उन मकानों को अधर में छोड़ दिया। जब गरीबों ने मकान पूरा करने की गुहार लगाई तो उन्होंने फंड खत्म होने के बात कर कर पल्ला झाड़ लिया। नतीजा यह निकला कि सरकारी मकान की चाह में गरीब बेचारे सड़क पर आ गए।

ढाई हजार मकान अधूरे

आज शहर में बीएसयूपी के लगभग ढाई हजार मकान अधूरे पड़े हैं। पिछले कई सालों से मकान पूर्ण करने को लेकर डूडा और निर्माण निगम का चक्कर काट रहे गरीबों को पहले तो यह बताया जाता रहा कि मकानों के पुराने रेट रिवाइज होकर आएंगे तब ही मकान बनाए जाएंगे। अब जबकि कई माह पूर्व रेट रिवाइज होकर आ गए हैं, बावजूद गरीबों के मकानों की कोई सुध नहीं ली जा रही है।

कार्यदायी संस्था हुई फुर्र

कार्यदायी संस्था निर्माण निगम का फाल्ट देखते हुए शासन ने उसको यूपी में कोई अन्य प्रोजेक्ट देने से हाथ खड़े कर दिए। उधर, शहर में अधूरे पड़े मकानों को पूर्ण करने का दबाव निर्माण निगम पर लगातार बढ़ता जा रहा था। इन सबके बीच निर्माण निगम अफसरों ने दांव लगाकर रूड़की में किसी अन्य प्रोजेक्ट पर करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही कार्यदायी संस्था ने यहां से अपना बोरिया बिस्तर समेट सरकारी दफ्तर पर ताला लटका दिया।

ठगा महसूस कर रहे लाभार्थी

निर्माण निगम और डूडा की जुगलबंदी ने गरीबों के लिए संकट खड़ा कर दिया। न तो बेचारों को वो पैसा ही मिल पाया जो उन्होंने लाभार्थी अंशदान के रूप में जमा किया था और न ही उनकों सरकारी मकान मयस्सर हो सका। उल्टा सरकारी लोगों की बातों में आकर उन्होंने अपना खुद का मकान और गंवा दिया। उधर, कार्यदायी संस्था का ऑफिस बंद हो जाने के कारण गरीबों को आश्वासन का सहारा भी जाता रहा।

बॉक्स

सिटी में बन रहे हैं करीब 9000 मकान

डूडा सिटी में गरीबों के लिए करीब 9000 मकान तैयार कर रही है। जिसका पूरा काम निर्माण निगम ही देख रहा है। निर्माण निगम को क्ब् जोन में बांटा हुआ है। जिसमें जोन तीन है ही नहीं। डाबका जोन ख् में आता है।

जोन फ्लैट की संख्या

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स्टेट फ्0 और सेंट्रल गवर्नमेंट का 70 फीसदी हिस्सा

ये योजना पूरी तरह से राज्य और प्रदेश सरकार की मिली-जुली योजना है, जिसमें केंद्र की 70 फीसदी और राज्य की फ्0 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन दोनों में से कोई भी इस योजना को देख ही नहीं रहा है।

Posted By: Inextlive