इसे अघोषित सरहद माना जाता है जहाँ छत्तीसगढ़ की सरकार की हुकूमत समझो 'ख़त्म' हो जाती है.


यहाँ से शुरू होता है जनताना सरकार का इलाका. 'जनताना सरकार', यानी 'जनता की सरकार' जिसे माओवादी अपने शासन के मॉडल के रूप में पेश करते हैं. ये सरहद हिंदुस्तान और चीन की सरहद से भी ज़्यादा संवेदनशील मानी जाती है.अंतरराष्ट्रीय सरहदों पर तो दोनों तरफ के अधिकारी मिलते-जुलते भी हैं, मगर इस 'सरहद' पर तल्ख़ी ही तल्ख़ी हैं.छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले से सोनपुर वाली सड़क देखते-देखते विलुप्त होती चली जाती है. कुछ किलोमीटर बाद सड़क का नामोनिशाँ ख़त्म हो जाता है. टूटी-फूटी कच्ची सड़क अबुझमाड़ तक जाती है.सरकार का कहना है कि यह वही इलाका है जहाँ माओवादियों के बड़े-बड़े नेताओं ने शरण ले रखी है क्योकि यहाँ के दुर्गम रास्ते, घने जंगल और पहाड़ियां इस इलाक़े में उनके छिपने के लिए माकूल जगह हैं.
अबुझमाड़ यूं तो नारायणपुर ज़िले में है, लेकिन इसकी सरहद दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, कांकेर और महाराष्ट्र से लगती है. इसलिए माओवादी नेता यहाँ आसानी से आवाजाही करते हैं.कई दशकों से 50,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाक़े में सरकारें नहीं पहुँच पाई हैं. अबूझमाड़ के लिए नारायणपुर से दूसरा रास्ता है ओरछा का.बारूद से पटा इलाक़ा


गाँव की पूर्व सरपंच गीता भोय कहती हैं कि पिछले चुनाव में माओवादियों ने उनके गाँव का मतदान केंद्र लूट लिया था. उन्होंने पंचायत भवन को भी जला दिया था.आखिर क्यों इस पार के लोग उस पार नहीं जाना चाहहे? इस पर ग्रामीण कहते हैं :"जाना मुसीबत को न्योता देना है. वहां जाएँगे तो माओवादी हमें पुलिस का मुख़बिर समझते हैं. हमें मार भी सकते हैं. वापस लौटकर आते हैं तो पुलिस वाले हमें माओवादियों का मुख़बिर समझते हैं.".यही कारण है कि गाँव से एक दो किलोमीटर की दूरी पर बसे दूसरे गाँवों से उनके कोई संपर्क भी नहीं हैं.एक दूसरे ग्रामीण ने बताया कि उन लोगों के 'उस पार' कोई दोस्त भी नहीं हैं. वे कहते हैं, "न उस पार हमारे दोस्त हैं और न हमारे बच्चों के दोस्त कभी होंगे. हम इस पार ही ठीक हैं."उस पार की दुनिया इनके लिए बिलकुल अनजान है. मगर हमेशा ऐसा नहीं था. उनके पूर्वज पहले इन इलाक़ों में जाया करते थे. अबुझमाड़ में इनकी रिश्तेदारियां भी थीं. मगर आज इनका संपर्क पूरी तरह टूट चूका है.अब 'जनताना सरकार' के प्रतिनिधि धीरे-धीरे इस इलाक़े में भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में हैं. इसलिए माओवादियों के दस्ते गाहे-बगाहे ब्रहीबीड़ा आना-जाना करने लगे हैं.

Posted By: Satyendra Kumar Singh