भारत में बच्‍चों को उनके अधिकार दिलान के लिए वर्ष 1980 से संघर्ष कर रहे कैलाश सत्‍यार्थी के प्रयासों को आखिर नोबेल पुरुस्‍कार समिति ने शांति सम्‍मान से नवाजा है. आइए जानें कैलाश सत्‍यार्थी के प्रयासों के बारे में...

कैलाश सत्यार्थी को मिला नोबेल पुरुस्कार
फेमस इंडियन चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी को नोबेल प्राइज कमेटी ने नोबेल पीस प्राइज से नवाजा है. नोबेल प्राइज कमेटी ने 2014 का पीस प्राइज कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसुफजेई को सयुंक्त रूप से दिया है. कैलाश सत्यार्थी के साथ इस प्राइज के लिए एडवर्ड स्नोडेन, चेलेसा मैनिंग, धर्मगुरु पोप और ब्लादिमीर पुतिन भी संघर्ष कर रहे हैं. इस मौके पर कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि पीस प्राइज ने हमारे द्वारा बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के संघर्ष को पहचान दी है. इससे पहले यह पुरुस्कार मदर टेरेसा को मिला था.

कैसे काम करती है बचपन बचाओ आंदोलन

बचपन बचाओ आंदोलन का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निमार्ण करना है जहां हर बच्चे को क्वालिटी एजुकेशन मिले और किसी भी तरह के शोषण से मुक्त रखा जा सके. इसके लिए संस्था कई तरह के पब्लिक अवेयरनेस कैंपेन, एक्टिविटीज और राइड्स रन करती है जिनसे बालश्रम से जुड़ी समस्याओं से लोगों को अवेयर कराया जा सके. इसके साथ ही संस्था चाइल्ड फ्रेंडली विलेज नामक प्रोग्राम भी रन करती है. इस प्रोग्राम के तहत उन गांवों को बाल मित्र ग्राम की संज्ञा दी जाती है जहां पर बालश्रम पूरी तरह से खत्म किया जा चुका है. इसके साथ ही सभी बच्चों का स्थानीय स्कूल का इनरोलमेंट हो एवं बाल पंचायत से सीधा संपर्क हो. संस्था के इस मॉडल को बालश्रम और चाइल्ड ट्रेफिकिंग को दूर करने में काफी मददगार माना गया है. बच्चों की रक्षा करने के निए बचपन बचाओ आंदोलन की टीम भारतीय कानूनों के अनुसार अपने कैंपेन डिजाइन करती है. बालश्रम से छुड़ाए गए बच्चों के रिहेबिलिटेशन के लिए संस्था राज्य सरकार की योजनाओं के साथ काम करती है.


बचपन बचाओ आंदोलन के अचीवमेंट

कैलाश सत्यार्थी की संस्था ने भारत में 180 संसद सदस्यों के साथ मिलकर साल 2001 में 15000 किलोमीटर लंबा मार्च किया. इस मार्च के फलस्वरूप भारत सरकार ने बच्चों को राइट ऑफ फ्री और कंपलसरी एजुकेशन दिया.

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Posted By: Prabha Punj Mishra