इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अब नहीं होगा छात्र संघ चुनाव

अराजकता की बढ़ती घटनाएं रोकने को एयू प्रशासन का बड़ा फैसला

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PRAYAGRAJ: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव पर एक बार फिर ग्रहण लग गया है. छात्रसंघ चुनाव में छात्र-छात्राओं द्वारा अध्यक्ष, महामंत्री व उपाध्यक्ष सहित अन्य पदों के लिए अभी तक होने वाले प्रत्यक्ष मतदान की व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन इसके स्थान पर छात्र परिषद का मॉडल लागू करने की तैयारी में है. नए शैक्षिक सत्र से इसी मॉडल को लागू किया जाएगा. इसकी बड़ी वजह विश्वविद्यालय परिसर में लंबे समय से चली आ रही अराजकता की घटनाओं को माना जा रहा है.

हाईकोर्ट में दिया गया हलफनामा

पीसीबी हॉस्टल में पूर्व छात्र रोहित शुक्ला की हत्या के बाद विश्वविद्यालय के अराजक माहौल को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था और जनहित याचिका कायम करके सुनवाई शुरू कर दी. 17 मई को भी सुनवाई थी. इस दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन ने कैंपस का माहौल बेहतर और भयमुक्त बनाने के लिए छात्र परिषद मॉडल लागू किए जाने का हलफनामा दाखिल किया. इससे संकेत मिल गये हैं कि वर्तमान कार्यकारिणी ही निर्वाचित छात्रसंघ की अंतिम कड़ी बन जायेगी.

पहले भी चुनाव पर लगा था बैन

विश्वविद्यालय में नए शैक्षिक सत्र से भले ही छात्र परिषद का मॉडल लागू किया जाएगा लेकिन इसके पहले विश्वविद्यालय में अराजकता की वजह से छात्रसंघ चुनाव पर बैन लगा दिया गया था. केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद पहले कुलपति प्रो. राजन हर्षे ने चुनाव पर बैन लगाया था. विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रनेता डॉ. राजेश कुमार सिंह की मानें तो वर्ष 2004-05 के चुनाव में एक प्रत्याशी की हत्या के बाद पूरे शहर में अराजकता की स्थिति हो गई थी. जिसके बाद कुलपति प्रो. हर्षे ने चुनाव पर बैन लगा दिया था.

छह साल के अंतराल पर हुई थी बहाली

पूर्व कुलपति प्रो. हर्षे के कार्यकाल में छात्रसंघ पूरी तरह बैन रहा तो केन्द्रीय विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति प्रो. एके सिंह के कार्यकाल में छात्रसंघ की बहाली को लेकर छात्रों ने लम्बा आंदोलन चलाया. आंदोलन से जुड़े छात्रनेता राघवेन्द्र यादव बताते हैं कि दिसम्बर 2011 में छात्रसंघ बहाली को लेकर कुलपति प्रो. सिंह को 33 घंटे तक बंधक बनाया गया था. हालात इस कदर खराब हो गए थे कि उसका असर शहर के माहौल पर भी पड़ने लगा था. उसके बाद पुलिस फोर्स ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया. छात्रनेता अभिषेक यादव, विवेकानंद पाठक व विकास तिवारी सहित एक दर्जन छात्रों को सेंट्रल जेल नैनी जाना पड़ गया था.

22 दिसम्बर 11 को बहाल हुआ छात्रसंघ

राघवेन्द्र यादव की मानें तो जब हम जेल में थे तो 22 दिसम्बर 2011 की रात में विश्वविद्यालय में छात्रसंघ बहाली को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कुलपति कार्यालय को फैक्स आया था. उन्होंने बताया कि आधा शैक्षिक सत्र बीत चुका था इसलिए उस समय चुनाव नहीं कराया गया था. बहाल होने के बाद पहला चुनाव शैक्षिक सत्र 2012-13 का हुआ था.

लिंगदोह कमेटी के प्रस्ताव

कैंपस में छात्रों की आवाज उठाने के लिए लिंगदोह कमेटी ने दो मॉडल प्रस्ताव किये थे

पहले मॉडल में कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और हैदराबाद जैसे छोटे विश्वविद्यालय के लिए प्रत्यक्ष मतदान का सुझाव दिया था.

कमेटी ने अशांत माहौल की स्थिति में और बड़े कैंपस के लिए छात्र परिषद की सिफारिश की थी.

इसके अनुसार छात्र संघ रहेगा लेकिन उसका चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर नहीं होगा.

वर्तमान समय में इसी व्यवस्था के तहत ईसीसी में चुनाव होता है

हाईकोर्ट में चुनाव के संदर्भ में एक हलफनामा दाखिल किया गया है. लिंगदोह कमेटी द्वार अशांत माहौल की स्थिति में छात्र परिषद की सिफारिश की गई है. जिसके अनुसार विश्वविद्यालय में अब छात्रसंघ चुनाव की बजाए छात्र परिषद के मॉडल को लागू किया जाएगा.

-डॉ. चितरंजन कुमार,

पीआरओ इलाहाबाद विश्वविद्यालय

Posted By: Vijay Pandey