जी हां पहले लोग जेल में बंद रहते हुए भी चुनाव लड़ते थे और उनका रसूख कहिए या लोकप्रियता कि वे चुनाव जीत भी जाते थे. फिर गाजे-बाजे के साथ फूल-मालाओं से लदे हुए हाथी या बड़ी सी गाड़ी पर सवार होकर जेल से रैली निकालते थे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने एक ही झटके में यह सब इतिहास की बात बना डाली.


जो वोटर नहीं वह कैंडीडेट भी नहींरिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 62 (5) के तहत जेल में बंद या कानून पुलिस हिरासत में बंद व्यक्ति वोट नहीं दे सकता. इसी एक्ट की धारा 4 और 5 में कहा गया है कि जो वोटर है वही एमपी या एमएलए बन सकता है. इन्हीं धाराओं को आधार बनाकर पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. इसमें कहा गया कि जब जेल में बंद व्यक्ति वोट नहीं दे सकता है तो कोई जेल में बंद व्यक्ति चुनाव कैसे लड़ सकता है? पटना हाईकोर्ट ने याचिका के समर्थन में फैसला दे दिया तो इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए अपील खारिज कर दी.

Posted By: Satyendra Kumar Singh