Bareilly: एसएसवी इंटर कॉलेज और शर्मा कोचिंग के विवाद ने एक नए खेल की पोल खोली है. ऐसा खेल जिससे स्टूडेंट्स अंजान हैं और वे कब फंस जाते इसकी उन्हें भी भनक तक नहीं लगती. इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट अपने कॉलेज की सीट फिक्स करने के लिए पहले से ही स्टूडेंट्स पर नजरें गड़ाए रहते हैं और उनके इस खेल में मोहरे बनते हैं कोचिंग सेंटर और इंटर कॉलेजेज. कंधा इनका और टारगेट हैं स्टूडेंट्स. इस पूरे सीन के पीछे के राइटर और डायरेक्टर सिटी के इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज ही होते हैं.


Coaching centres की मिलीभगतइंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज का आसान मोहरा बनते हैं कोचिंग सेंटर। एसएसवी इंटर कॉलेज के डायरेक्टर साकेत सुधांशु ने बताया कि कोचिंग सेंटर के टीचर्स और ओनर का कमीशन बंधा होता है। बिना स्कूल और पेरेंट्स को इंफॉर्म किए वे स्टूडेट्स को एजुकेशनल टूर के नाम पर इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज में विजिट के लिए जाते हैं। इसके बदले उन्हें मोटा कमीशन मिलता है। उन्होंने बताया कि एजुकेशन टूर के नाम पर कॉलेजेज मैनेजमेंट एक स्टूडेंट का 200-500 रुपए कमीशन देते हैं।Modus operandi


इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज में स्टूडेंट्स को स्टेट एंट्रेंस के बाद काउंसिलिंग ऑर्गनाइज करके ही सीटें अलॉट होती हैं। वहीं 15 परसेंट सीटें मैनेजमेंट कोटे के तहत रिजर्व रहती हैं। नेक्सट सेशन में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर एडमिशन हो जाए, इस बात की फिक्र इन कॉलेजेज ओनर को रहती है। इसकी तैयारी वे अभी से शुरू कर देते हैं। वे कॉलेजेज और कोचिंग सेंटर में सेमिनार और करियर काउंसिलिंग ऑर्गनाइज करते हैं। यहां तक की स्टूडेंट्स को अपने कॉलेज में विजिट भी कराते हैं और अपनी फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर की जानकारी देकर एडमिशन के लिए प्रेरित करते हैं या यूं कहें उन्हें फंसाना शुरू कर देते हैं। स्टूडेंट्स और पेरेंट्स के कॉन्टेक्ट नम्बर हासिल कर लेते हैं। उनकी पूरी कोशिश यही रहती है कि मैनेजमेंट के सभी सीटों को पहले ही कवर कर लें और स्टूडेंट्स का माइंड इतना डिस्ट्रैक्ट कर दें कि काउंसिलिंग के समय वे उनके ही कॉलेज के ऑपशन को चूज करें।Negative for studentsइंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज के इस खेल में स्टूडेंट्स पर बहुत बुरा इफेक्ट पड़ता है। मंडलीय साइकोलॉजिस्ट डॉ। हरवीर सिंह ने बताया कि कॉलेजेज की नजर केवल सीटें फुल करने पर होती है। स्टूडेंट्स की प्रॉपर काउंसिलिंग नहीं हो पाती। इसी आपाधापी में वे उस प्रोफेशन को चुन लेते हैं, जिसमें उन्हें सक्सेस नहीं मिलती। वे अपने करियर से भटक जाते हैं। वे यह डिसाइड नहीं कर पाते कि उनके लिए कौन सा प्रोफेशन राइट होगा। भेड़चाल में वे भी इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट प्रोफेशन अपना लेते हैं।Depression के chancesडॉ। हरवीर सिंह ने बताया कि कॉलेजेज की यह प्रवृत्ति स्टूडेंट्स के लिए डेंजरस है। प्रॉपर काउंसिलिंग न होने से स्टूडेंट्स कॉलेजेज के झांसे में आ जाते हैं और उस प्रोफेशन में चले जाते हैं, जिसके लिए वे बने ही नहीं। जब समझ में आता है तो वे कुंठित हो जाते हैं। सफलता नहीं मिलती तो डिप्रेशन में चले जाते हैं और सुसाइड तक कर लेते हैं।

एक student की value Rs 10,000स्टूडेंट को फंसाने के लिए इंजीनियरिंग कॉलेजेज कोचिंग ओनर, इंटर कॉलेज प्रिंसिपल और टीचर्स को बकायदा कमीशन देते हैं। जीआईसी के प्रिंसिपल जीएल कोहली ने बताया कि प्रेजेंट में तमाम इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजेज के मैनेजमेंट उनसे कॉन्टेक्ट करते हैं। सेमिनार और काउंसिलिंग ऑर्गनाइज करने की गुहार लगाते हैं। स्टूडेंट्स का कॉन्टेक्ट नम्बर मांगते हैं। कमीशन का प्रलोभन देते हैं। कहते हैं कि 10 स्टूडेंट्स का हमारे कॉलेज में एडमिशन करा दो। एक स्टूडेंट पर 10,000 रुपए कि हिसाब से 1,00,000 रुपए दे देंगे।Tips for parents- कोई प्रोफेशनल कोर्स कराने से पहले बच्चे की प्रॉपर काउंसिलिंग जरूर कराएं।- किसी अधिकृत काउंसलर के पास ही जाएं कॉलेजेज के झांसे में न आएं।-स्टूडेंट की कैपेसिटी और इंट्रेस्ट को आंकने की आवश्यकता।-काउंसिलिंग सेंटर पर स्टूडेंट्स के साथ पेरेंट्स का होना आवश्यक।-भेड़चाल में प्रोफेशनल कोर्स न अपनाएं।Report by: Abhishek Singh

Posted By: Inextlive