12 सितंबर 2015 को हुई इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समायोजन को घोषित कर दिया था अवैध

टीईटी क्वालीफाई न होना बन गया घातक, आगे गेंद सरकार के पाले में

ALLAHABAD: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ को इलाहाबाद हाई कोर्ट के 12 सितंबर 2015 के फैसले में कोई खामी नहीं मिली है। इसे दोनो जजों ने अपने फैसले में कोट भी किया है। यानी अब शिक्षा मित्रों का भाग्य सरकार के हाथ में होगा। जो सहायक अध्यापक बन चुके हैं वह शिक्षा मित्र भी रह जाएंगे या नहीं यह सरकार को तय करना है। इससे शिक्षा मित्रों की समस्या और बढ़ गई है। असमंजस में हैं कि बुधवार को किस स्कूल में जाना होगा। वहां जहां वे सहायक अध्यापक हैं अथवा वहां जहां उनकी शिक्षा मित्र के रूप में तैनाती थी।

नियमावली में संशोधन को बताया था अवैध

12 सितंबर को 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पूर्ण ने शिक्षा मित्रों पर अपना फैसला सुनाया था। पीठ ने अपने फैसले में नियमावली में संशोधन को अवैध करार दिया था। कोर्ट का कहना था कि शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियमावली तय करने के लिए एनसीटीई ही अधिकृत संस्था है। इसमें किसी भी प्रकार का संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है। इसी के आधार पर कोर्ट ने सरकार द्वारा की गई दो साल के प्रशिक्षण की व्यवस्था को भी असंवैधानिक करार दिया था।

क्या किया था राज्य सरकार ने

2009 में प्रदेश में सत्ता में रही बसपा सरकार ने शिक्षा मित्रों के लिए दो साल के प्रशिक्षण का खाका तैयार किया था। इसके तहत शिक्षा मित्रों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जानी थी। इसके बाद टेस्ट कराकर इन्हें विशिष्ट बीटीसी कैटेगिरी से सहायक अध्यापक बना देने का रास्ता तैयार करना था। बसपा सरकार की इस योजना को सपा सरकार ने भी आगे बढ़ाया और दो चरणों में प्रशिक्षण पूरा करने वाले करीब 1.40 लाख शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बना दिया। बाकी भी यह कोर्स पूरा कर चुके हैं। उन्हें भी इस पर पक्ष में फैसला आने के बाद नियुक्ति मिल जाने का पूरा भरोसा था।

अब क्या आप्शन बचेगा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में शिक्षा मित्रों का आगे का भविष्य राज्य सरकार के हाथ में छोड़ दिया है। समायोजन निरस्त हो जाने से वे शिक्षा मित्रा भी सहायक अध्यापक नहीं रह जाएंगे जो टीईटी क्वालीफाई कर चुके हैं। उन्हें आने वाले भर्तियों में आवेदन करना होगा। राज्य सरकार तय करेगी कि उन्हें उम्र सीमा में क्या छूट मिलेगी और अनुभव के आधार पर क्या छूट मिलेगी। राज्य सरकार को ही तय करना है कि शिक्षा मित्रों को उनके वर्तमान स्कूल में ही रखा जाय या पुराने स्कूल में वापस कर दिया जाय अथवा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाय।

शिक्षक नियुक्ति के नियम

केन्द्र सरकार ने संसद से कानून पारित कर 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ना अनिवार्य किया है

अध्यापकों की नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता एवं मानक एनसीटीई ने तय किए हैं

पूरे देश में एक समान शिक्षण व्यवस्था के लिए ये नियम बने हैं

2010 से प्रभावी इस नियम के तहत कक्षा एक से आठ तक के स्कूलों में नियुक्ति के लिए टीईटी क्वालीफाई करना अनिवार्य है

एनसीटीई ने नियम लागू होने के समय कार्यरत अध्यापकों को प्रशिक्षण प्राप्त करने या न्यूनतम योग्यता अर्जित करने के लिए पांच वर्ष की छूट दी थी

यह छूट एक बार के लिए ही थी

शिक्षा मित्रों का सफर

1999 में इनकी नियुक्ति की शुरुआत हुई

संविदा के आधार पर की गई थी इनकी नियुक्ति

स्टाइपेंड के तौर पर मिलते थे 2250 रुपए

शिक्षामित्रों की तैनाती ग्राम पंचायत स्तर पर बनी मेरिट के बेस पर हुई थी

2009 में बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण का प्रशिक्षण लिया

2012 में सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक के रूप में तैनाती का फैसला लिया

पहले चरण में जून 2014 में 58000 का समायोजन हुआ

दूसरे चरण में जून 2015 में 73000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बने

कुल 1.78 लाख शिक्षामित्रों को समायोजित करने का लक्ष्य था

12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शिक्षा मित्रों के सहायक अध्यापक पद पर समायोजन को अवैध घोषित कर दिया था

इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की खंड पीठ ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूरा अध्ययन करने के बाद ही कुछ भी कहने की स्थिति बनेगी। फिलहाल ये स्पष्ट है कि कोर्ट के निर्देश का पूरा पालन किया जाएगा।

संजय सिनहा

सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरा सम्मान करते है। कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए संविधानपीठ में याचिका दाखिल करेंगे। प्रदेश सरकार से समायोजित शिक्षामित्रों के लिए विभागीय टेट की मांग करेंगे।

अनिल कुमार यादव

प्रदेश अध्यक्ष, उप्र दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ

अभी निराश नहीं हैं। अभी भी प्रयास जारी रखेंगे। अभी भी संभावनाएं पूरी तरह से खारिज नहीं हुई हैं। आखिरी दम तक प्रयास जारी रखेंगे।

फारूख अहमद खान

प्रदेश सचिव

सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है। कोर्ट के फैसले से बड़ी संख्या में टेट क्वालीफाइड बेरोजगारों की उम्मीद बढ़ी है। योग्य लोगों को ही अवसर मिलना चाहिए। जिससे शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो सके।

संजीव कुमार मिश्रा

बीटीसी संघर्ष मोर्चा

Posted By: Inextlive