Subhash Chandra Bose Jayanti 2020: 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 124वीं जयंती है। इस मौके पर हम जानेंगे कि उन्हें आखिरकार 'नेताजी' नाम किसने दिया था। साथ ही उनके जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं व आजाद हिंद फौज के इतिहास के बारे में भी जानेंगे।


कानपुर। Subhash Chandra Bose Jayanti 2020: देश आजादी के नायकों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 124वीं जयंती मना रहा है। भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में उनका अभिन्‍न योगदान है। आजादी की लड़ाई में हिस्‍सा लेने के कारण तत्‍कालीन ब्रिटिश सरकार ने उन्‍हें 11 बार जेल की सजा सुनाई लेकिन उनके हौसले को डिगा न सकी। सेकेंड वर्ल्‍ड वॉर के समय देश के बाहर जाकर उन्‍होंने आजाद हिंद फौज की कमान संभाली और भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलवाने का बीड़ा उठाया। देशवासी आज भी उनके योगदान को याद करते व ऐसे वीरों के प्रति नतमस्‍तक हैं।कटक में हुआ था जन्‍म, कोलकाता में शिक्षा-दीक्षा
आज यानी कि 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती है। बोस देश के ऐसे महानायकों में से एक हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन आजादी की लड़ाई के लिए न्योछावर कर दिया। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस उस समय में कटक के चर्चित वकील थे। पांच साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मुताबिक, कटक में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने रेवेनशा कॉलिजियेट स्कूल में एडमिशन लिया। वहां पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई शुरू की लेकिन राष्ट्रवादी गतिविधियों में हिस्‍सा लेने के कारण उन्‍हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया।, जिसके बाद उन्होंने 1917 में कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया और इसी कॉलेज से उन्होंने 1919 में बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की।11 बार मिल चुकी है जेल की सजाइसके बाद बोस ने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के लिए 9 सितंबर, 1919 को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और केवल आठ महीने की पढाई के बाद वे इस परीक्षा में चौथे स्थान पर रहे लेकिन सुभाष का मन अंग्रेजों के नीचे काम करने का नहीं था। इसलिए जुलाई 1921 में उन्होंने सिविल सर्विस से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस लौट आए। भारत में, बोस ने महात्मा गांधी और चित्तरंजन दास से मुलाकात की और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। बोस और दास को 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत यात्रा का बहिष्कार करने के लिए क्रिसमस के दिन गिरफ्तार कर लिया गया और छह महीने कारावास की सजा सुनाई गई। बता दें कि अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार जेल की सजा दी गई थी।


उनकी लीडरशिप के चलते मिला नेताजी नाम1941 में एक मुकदमे को लेकर उन्हें कलकत्ता की अदालत में पेश होना था लेकिन वे किसी तरह भारत छोड़कर जर्मनी पहुंच गए और वहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात की। हिटलर से मिलने के बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जबरदस्त जंग छेड़ दी। जब नेताजी जर्मनी में थे तो उन्हें जापान में आजाद हिंद फौज के संस्थापक रासबिहारी बोस ने आमंत्रित किया और 4 जुलाई, 1943 को एक समारोह के दौरान रासबिहारी ने आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष के हाथों में सौंप दी। इस फौज में उन्होंने यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के जेलों में बंद भारतीय कैदियों को शामिल किया। उनके नेतृत्व से प्रेरित होकर, बर्लिन में उनके फॉलोवर्स ने उन्हें सम्मान के साथ 'नेताजी' का नाम दे दिया। बता दें कि 18 अगस्त, 1945 को नेताजी फ्लाइट से मंचूरिया जा रहे थे। इसी दौरान ताइहोकू हवाई अड्डे पर उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उनकी मौत हो गई।

75 वर्ष पहले 30 दिसंबर को यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने फहराया था झंडा

Posted By: Mukul Kumar