GORAKHPUR : 'दिल में जज्बा हो और मन में विश्वास तो कामयाबी खुद ब खुद झख मारकर आपके पीछे आएगी. उम्र छोटी हो या बड़ी फर्क नहीं पड़ता. मंजिल मेहनत और लगन से ही मिलती है. इसे सही साबित कर दिखाया है अंकिता सिंह ने. उम्र भले ही 15 साल है और प्रैक्टिस को अभी एक साल बीते हैं मगर उसकी झोली में मेडल की कमी नहीं है. घर की इकोनॉमिक कंडीशन ने उसे तोडऩे की कोशिश जरूर की मगर उसके हौसले को डिगा नहीं सकी. अपोजिट कंडीशन में प्रैक्टिस कर रही अंकिता का सपना इंडिया के लिए खेलना और मेडल जीतना है.


घर में नहीं चाहता था कोई, खिलाड़ी बनूंगोरखपुर के मोतीराम अड्डा के पास रहने वाले जय सिंह किसान है। इकोनॉमिक कंडीशन ठीक न होने के बावजूद जय सिंह ने अपनी तीनों बेटियों को पढ़ाने-लिखाने में कोई कमी नहीं की। बड़ी बेटी की शादी और दूसरी बेटी के बीए में एडमिशन कराने के बाद उनकी इच्छा थी कि छोटी बेटी अंकिता भी पढ़ाई करे। पूरी फैमिली को स्पोट्र्स में लड़कियों का पार्टिसिपेट करना कोई खास पसंद नहीं था। फैमिली की मंशा के मुताबिक अंकिता ने भी क्लास 8 तक किसी गेम में पार्टिसिपेट नहीं किया। वह जब क्लास-9 में थी, तब स्कूल में गेम हुआ। उसका भी खेलने का मन किया, मगर सभी गेम में कैंडिडेट्स की सीट्स फुल हो चुकी थी। इसलिए उसने ऐसा गेम सेलेक्ट किया, जिसमें स्कूल की एक भी गर्ल ने पार्टिसिपेट नहीं किया था। वह था 100 मीटर हर्डल रेस।
पड़ोसी ने की मदद, बन गई गोल्डेन क्वीन


अंकिता ने वह कॉम्प्टीशन जीत लिया और आगे खेलने का सपना देखने लगी। मगर फैमिली की इकोनॉमिक कंडीशन ठीक न होने के कारण अंकिता का सपना टूट रहा था। तभी उसके पंखों को नई उड़ान दी उनके पड़ोस में रहने वाले सीताराम पाल ने। उन्होंने न सिर्फ अंकिता की प्रैक्टिस के लिए सारी इकोनॉमिक प्रॉब्लम दूर कर दी बल्कि उनके बेटे कमलेश पाल ने उसे ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी। अंकिता रीजनल स्टेडियम में कोच मो। अख्तर से ट्रेनिंग लेने के साथ कमलेश से भी गुर सीख रही थी। मगर स्टेडियम में इस साल कैंप कैंसिल होने से अंकिता की ट्रेनिंग की पूरी जिम्मेदारी कमलेश ने उठा रखी है। उसकी दिन-रात चढ़ती नई ऊंचाइयों से अब उसकी फैमिली भी खुश है। अंकिता ने अब तक स्टेट लेवल के चार कॉम्प्टीशन में 100 मीटर हर्डल रेस में पार्टिसिपेट किया था, जिसमें उसने सिर्फ और सिर्फ गोल्ड मेडल जीता। यह गोल्ड भी लगभग 14 साल बाद सिटी को मिला था। इसके बाद सभी उसको गोल्डेन क्वीन कहने लगे। अंकिता ने पहली बार बलिया में हुए स्टेट लेवल महिला कॉम्प्टीशन में लांग जंप में पार्टिसिपेट किया था, जिसमें शानदार प्रदर्शन करते हुए उसने सिल्वर मेडल जीता।साथी खिलाडिय़ों ने किया सम्मानबलिया में हुए स्टेट लेवल महिला कॉम्प्टीशन में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत कर लौटी अंकिता का उसके साथी खिलाडिय़ों ने मंडे को मिठाई खिलाकर स्वागत किया। साथ ही उसे छोटे-छोटे प्राइज देकर सम्मानित किया। प्रैक्टिस के लिए रेगुलर मदद करते चले आ रहे जय सिंह ने 5005 रुपए और ट्रैक-सूट देकर उसकी हौसला अफजाई की।

बहुत कठिन है हर्डल रेसएथलेटिक्स में हर्डल रेस कॉम्प्टीशन काफी कठिन माना जाता है। इसमें तेज दौडऩे के साथ कुछ फीट ऊंची एक बाधा को भी पार करना पड़ता है। इतनी अधिक स्पीड में अचानक बाधा पार करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में गल्र्स इस गेम को प्रिफर नहीं करती है। मगर अंकिता ने इसी गेम में अपना फ्यूचर बनाने के साथ स्टेट लेवल में कई मेडल जीतें। हर्डल रेस में पार्टिसिपेट करने वाली गल्र्स की संख्या सिटी में भी काफी कम है। मेरा सपना इंडिया के लिए खेलना है, फिर चाहे सुविधाएं मिलें या न मिलें। स्पोट्र्स हॉस्टल में सेलेक्शन के बावजूद मैंने छोड़ दिया। क्योंकि वहां एक लीमिट में प्रैक्टिस होती थी, जबकि मैं इतनी प्रैक्टिस करना चाहती हूं कि कॉम्प्टीशन में मेडल मेरी झोली में आए। अंकिता सिंहएक साल और चार गोल्डकॉम्प्टीशन      - मेडल     - प्लेस      - इयरस्कूल स्टेट      - गोल्ड     - सैफई     - जनवरी 12स्कूल नेशनल   - फोर्थ      - सैफई     - फरवरी 13ओपेन स्टेट     - गोल्ड      - सिंगरौली - अगस्त 13नार्थ जोन       - गोल्ड      - अलीगढ़  - अगस्त 13स्टेट महिला    - गोल्ड      - बलिया    - सितंबर 13स्टेट महिला    - सिल्वर    - बलिया     - सितंबर 13

Posted By: Inextlive