हमारी अर्थ और हम सब के लिए प्लास्टिक कितनी खतरनाक है ये तो हम सब जानते हैं। साइंटिस्ट्स का ऐसा कहना है कि हर प्रोडक्ट की सेल्फ लाइफ होती है लेकिन प्लास्टिक की नहीं। प्लास्टिक को पूरी तरह खत्म होने में 500 साल लगते हैं। ये सब जानने के बाद आप भी धीरे-धीरे प्लास्टिक के यूज से दूर होना चाहते हैं तो बेंगलुरु का स्टार्टअप डोपोलॉजी करेगा आपकी मदद...


कानपुर (फीचर डेस्क)। आपको ये जानकर हैरानी तो नहीं होगी कि सिर्फ भारत में हर साल 300 मिलियन टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा होता है। इस बात को सीरियसली देखा बेंगलुरु के एक कपल, अक्षता भद्रना और उनके पति राहुल पगड़ ने। इन्होंने एक स्टार्टअप की शुरुआत करने की सोची, जिसके तहत वह प्लास्टिक की चीजों का ऑप्शन लकड़ी या वेस्ट पेपर्स से बने प्रोडक्ट्स से दे रहे हैं। जैसे पुराने अखबारों से बनीं पेंसिल और लकड़ी के बने टूथब्रश। इन चीजों का प्रोडक्शन करने वाली अपनी कंपनी को दोनों ने नाम दिया डोपोलॉजी का।https://img.inextlive.com/inext/inext/wooden_030919_i_.jpgऐसे आया ये शानदार आइडिया


मीडिया के जरिए अक्षता को मालूम पड़ा कि उन दिनों मारियाना ट्रेंच, प्रशांत महासागर में समुद्र के तल पर सबसे गहरे प्वाइंट पर एक प्लास्टिक बैग मिला था।  इसके अलावा दुनिया भर में प्लास्टिक पॉल्यूशन पर किए गए विश्व आर्थिक मंच के एक रिसर्च के अनुसार उनको मालूम पड़ा कि अगर प्लास्टिक प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2050 तक महासागरों में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक ज्यादा होगी और फिर इस बात से हमारी नेचर कितनी ज्यादा इफेक्टिव होगी, ये तो लगभग सभी जानते हैं। बस दुनिया से जुड़ी इसी प्रॉब्लम को जड़ से साफ करने का अक्षता ने फैसला कर लिया और उनके इस काम में उनका साथ दिया उनके हसबैंड राहुल ने। अब अपनी इस मुहिम में दोनों ने अपने स्टार्टअप के अंतर्गत कैसी-कैसी इंट्रेस्टिंग शुरुआत की, आइए जानें यहां।दोनों का इंट्रेस्टिंग स्टेपअक्षता कहती हैं कि भारत में मिडिल क्लास लोगों को ध्यान में रखते हुए वे उनके लिए सस्टेनेबिलिटी को सस्ता बनाना चाहते थे। इसी उद्देश्य के साथ इस कपल ने ऐसे ईको-फ्रेंंडली प्रोडक्ट लाने का फैसला किया, जिसे हर कोई खरीद सके। सो उन्होंने पुराने अखबारों से पेंसिल बनाई। लागत को और नीचे लाने के लिए राहुल ने अपने होमटाउन धारवाड़ में भी अपना ये प्रोजेक्ट शुरू किया, ताकि उन्हें जयपुर में निर्माताओं से पेंसिल न मंगानी पड़े।ऐसे किया इनोवेशन

राहुल कहते हैं कि हर साल 15 मिलियन पेंसिल बनाने के लिए छह मिलियन पेड़ कट जाते हैं। ऐसे में कागज की पेंसिल पेड़ों के कटान पर रोक लगा सकती हैं। साथ ही दोनों ने अपनी कंपनी में बांस के ब्रश भी बनवाने शुरू किए। अक्षता बताती हैं कि उन्होंने कस्टमर्स को बांस के ब्रश रेकमंड किए। मार्केट में इनकी कीमत 210 रुपये या उससे अधिक आई, सो महंगे होने की वजह से लोगों ने इसको इग्नोर किया। फिर दोनों ने इन ब्रश को बेबी व एडल्ट बांस ब्रश के रूप में उतारा, जो 80 रुपये कीमत का पड़ा। तो वे सब के सब बिक गए।Success Story: हिमालय की हवाओं को घर तक पहुंचा रहा यह स्टार्टअपऐसी है फ्यूचर की प्लानिंगअब डोपोलॉजी के प्रोडक्ट्स की डिमांड को देखते हुए कंपनी ने अपनी कस्टमाइज्ड पैकेजिंग के लिए अन्य कंपनियों संग मिलकर उन्होंने भेजे गए हर प्रोडक्ट के साथ पार्सल में एक बीज पेपर शामिल किया। इसमें बीज के साथ एम्बेडेड बायोडिग्रेडेबल पेपर होता है। बीज पेपर में गेंदा और चमेली के बीज होते हैं। इस समय दोनों मिलकर डोपोलॉजी के तहत बीज पेपर पैकेजिंग के भी ऑर्डर ले रहे हैं।'पर्यावरण को प्लास्टिक से बचाने के लिए फिलहाल पेपर की पेंसिल और वुडेन टूथब्रश बनाने से शुरुआत की है।'अक्षता भद्रनाफाउंडर, डोपोलॉजीfeatures@inext.co.inSuccess Story: वेस्ट कार्डबोर्ड से ही बना डाला पूरा सेस्त्रां

Posted By: Vandana Sharma